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उमानन्द द्वीप ( मयूर आइलैंड ) गुवाहाटी

भारत एक ऐसा देश है जिसने आधुनिक ही नहीं प्राचीनकाल से अनेक रहस्यों को अपनी गोद में समाया हुआ है और इन रहस्यों को हल करने की मनुष्य के चाह ने ही सम्पूर्ण विश्व को भारत से जोड़ दिया है। इसी श्रृंख्ला में सम्पूर्ण विश्व का सबसे छोटा नदी द्वीप भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम के गुहावटी में ब्रह्मपुत्र नदी में स्थित उमानन्द द्वीप है। हालाँकि उमानन्द द्वीप संसार का सबसे छोटा नदी द्वीप है, फिर भी यह असम राज्य का सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। किंवदंतियों से भरा यह द्वीप जिस पर मानव सभ्यता और वन सभ्यता एक साथ आपसी संजयस्य के साथ शांति से रहते है। आने वाले पर्यटकों को एक प्राचीन और शांत प्रदान करता है। द्वीप की मुख्य प्रसिद्धि का कारण यहाँ पर स्थित उमानन्द मन्दिर है। गुवाहाटी उच्च न्यायालय के पास ही स्थित उमानन्द घाट से १० मिनट की छोटी मोटरबोट ( फेरी ) के द्वारा शहर की हलचल से दूर उमानन्द द्वीप पर पहुंचा जा सकता है। 

उमानन्द द्वीप ( मयूर आइलैंड ) गुवाहाटी

उमानन्द द्वीप के नाम से जुडी किंवदंती 

भगवान शिव की वामभागी प्रकृति स्वरूपा भगवती पार्वती को असमिया भाषा में "उमा" नाम से निकला है। पौराणिक मान्यता के अनुसार शिव देवी पार्वती के साथ इस द्वीप पर रहते थे। चूंकि इस द्वीप का निर्माण भगवान शिव ने देवी उमा के आनन्द के लिए किया था। इसलिए उमा के आनन्द का स्थल होने के कारण इसे उमानन्द ( उमा + आनन्द ) के नाम से पुकारा जाता है। 

एक ब्रिटिश अधिकारी ने इस द्वीप की संरचना मोर के पंख के समान होने के कारण इसे मयूर द्वीप के नाम से भी बुलाया जाता है। 

कालिका पुराण के अनुसार एक अन्य किंवदंती है, भगवान शिव देवी सटी के आत्मदाह के बाद इस द्वीप पर योगसमाधी में लीन थे और कामदेव ने देवकार्य को सिद्ध करने के उद्देश्य से उन्हें समाधी से उठाने के लिए उन पर अपने काम बाण का प्रयोग किया। जिससे असमय उनका ध्यान भंग होने से उन्होंने कामदेव की तरफ अपने तीसरे नेत्र से देखने के कारण कामदेव वही पर भस्म हो गए। इस कारण इस द्वीप का वर्णन भस्माचल ( भस्म - अर्थ राख और अचल - अर्थ पहाड़ी ) मतलब राख की पहाड़ी के नाम से भी जाना जाता है। 

उमानन्द द्वीप का मुख्य आकर्षण 

उमानन्द मन्दिर 

उमानन्द मन्दिर, उमानन्द द्वीप ब्रह्मपुत्र के पास स्थित भगवान शिव को समर्पित एक सुन्दर मन्दिर है। मन्दिर का आध्यात्मिक वातावरण के साथ नदी की प्राकृतिक सुंदरता लोगों को यहाँ आने के लिए प्रेरित करती है। भस्मकूट पहाड़ी के शिखर पर असमिया शिल्पकारों द्वारा निर्मित भगवान शिव को समर्पित सुन्दर मन्दिर है जिसमे मुख्य देव  के अतिरिक्त अन्य देवी देवताओं की प्रतिमाये भी दर्शनीय है। 

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उमानन्द मन्दिर का इतिहास 

उमानन्द मन्दिर के प्रारंभिक स्वरुप का निर्माण अहोम शासक गदाधर सिंह के संरक्षण में किया गया था । परन्तु १८९७ में आये विनाशकारी भूकम्प ने इस उमानन्द मन्दिर को भारी क्षति हुई थी। जिसकी मरम्मत का कार्य स्थानीय व्यापारी द्वारा किया गया था। मन्दिर हिन्दू वैष्णववाद और शैववाद दोनों का मिश्रित रूप है। परिसर में गणेश, शिव, पार्वती, विष्णु और अन्य देवताओं के मन्दिर असमिया स्थापत्य शैली में बने हुए है। 

उमानन्द मन्दिर का महत्व 

उमानन्द द्वीप पर स्थित यह मन्दिर अन्य मन्दिरों से भिन्न है क्योकि धर्म के शोर शराबे से दूर यह स्थल शांत और प्रकृति से जुड़ने का अवसर देता है। आने वाले भक्त यहाँ कुछ देर प्रकृति की गोद में विश्राम करना पसन्द करते है। लोककथाओं में इसके महत्व का मूल रूप ज्ञात होता है, मान्यता है देवी ब्रह्मपुत्र भगवान शिव की दासी है और इस कारण वह उन्हें किसी भी प्रकार से क्षति नहीं पंहुचा सकती है। इसका प्रमाण अनेको बार आयी ब्रह्मपुत्र में आयी बाढ़ है परन्तु मन्दिर में बाढ़ का पानी कभी भी नहीं प्रवेश नहीं करता है। ऐसी मान्यता है जिस दिन भी ब्रह्मपुत्र ने भगवान शिव को स्पर्श कर लिया उस दिन सम्पूर्ण गुवाहाटी जल में विलय हो जायेगा। मन्दिर के विषय में एक धारणा है की कामख्या देवी के दर्शन के पूर्व उमानन्द के दर्शन करना अनिवार्य है, अन्यथा कामाख्या देवी के दर्शन का फल नहीं प्राप्त होता है। 
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उमानन्द मन्दिर का समय 

मन्दिर पूरे वर्ष प्रातः ५:३० बजे से सायं ६:०० बजे तक दर्शन के लिए खुला रहता है किन्तु सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित सबसे शुभ दिन है। इस लिए उस दिन अन्य दिनों की अपेक्षा भक्तों की भीड़ कुछ ज्यादा ही होती है। परन्तु बोट सेवा प्रातः ७:०० बजे से सायं ५:०० बजे तक ही उपलब्ध होने के कारण प्रातः आधे घण्टे और सायं के आखरी आधे घण्टे सामान्य समय की अपेक्षा अधिक भीड़ वाले होते है। 

उमानन्द मन्दिर में मनाये जाने वाला मुख्य समारोह 

अन्य शिव मन्दिरों की ही भांति महाशिवरात्रि का पर्व मन्दिर में मनाया जाने वाला सबसे प्रमुख समारोह है। इस दिन मन्दिर में देश भर से बड़ी संख्या में भक्त उमानन्द मन्दिर पहुंचते है। 

उमानन्द द्वीप की यात्रा में ध्यान रखने योग्य कार्य

  • द्वीप जैव विविधता से परिपूर्ण है। अतः इसे नुकसान पहुंचाने की चेष्टा न करें। इस बात का ध्यान सर्वाधिक रूप से रखना प्रत्येक पर्यटक का कार्य है। 
  • द्वीप पर जाने से पूर्व अपने कैमरे को चार्ज करना न भूले, क्योकि बोट की इस यात्रा में आपका सामना बहुत सुन्दर पक्षियों से पड़ने वाला है। जो आप की इस यात्रा में आपको जोश से भर देंगे। 
  • द्वीप पर इधर उधर कूड़ा न डालें। 
  • अपनी यात्रा के दौरान पारम्परिक असमिया और बंगाली व्यंजनों को चखना भूल कर भी न भूले। 

उमानन्द द्वीप कैसे पहुंचे?

हवाई मार्ग से 

उमानन्द द्वीप पहुंचने के लिए सबसे निकटतम हवाई अड्डा गुवाहाटी में स्थित है। जो देश के सभी छोटे बड़े हवाई अड्डों से एक सुनियोजित रूप से जुड़ा हुआ है। उमानन्द द्वीप की दूरी हवाई अड्डे से लगभग २५ किमी के आसपास है जिसके लिए हवाईअड्डे से बाहर निकलते ही बड़ी ही आसानी से टैक्सी मिल जाती है। 

रेल मार्ग से 

उमानन्द द्वीप पहुंचने के लिए सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन गुवाहाटी में स्थित है। जो देश के सभी छोटे बड़े शहरों से एक सुनियोजित रूप से जुड़ा हुआ है। उमानन्द द्वीप की दूरी रेलवे स्टेशन से लगभग २ किमी के आसपास है।  जिसके लिए आसानी से टैक्सी मिल जाती है। 

सड़क मार्ग से 

शहर के निकट स्थित होने के कारण संसाधन की सुगमता पर कोई भी प्रश्न ही नहीं उठता है।  

नदी मार्ग से 

यदि आप अपनी यात्रा को आनंददायक बनाना चाहते है तो कचारी घाट तक आप को राजकीय बीएस अथवा टैक्सी लेनी चाहिए उसके बाद आप नाव द्वारा अपनी यात्रा का आनंद ले सकते है इस मार्ग में आपको ब्रह्मपुत्र नदी के अन्य घाटों को देखने और उनके आसपास के स्थानीय विक्रेताओं द्वारा स्थानीय वस्तुओं के खरीदने का अवसर मिलेगा। 



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