मोती डुंगरी गणेश मन्दिर भारत की पिंक सिटी कहलाने वाले जयपुर में हिन्दू आस्था और भक्ति के ज्वजलयमान स्तम्भ के रूप में चिन्हित भगवान विनायक को समर्पित एक भव्य मन्दिर है। हिन्दू धर्म के अनुसार किसी भी कार्य को करने के पूर्व विध्नहर्ता भगवान विनायक की उपासना व आशीर्वाद लेने की प्रथा प्राचीन काल से है। जयपुर में स्थित भगवान गणेश का इस मन्दिर में चाहे नई कार लेनी हो या नया भवन, कोई भी शुभ कार्यक्रम हो या पासपोर्ट और वीजा के लिए आवेदन करना हो भक्त भगवान से आशीर्वाद लेने के लिए आते है।
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मोती डुंगरी गणेश मूर्ति |
मोती डुंगरी गणेश मन्दिर का इतिहास ( History of Moti Dungri Temple )
स्थानीय वृद्ध लोगों की कथा के अनुसार मोती डुंगरी गणेश मन्दिर का इतिहास मेवाड़ के शासक से जुडा हुआ है। किंवदंती के अनुसार १७वीं शताब्दी में राजा माधोसिंह प्रथम, अपनी पटरानी के पीहर मावली से भगवान श्री गणेश की एक मूर्ति लेकर लौट रहे थे। उन्होंने घोषणा कि की भगवान गणेश जिस बैलगाड़ी में विराजित है, वह जिस स्थल पर सबसे पहले रुकेंगी। उस स्थल पर वह भगवान के मंदिर का निर्माण करवाएँगे।
बैलगाड़ी चलते चलते मोती डुंगरी पहाड़ी की तलहटी में रुकी। राजा माधोसिंह ने उसी स्थल पर एक मन्दिर का निर्माण कराने का कार्य सेठ जयराम पालीवाल और महंत शिव नारायण को सौंपा गया। मन्दिर का निर्माण ४ माह में हुआ। मन्दिर का निर्माण मोती डुंगरी पहाड़ी की तलहटी में होने के कारण मन्दिर का नाम मोती डुंगरी गणेश मन्दिर पड़ा।
मोती डुंगरी गणेश मन्दिर की वास्तुकला ( Architecture of Moti Dungri Temple )
मोती डुंगरी के महाराजा माधो सिंह के पुत्र के लिए स्कॉटिश महल जैसी संरचना का निर्माण किया गया जिसके भीतर बने मोती डुंगरी गणेश मन्दिर के परिसर जिसका विस्तार २ किमी के क्षेत्र में है। मन्दिर की मुख्य इमारत का निर्माण देश में माने जाने वाले तीन पवित्र मतों को दर्शाने की दृष्टि से तीन गुम्बदों के साथ निर्माण किया गया। मन्दिर के निर्माण में संगमरमर पर तराशी गयी जटिल जाली का काम और दीवारों पर तराश कर सजाई गयी पौराणिक कथाओ के दृश्य इस मन्दिर में आने में आने वाले आगंतुकों को मन्त्र मुग्ध कर देते है। मन्दिर से जुडी एक मान्यता है की दर्शन के बाद कुछ समय मन्दिर में बैठना चाहिए इस उदेश्य को ध्यान में रखते हुए प्रवेश द्वार के दोनों ओर सीढ़ियों का निर्माण किया गया है।
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पैरानोमिक दृश्य |
मन्दिर की बाह्य संरचना जितनी भव्य है उतनी ही लुभावनी उसकी आंतरिक संरचना है। गर्भगृह में उपस्थित भगवान गणेश की प्रतिमा बैठी हुई मुद्रा में है। जिनकी सूड़ बायीं दिशा की ओर मुड़ी हुई है। जो की मूर्ति की शुभता का प्रतीक है। मूर्ति पर कच्चे सेंदूर के लेप के कारण मूर्ति में एक गहरे नारंगी रंग की अद्भुत चमक है। मूर्ति की शोभा को और भी बढ़ाने का काम मूर्ति के शीर्ष पर उपस्थित चाँदी का मुकुट तथा उनका सोने और चांदी मिश्रित सिंहासन तथा दोनों ओर स्थित चांदी के स्तम्भ करते है लेकिन इन सबको और भी शोभायमान बनाता है वो है मूर्ति के पीछे स्थित स्वर्ण चक्र और मूर्ति के ऊपर स्थित स्वर्ण छत्र।
भगवान गणेश के चरणों के पास उनके वाहन एक बड़े मूषक की प्रतिमा रखी जाती है।
मोती डुंगरी गणेश मन्दिर दर्शन करने का सबसे अच्छा समय ( Best Time to Visit Moti Dungri Temple )
किसी भी घर्म की सबसे बड़ी विशेषता है की किसी भी धर्मस्थल या तीर्थस्थल पर और पवित्र नदियों में स्न्नान करने आदि के लिए किसी विशेष दिन और मुहूर्त की आवश्यकता को वर्णित नहीं किया गया है। सभी दिन व समय उत्तम है, बस कुछ विशेष दिवसों और समय पर दर्शन या स्न्नान से मिलने वाले फल का प्रभाव कुछ भिन्न होता है। ऐसा ही भगवान श्री गणेश के इस मन्दिर में भी है। आप मन्दिर प्रबंधन के द्वारा निर्धारित समयावधि में कभी भी दर्शन किये जा सकते है। बुध ग्रह के अधिष्ठाता स्वामी होने के कारण बुधवार का दिन मोती डुंगरी गणेश मन्दिर का सबसे व्यस्ततम दिन होता है। इस दिन मन्दिर के बाहर एक छोटा सा मेला लगता है।
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मोती डुंगरी गणेश मन्दिर जयपुर |
मोती डुंगरी गणेश मन्दिर का महत्व ( Significance of Moti Dungri Temple )
मोती डुंगरी गणेश मन्दिर जयपुर के लोगो के ह्रदय केन्द्र में स्थित एक उच्च आस्था का केन्द्र होने के साथ ही साथ विघ्नहर्ता, प्रथम पूज्य भगवान श्री गणेश का मन्दिर है। प्रथम पूज्य और विघ्नहर्ता होने के कारण आस पास के क्षेत्र में होने वाले किसी भी प्रकार के शुभ कार्य को करने के पूर्व उसका निमन्त्रण पत्र मन्दिर में चढ़ाने की परम्परा है। इसके पीछे की स्थानीय मान्यता है की निमंत्रण मिलने पर श्री मोती डुंगरी स्वामी उनके कार्यक्रम में उपस्थित होकर उसके निर्विघ्न सम्पनता को सुनिश्चित करते है।
इसके अतिरक्त मन्दिर में मंगलवार को भगवान गणेश की मूर्ति का पूजन और सिंजारा उत्सव मनाया जाता है जिसमे भगवान मोती डुंगरी गणेश को ३१०० किलो मेहंदी चढाई जाती है। भगवान को मेहंदी धारण करने के बाद इसे भक्तों में बाँट दिया जाता है। जिसे लेने के लिए हजारो की संख्या में भक्त मन्दिर पहुंचते है। मान्यता है जिनके विवाह में विघ्न आ रहे हो या किसी कारण से विवाह न हो पा रहा हो अगर अविवाहित पुरुष या महिला उस मेहंदी को लगता है तो उसका विवाह शीघ्र हो जाता है।
एक अन्य मान्यता इस मंदिर से जुडी हुई है की किसी भी प्रकार के नए वाहन को मन्दिर में लाकर उसकी पूजा करने से उस वाहन का एक्सीडेंट कभी नहीं होता है। इसलिए बुधवार, रामनवमी, नवरात्रों, धनतेरस और दीपावली पर मन्दिरों में नए वाहनों का पूजा के लिए मेला सा लगा रहता है।
मोती डुंगरी गणेश के दर्शन का समय ( Darshan Timing of Moti Dungri Temple )
मोती डुंगरी गणेश मन्दिर के पट प्रातः ५:३० बजे से अपराह्न ०१:३० बजे तक तथा सायं ०४:३० बजे से रात्रि ०९:०० बजे तक दर्शन के लिए खोला जाता है। इस दौरान मन्दिर में प्रतिदिन ७ सेवा की जाती है। जिनका समय ग्रीष्म और शरद ऋतु में अलग अलग होता है।
दर्शन सेवामंगला दर्शन धूप दर्शन श्रृंगार दर्शन राजभोग ग्वाल दर्शन संध्या दर्शन शयन दर्शन | ग्रीष्म ऋतू का समयप्रातः ४:३० बजेप्रातः ७:१५ बजे प्रातः ९:१५ बजे प्रातः ११:०० बजे सायं ६:३० बजे सायं ७:१५ बजे रात्रि ९:१५ बजे | शरद ऋतू का समयप्रातः ४:४५ बजेप्रातः ८:१५ बजे प्रातः ९:४५ बजे प्रातः ११:१५ बजे सायं ६:४५ बजे प्रातः ७:४५ बजे रात्रि ९:३० बजे |
मोती डुंगरी गणेश मन्दिर में मनाये जाने वाले मुख्य पर्व ( Main Festivals Celebrated in Moti Dungri Temple )
मोती डुंगरी गणेश मन्दिर भगवान गणेश के साथ ही साथ भगवान शिव को समर्पित होने के कारण मन्दिर में गणेश चतुर्थी और महाशिवरात्रि बड़ी ही धूमधाम से मनाये जाते है। इनके अतिरिक्त जन्माष्टमी, अन्नकूट और पौष बड़ा का पर्व बड़ी धूम धाम से मनाये जाते है। इन सभी पर्वों पर मन्दिर देश के विभिन्न हिस्सों से आने वाले भक्तों से भरने के कारण एक छोटे से भारत में बदल जाता है।
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भगवान मोती डुंगरी गणेश को चढ़ाया जाने वाला प्रसाद |
मोती डुंगरी गणेश मन्दिर से जुड़े रोचक तथ्य ( Interested Facts About Moti Dungri Temple )
🜕 मोती डुंगरी गणेश मन्दिर जयपुर के सबसे बड़े गणेश मन्दिरों में से एक है। आंकड़ों के मुताबिक प्रति वर्ष लगभग सवा लाख श्रद्धालु मन्दिर में दर्शन करते है।
🜕 हिन्दू धर्म के अनुसार भगवान गणपति बुध ग्रह के स्वामी है इसलिए प्रत्येक बुधवार को मन्दिर में एक बड़े मेले का आयोजन किया जाता है।
🜕 भारत का एक मात्र गणेश मन्दिर है जहा शिव भक्त आते है क्योंकि मन्दिर परिसर में एक शिवलिंग भी है। जिसके गर्भगृह के द्वार सिर्फ पूरे वर्ष में महाशिवरात्रि की रात्रि को ही खोले जाते है।
मोती डुंगरी गणेश मन्दिर मे आने वाले भक्तों के लिए युक्तियाँ ( Tips for Devotees Visiting Moti Dungri Temple )
🜕 यदि आप बुधवार को मन्दिर में दर्शन की योजना बना रहे है तो सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करें क्योकि इस दिन पार्किंग करने में समस्या होती है।
🜕 मन्दिर के आस पास अधिक मात्रा में बंदरों की उपस्थिति है अतः बंदरों के द्वारा आपकी निजी वस्तुओं को छीने जाने की घटना से बचने के लिए अपनी वस्तुओं की सुरक्षा पर ध्यान केन्द्रित करके मन्दिर में दर्शन के लिए जाये।
मोती डुंगरी गणेश मन्दिर कैसे पहुंचे ? ( How To Reach Moti Dungri Temple )
हवाई मार्ग के द्वारा ( By Air )
मोती डुंगरी गणेश मन्दिर के लिए सबसे निकटतम हवाई अड्डा जयपुर के सांगानेर में स्थित जयपुर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है। जहां से मन्दिर की दूरी ८ किमी के लगभग है। जयपुर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से ही घरेलू उड़ाने भी संचालित होती है। जयपुर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा देश के सभी प्रमुख हवाई अड्डों से नियमित उड़ानों के द्वारा एक व्यवस्थित रूप से जुड़ा हुआ है। हवाई अड्डे से मन्दिर के लिए राज्य सरकार द्वारा संचालित बस सेवा व निजी कर या किराये पर उपलब्ध टैक्सी मन्दिर पहुंचने के लिए सबसे बेहतरीन साधन है।
रेल मार्ग के द्वारा ( By Train )
जयपुर में स्थित जयपुर रेलवे स्टेशन जो की देश के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। जहा से मन्दिर की दूरी ५.५ किमी के लगभग है। रेलवे स्टेशन के बाहर से मिलने वाली टैक्सी व निजी कार आपके गंतव्य तक आपको सुरक्षित पहुंचाने में कार्यरत है।
सड़क मार्ग के द्वारा ( By Road )
देश और राजस्थान के विभिन्न शहरों से जयपुर शहर एक व्यवस्थित सड़क तंत्र से जुड़ा हुआ है। मोती डुंगरी राजस्थान विश्वविद्यालय के पास जयपुर के मध्य में स्थित है। राजस्थान विश्वविद्यालय का बस स्टॉप सबसे निकटतम बस स्टैण्ड है जहां से गणपति मन्दिर २ किमी की दूरी पर स्थित है।
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1 टिप्पणियाँ
Beautiful 🙏🙏🙏
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