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विष्णुपद मन्दिर गया

विष्णुपद मन्दिर ( जैसा की नाम से स्पष्ट है की भगवान विष्णु के चरणों का मन्दिर ) भगवान विष्णु के मन्दिरों में सबसे अधिक पवित्र मन्दिर होने के कारण वर्ष भर सनातन धर्मानुयायियों से भरा रहता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, जैसे ही आश्विन माह में कृष्ण पक्ष का प्रारम्भ होता है देश ही नहीं विश्व के कोने कोने में मौजूद प्रत्येक हिन्दू अपने-अपने पितरों ( मृत पूर्वजों ) की मुक्ति के लिए दान और तर्पण आदि अनुष्ठान को करने लगते है। भारत में पितरों की मुक्ति के लिए सनातन काल से गया को एक विशिष्ट स्थान प्रदान किया गया है। 

विष्णुपद मन्दिर में उपलब्ध शिलालेख
विष्णुपद मन्दिर में उपलब्ध शिलालेख 

विष्णुपद मन्दिर गया नामक तीर्थ पर जो कि बिहार की राजधानी पटना से १०० किमी की दूरी पर फाल्गु नदी के तट पर स्थित है। मान्यता के अनुसार फाल्गु नदी में स्न्नान कर पितरों को तर्पण आदि करने के बाद विष्णुपद मन्दिर में दर्शन करने से तर्पण करने वाले के सांसारिक दुःखों का ही सिर्फ नाश नहीं होता अपितु उनके पितरों को भी पुण्यलोक बैकुण्ठ की प्राप्ति होती है। 

विष्णुपद मन्दिर से जुडी दन्तकथा (Legend Behind Vishnupad Temple, Gaya)

विष्णुपाद
विष्णुपाद 

मन्दिर के साथ भगवान विष्णु और राक्षस गयासुर की पवित्र और पौराणिक कथा जुडी हुई है जो इस प्रकार है। एक बार एक राक्षस जिसका नाम गयासुर था ने कठोर तपस्या की जिसके फलस्वरूप वरदान में उसने वरदान माँगा कि जो कोई भी उसे देखेगा उसे तत्काल मोक्ष मिल जायेगा। चूंकि मोक्ष की प्राप्ति के लिए व्यक्ति को धर्मानुसार होना आवश्यक है। परन्तु गयासुर के दर्शन मात्र से ही लोग मोक्ष के अधिकारी होने लगे। जिससे सृष्टि का संतुलन बिगड़ने लगा। अनैतिक जन को मोक्ष प्राप्त करने से रोकने के लिए देव गण ने सृष्टि पालक भगवान विष्णु से इसे रोकने की प्रार्थना की। भगवान विष्णु ने गयासुर को धरती के नीचे जाने को कहा जिसके लिए उन्होंने उसके शीश पर ऋषि मरीची की पत्नी धर्मवत्ता की शिला को रख कर उसे अपने दाहिने पैर द्वारा धरती के नीचे धकेल दिया। धरती के नीचे धकेलने के कारण भगवान विष्णु के पदचिन्ह पत्थर की सतह पर बन गए। जिन्हे आज हम पूजते है। धरती से नीचे चले जाने के बाद गयासुर को भूख लगने लगी तो उसने भगवान विष्णु से भोजन के लिए प्रार्थना की। इस पर उपाय स्वरुप भगवान विष्णु ने उसे वरदान दिया की प्रतिदिन कोई न कोई उसे भोजन करवाएगा और जो भी ऐसा करवाएगा उसे मेरी कृपा से स्वर्ग की प्राप्ति होगी। माना जाता है जिस दिन गयासुर को भोजन नहीं मिलेगा वह धरती के नीचे से बाहर आ जायेगा। तभी से विश्व के किसी न किसी कोने से कोई न कोई अपने पितरों के कल्याण के इस स्थल पर आकर उनके लिए तर्पण और दान करते है। 

एक अन्य किवदन्ती के अनुसार गयासुर की तपस्या के बाद उसे मिले वरदान ने समस्त देवताओं को चिंतित कर दिया तो उन्होंने उससे चल किया तथा उसकी पवित्र देह को यज्ञ करने लिए उससे मांग लिया। गयासुर अपने चंचल स्वभाव के कारण यज्ञ में स्थिर नहीं रह पा रहा था इसलिए भगवान विष्णु का आवाहान देवताओं के द्वारा किया गया। इसके बाद भगवान विष्णु ने विशाल धर्मशिला को मंगाया तथा उसे गयासुर की छाती पर रख कर उसे स्थिर करने के लिए अपने दाहिने पैर को शिला पर रख दिया। भगवान विष्णु के वही चरण चिन्ह आज भी उस शिला पर अंकित है। गयासुर ने भगवान विष्णु से वरदान माँगा की उसके लेटने से जितनी धरा उसकी देह के नीचे है, उसे पवित्र मानते हुए उस पर पिण्ड देने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति हो। तभी से गया में पिण्डदान करना एक प्रथा सी बन गयी। 

माँ सीता ने यही किया था महाराज दशरथ का पिण्ड दान ( This is where Mata Sita did Maharaj Dashrat's Pind Daan ) 

सीताकुंड में भगवान दशरथ का हाथ पिंड लेते हुए
सीताकुंड में भगवान दशरथ का हाथ पिंड लेते हुए
विष्णुपद मन्दिर के सामने फाल्गु नदी के पूर्वी तट पर सीताकुंड स्थित है। जिसकी मान्यता त्रेतायुग से कालांतर तक एक समान ही है। स्थानीय मतानुसार त्रेता युग में यह स्थान अरण्य वन के नाम से जाना जाता था। भगवान श्री राम माता जानकी और अनुज लक्ष्मण को लेकर इस स्थान पर महाराज दशरथ का पिंड दान करने के लिए आये थे। श्री राम और लक्ष्मण पिंड दान के लिए आवश्यक वस्तु के संग्रह के लिए गए हुए थे की जमीन से एक हाथ निकला और उसने देवी सीता से पिण्ड माँगा। देवी सीता उस हाथ को पहचान नहीं पायी तो उन्होंने उस हाथ से पूछा की वह कौन है? तब महाराज दशरथ अपने सूक्ष्म रूप में वहां प्रकट हुए तथा उन्होंने सीता से पिण्ड माँगा चूंकि सूर्यास्त के बाद पिंड दान नहीं किया जाता और सूर्यास्त होने में कुछ ही अवधि शेष रह गयी थी। इसलिए माता सीता ने बालू का पिंड बना कर महाराज दशरथ को दिया। तब से आज तक यहाँ ( सीताकुण्ड ) में बालू के पिण्ड से ही पिण्डदान किया जाता है। इसका प्रमाण मन्दिर में  धरती से निकला हुआ एक हाथ जिसपर बालू का एक पिण्ड है तथा अन्य दो पिण्ड हाथ के बगल में रखे जुए देखे जा सकते है। मन्दिर की मुख्य विशेषता यहाँ पर स्थित अनेक छोटे छोटे मन्दिरों में से एक मन्दिर भरत, शत्रुघन और माण्डवी का भी है। जो कही भी देखा नहीं जाता है। 

कसौटी पत्थर से निर्मित विष्णुपद मन्दिर ( Vishnupad Temple Build of Kasauti Stone )

मन्दिर का निर्माण कब और किसके द्वारा करवाया गया इसका वर्णन किसी भी प्रकार से संग्रहित नहीं किया जा सका परन्तु वर्तमान संरचना का पूर्ण श्रेय में १७८७ ईस्वी में महारानी अहिल्याबाई होल्कर की आज्ञा के बाद जयपुर के कारीगरों की मेहनत का परिणाम है। जिन्होंने पत्थरकट्टी में सोने की कसने वाले पत्थर कसौटी से मन्दिर का निर्माण किया। मन्दिर की ऊंचाई १०० फीट है। मन्दिर के सभा मण्डप में ४४ नक्काशीदार स्तम्भ है, जो ८ पंक्तियों में मण्डप को सहारा प्रदान करते है। ५४ वेदियों में से १९ वेदिया विष्णुपद में ही है। यहां इन वेदियों के अतिरिक्त रुद्रपद, ब्रम्हपद भी है जिन पर खीर से पिंडदान का विधान है। मन्दिर के गर्भगृह में ४० सेमी के भगवान विष्णु के चरण चिन्ह है। जिनके चारो ओर चांदी से अष्टकोण कुंड बना हुआ है। भक्त विष्णुपद पर तुलसी के पत्ते चढ़ाकर महामत्युंजय का पाठ करते है। यहाँ प्रतिदिन रात में विष्णुचरण का भव्य प्रकार से श्रृंगार करके पूजा की जाती है। शिखर पर एक ५०किलो सोने का कलश और ५० किलो सोने का एक ध्वज है जो एक भक्त गयापाल पांडा बल गोविन्द सेन द्वारा मन्दिर को दान किया गया था। मन्दिर के परिसर में फाल्गु नदी के तट की तरफ बरगद का एक वृक्ष है, जिसे अक्षयवट कहा जाता है। मृतकों का अंतिम संस्कार इसी वृक्ष के नीचे किया जाता है। 

भगवान विष्णु के चरण चिन्ह
भगवान विष्णु के चरण चिन्ह

विष्णुपद मन्दिर में पूजा और दर्शन का समय (Worship & Darshan Timing in Vishnupad Temple )

मन्दिर प्रातः ६:३० बजे से रात्रि ७:३० बजे तक दर्शन के लिए खुला रहता है। जिनमे ब्रह्म कल्पित ब्राह्मण जिन्हें कालांतर में गयावल ब्राह्मण, गयावल तीर्थ पुरोहित या गया के पंडो के रूप में जाना जाता है। मन्दिर में दैनिक अनुष्ठान करते है।

विष्णुपद मन्दिर प्रवेश द्वार
विष्णुपद मन्दिर प्रवेश द्वार 

विष्णुपद मन्दिर पर हिन्दुओ में क्यों उठा विवाद ( Why Did Hindus Dispute Over Vishnupad Temple? )

२३ अगस्त २०२३ को मुख्यमंत्री नितीश कुमार भगवान विष्णुपद मन्दिर दर्शन के लिए पहुंचे जहां उन्होंने गर्भगृह में जाकर विशेष पूजा की। इस पूजा में उनके साथ राज्य सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री मोहम्मद इसराइल मंसूरी समेत अन्य नेता भी उपस्थित थे। मन्दिर में किसी गैर हिन्दू के प्रवेश की मनाही के जगह जगह लेख लगे होने के बावजूद भी एक मुस्लिम नेता के प्रवेश को लेकर मन्दिर प्रशासन और राजनीतिक दलों के मध्य तूल तेज हो गया है। जिसके बाद मन्दिर को प्रबन्धन समिति के द्वारा गंगाजल से शुद्ध करने के बाद भगवान को भोग इत्यादि अर्पित किया गया।

रात्रि श्रृंगार भगवान विष्णु के चरण चिन्ह का
रात्रि श्रृंगार भगवान विष्णु के चरण चिन्ह का 

 विष्णुपद मन्दिर दर्शन के लिए कैसे पहुंचे ? ( How to Reach Vishnupad Temple? )

हवाई मार्ग से ( By Air )

सबसे निकटतम हवाई अड्डे के रूप में गया अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है जहा से दिल्ली-गया-वाराणसी मार्ग पर दैनिक उड़न संचालित होती है। इसके अतिरिक्त सप्ताह में दो बार कोलकाता-गया-बैंकॉक और कोलकाता-गया-यांगून और भूटान एयरलांइस की पारो-गया-बैंकॉक ही उड़ाने संचालित होती है। मन्दिर से हवाई अड्डे की दूरी लगभग १० किमी के आसपास है। दूसरे विकल्प के रूप में पटना में स्थित जय प्रकाश नारायण हवाईअड्डा है। जहा से मन्दिर की दूरी १२० किमी के लगभग है। दोनों ही हवाई अड्डे से मन्दिर के लिए स्थानीय वाहनों की प्रचुरता यात्रा को सुगम बना देती है। 

रेल मार्ग से ( By Train )

गया पूर्व मध्य रेलवे के मुगलसराय-धनबाद खण्ड में एक महत्वपूर्ण जंक्शन है। जो रेल मार्ग द्वारा दिल्ली, कोलकत्ता और मुम्बई से सिद्धि रेल सेवाओं द्वारा जुड़ा हुआ है। इनके अतिरिक्त पुरी, नागपुर, इंदौर, चेन्नई, गुवाहाटी और लखनऊ स्टेशन लिंक रेल सेवा के द्वारा गया जंक्शन से जुड़े हुए है। मन्दिर से स्टेशन की दूरी मात्र ४ किमी होने के कारण किराये पर उपलब्ध रिक्शा और टैक्सी आपको बिना किसी कष्ट के मन्दिर तक पहुंचा देते है। 

सड़क मार्ग से ( By Road )

गया ग्रांड ट्रंक रोड ( जी टी रोड ) के माध्यम से दिल्ली से कोलकत्ता तक उत्तर भारत के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। सबसे निकटतम बस स्टैण्ड बलुआखंधा है जहां से मन्दिर की दूरी ५० किमी के आस पास है। 

विष्णुपद मन्दिर गूगल मैप में ( Vishnupad Mandir in Google Map )

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