कुम्भेश्वर मन्दिर, जिसे आदिकुम्भेश्वर मन्दिर या थिरुकुदामुकू के नाम से भी जाना जाता है, भगवान शिव को समर्पित है। आदिकुम्भेश्वर मन्दिर तमिलनाडु के तंजावुर जिले के कुम्भकोणम में स्थित है। इस प्राचीन ऐतिहासिक मंदिर में भगवान शिव को आदिकुम्भेश्वर या अमुथेश्वरर और भगवती पार्वती को मंगलाम्बिगई अम्मन या मंथरा पीठेश्वरी के रूप में पूजा जाता है। यह मन्दिर कुम्भकोणम के सप्त मंदिरों का हिस्सा है।
आदिकुम्भेश्वर और मंगलाम्बिगई अम्मन
कुम्भकोणम जिसका इतिहास संगम युग का है, के नाम का अर्थ है "मिट्टी के बर्तन का कोना"। पौराणिक कथाओं के अनुसार प्रलयकाल के बाद नयी सृष्टि की रचना के लिए जब ब्रम्हा जी ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि पुनः सृष्टि की रचना किस स्थान से की जाये तो शिव जी ने उन्हें एक कुम्भ जिसमे सभी प्राणियों के जीव बीज एक तरह का अमृत रख कर जल में तैराने को कहा, कुम्भ जिस स्थान पर रुका उसे शिव जी ने अपने तीर द्वारा तोड़ दिया जिससे जीवन अमृत फैल गया और जीवन की पुर्नउत्पत्ति हुई। कुम्भ के कारण इस स्थान का नाम कुम्भकोणम पड़ा। तथा चूंकि मन्दिर का शिवलिंग एक स्वयंभू शिवलिंग है, जिसके बारे में माना जाता है की इसका निर्माण शिव जी ने अमरता और रेंत के अमृत के मिश्रण से बनाया था। जिसके कारण इस मन्दिर को आदिकुम्भेश्वर मन्दिर के नाम से भी जाना जाता है। इस उपलक्ष्य में इस स्थान पर प्रति १२ वर्ष में आयोजित होने वाले महामहम उत्सव मनाया जाता है, जो की उत्तर भारत के कुम्भ पर्व की ही तरह ही होता है। इतिहास के प्रेमियों, हिन्दू धर्म और पौराणिक भारत की जड़ों जानने के इच्छुक लोगो के लिए, कुम्भकोणम और आदिकुम्भेश्वर मन्दिर जैसा आनन्दमयी स्थान और क्या हो सकता है ?
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पोट्रमराय जलकुण्ड |
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मंदिर का निर्माण ९वीं शताब्दी के चोलकाल में किया गया था। वर्तमान चिनाई संरचना ९वीं शताब्दी में चोल राजवंश के दौरान बनाई गयी थी। मंदिर का रख रखाव और प्रशासन तमिलनाडु सरकार के हिन्दू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग द्वारा किया जाता है।
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शिवलिंग नीचे की तरफ चौड़ा तथा शीर्ष की तरफ संकरा है जो दुनिया में दुर्लभतम शिवलिंगो में से एक है। मन्दिर में चाँदी की परत चढ़ाए पांच रथ है, जिनका उपयोग उत्सवों के अवसर पर मन्दिर के देवताओं को ले जाने के लिए किया जाता है। मन्दिर में पूजा व दर्शन का समय प्रतिदिन प्रातः ६ बजे से अपराह्न १२:३० बजे तक व सायं ४ बजे से रात्रि ९:३० बजे तक खुला रहता है, जिसमें ६ प्रकार के धार्मिक अनुष्ठान किये जाते है। प्रातः ६ बजे - उषाथकलम, प्रातः ८ बजे - कलासंथी, १० बजे अपराह्न - उचीकलम, सायं ५ बजे - सयाराक्षई, सायं ७:०० बजे - इरादमकलाम और रात्रि ८ बजे - अर्धजमाम। प्रत्येक अनुष्ठान के ४ चरण होते है - अभिषेक (स्नान), अलंगरम (श्रृंगार), निवेथानम (नैवेद्य अर्पण) और दीपा अरदानई (आरती)। मन्दिर में अन्य शिव मन्दिरों की तरह ही सोमवार और शुक्रवार को साप्ताहिक अनुष्ठान, प्रदोष जैसे पाक्षिक व मासिक पर्व जैसे अमावसई, किरुथिगई, पूर्णनामि आदि उत्सव मनायें जाते है। फरवरी से मार्च माह के दौरान मनाया जाने वाला महाशिवरात्रि उत्सव मन्दिर में मनाया जाने वाला मुख्य पर्वोत्सव है।
कुम्भकोणम कैसे पहुँचे?
कुम्भकोणम सड़क और रेलमार्ग से जुड़ा हुआ एक सफल यातायात तंत्र है। चेन्नई, तंजावुर, मन्नारगुडी, तिरुचिरापल्ली, चिदंबरम, थिरुवरुर, मयिलादुथुराई, नागपट्टिनम, कोयंबटूर, पलानी, तिरुप्पुर, थूथुकुड़ी, रामेश्वरम, सलेम, एड़ापड्डी, वेल्लोर से कुम्भकोणम के लिए नियमित सरकारी व निजी बस सेवा उपलब्ध है। मैसूर-मयिलादुथुराई एक्सप्रेस, कुम्भकोणम को मैसूर और बंगळुरु से जोड़ता है। नियमित ट्रेन जो कुम्भकोणम को राज्य के प्रमुख शहरों जैसे चेन्नई, तिरुचिरापल्ली, मदुरै और कोयंबटूर से जोड़ती है। यदि आप जल यात्रा के शौकीन है तो आप नागपट्टिनम बंदरगाह जो कुम्भकोणम से ५० किमी दूर है तक समुद्रीय यात्रा का आनंद ले सकते है तत्पश्यात वह से आप रेल अथवा सड़क मार्ग से कुम्भकोणम पहुंच सकते है। सबसे निकट हवाई अड्डा तिरुचिरापल्ली (९१किमी) की दूरी पर है।
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