श्री नागेश्वरस्वामी मन्दिर प्रारंभिक चोल साम्राज्य के चार प्रारंभिक मौजूदा मन्दिरों में से एक है। यह मन्दिर अपनी भव्यता के लिए प्रसिद्ध होने के साथ साथ नागराज की आड़ में भगवान शिव को समर्पित है। ७वीं शताब्दी के तमिल कवियोँ द्वारा तेवरम (शिव वंदना) में पीठासीन देवता भगवान नागेश्वर स्वामी को वर्णित किया गया है। इसके अतिरिक्त नागेश्वरस्वामी मन्दिर को पाडल पेट्रा स्थलम (महाद्वीप के सर्वक्षेष्ठ शिव मन्दिर) की श्रेणी में रखा गया है।
प्राचीन काल से ही मन्दिर शिक्षा का केन्द्र रहा है, जैसा की मन्दिर के शिलालेखों से देखा जा सकता है। नागेश्वरन स्वामी मन्दिर वास्तुकला, निर्माण प्रौद्योगिकी और खगोल विज्ञान का एक अद्भुत चमत्कार है। अभिविन्यास को इस प्रकार निर्मित किया गया है कि मंदिर के गर्भगृह के अन्दर तमिल माह चिथिरई (मध्य अप्रैल से मध्य मई) के समयकाल में सूर्य के प्रकाश को प्रवेश की अनुमति देता है। इसीलिए इस मंदिर का एक अन्य नाम "सूर्य कोट्टम" या "कील कोट्टम" के नाम से भी जाना जाता है। इन्हीं दिनों में गर्भगृह के शिवलिंग पर पड़ने वाले सूर्य के प्रकाश को, भगवान सूर्य द्वारा भगवान सदाशिव कि की जाने वाली पूजा के रूप में देखा जाता है।
नागेश्वरनस्वामी मन्दिर में तीन गोपुरम है। केंद्रीय मन्दिर के दाहिनी ओर माता ब्रुगन्नायकी का मन्दिर और नटराज सभा है। नटराज सभा को दो घोड़ों और चार हाथियों द्वारा खींचे गए रथ के रूप में सुन्दर रूप से निर्मित किया गया है। जैसा कुम्भकोणम के सारंगपानि और ऐरावतेश्वर मन्दिर में पायें गए है। जिसके पहिए की १२ तीलियाँ १२ राशियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। जिसकी अन्य उल्लेखनीय विशेषता यह है कि माता शिवकामी भगवान नटराज के नृत्य के लिए ताल बजा रही है वही भगवान विष्णु बांसुरी बजा रहे है।
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यह विशाल मन्दिर नवग्रह में से एक राहु को समर्पित है। मन्दिर में पूजा व दर्शन का समय प्रतिदिन प्रातः ६ बजे से अपराह्न १२:३० बजे तक व सायं ४:३० बजे से रात्रि ९ बजे तक खुला रहता है, जिसमें ६ प्रकार के धार्मिक अनुष्ठान किये जाते है। जिन्हें प्रतिदिन ५ बार किया जाता है। प्रातः ६:३० बजे - उष्टकलाम, प्रातः ८ बजे - कलासंथी, १२ बजे अपराह्न - उचीकलम, सायं ५ :०० बजे - सयाराक्षई और रात्रि ८ बजे - अर्धजमाम। प्रत्येक अनुष्ठान के ४ चरण होते है - अभिषेक (स्नान), अलंगरम (श्रृंगार), निवेथानम (नैवेद्य अर्पण) और दीपा अरदानई (आरती)। पूजा के दौरान नागस्वरम (पाइप वाद्य यन्त्र), तविल (टक्कर वाद्य यन्त्र) के साथ वेदों के धार्मिक निर्देश पुजारियों द्वारा पढ़े जाते है।
मन्दिर में अन्य शिव मन्दिरों की तरह ही सोमवार और शुक्रवार को साप्ताहिक अनुष्ठान, प्रदोष जैसे पाक्षिक व मासिक पर्व जैसे अमावसई, किरुथिगई, पूर्णनामि आदि उत्सव मनायें जाते है। फरवरी से मार्च माह के दौरान मनाया जाने वाला महाशिवरात्रि उत्सव मन्दिर में मनाया जाने वाला मुख्य पर्वोत्सव है।
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एक हिन्दू मान्यता के अनुसार, सर्प-दोष या हानिकारक प्रभाव से परेशान लोग राहु-केतु की एक ही दिन में नागेश्वर में सुबह, थिरुनागेश्वरम नागनाथर दोपहर में, तिरुपंबुरम पंबुस्वरार शाम को और नागूर के दर्शन करके इससे राहत प्राप्त कर सकते है।
2 टिप्पणियाँ
Jai Shiv Shambhu.
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