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हयग्रीव माधव मन्दिर हाजौ

हयग्रीव माधव मन्दिर पूर्वोत्तर भारत के गुवाहाटी के हाजौ नाम के स्थान पर स्थित मोनिकट पहाड़ी पर स्थित भगवान विष्णु का प्रसिद्ध मन्दिर है। यह एक पत्थर का मन्दिर हैं। जिसमें हयग्रीव माधव की सुन्दर छवि स्थित है। हिन्दुओं द्वारा इस प्राचीन देव स्थल पर भगवान श्री विष्णु के हयग्रीव स्वरुप ( भगवान विष्णु के अवतार जिसका मुख घोड़े का है ) की पूजा की जाती है। मन्दिर का निर्माण छठीं शताब्दी में १५८३ ई. में राजा रघु देव नारायण के द्वारा करवाया गया था। हाजौ का हयग्रीव माधव मन्दिर केवल हिन्दुओं के ही लिए नहीं अपितु बौद्ध धर्म के लिए भी समान रूप से आस्था का केन्द्र है क्योंकि माना जाता है कि यहाँ भगवान बुद्ध ने निर्वाण प्राप्त किया था। 


मन्दिर से जुडी हुई दंतकथा

हयग्रीव माधव मन्दिर हाजौ
भगवान हयग्रीव 
हयग्रीव माधव के अवतार के सम्बन्ध में हिन्दू पुराणों और महाकाव्यों में विभिन्न कथायें है। जिनमें से मुख्य वर्णन महाभारत में किया गया है। एक भगवान विष्णु शेष सैय्या पर योगनिंद्रा में लीन थे और उनकी नाभि से उत्पन्न चतुर्मुखी ब्रह्मा जी कमल पर विराजमान थे की वहां मधु और कैटभ प्रकट हुए और उन्होंने उनके हाथों से चारों वेदों को छीन लिया और उन्हें लेकर रसातल में चले गए। ब्रह्मा जी की अनुनय विनय पर जगपालक श्री हरि ने चारो वेदों को रसातल से वापस लाने के लिए हयग्रीव रूप को धारण किया और रसातल से पुनः वेदों को प्राप्त कर ब्रह्मा जी को सौप दिया। तत्पश्यात धरती के इस स्थल पर विश्राम के लिए आ गए। उनके इसी विश्राम स्थल पर निर्मित मन्दिर को आज हयग्रीव माधव मन्दिर हाजौ के नाम से जाना जाता है।

मत्स्य पुराण के अनुसार, भगवान विष्णु ने हयग्रीव अवतार उस समय लिया जब सृष्टि जल रही थी और चारो वेदों के साथ ही साथ देवी भागवत और स्कन्द पुराण की रक्षा करना आवश्यक था। उनकी रक्षा के बाद वे यहाँ पर विश्राम करने आ गए थे। 

अपुनर्भव नगरी में एक हयग्रीव नाम का असुर रहता था जिसने पूरी सृष्टि को तहस नहस कर रखा था। जिसके उत्पातों से सृष्टि को बचाने के लिए भगवान जनार्दन ने हयग्रीव का अवतार लिया और असुर का वध करके सृष्टि की रक्षा की। 

इसके अतिरिक्त मोनिकट पहाड़ी को लेकर तिब्बत और भूटान के बौद्ध अनुयायी मानते है की ठंड में इस स्थल पर भगवान बुद्ध तप करने आते थे इसलिए बौद्ध धर्म में भी इस स्थल को एक तीर्थ के रूप में जाना जाता है। 

मन्दिर की वास्तुकला 

स्थानीय स्रोतों से ज्ञात होता है की मन्दिर के मूल रूप को नष्ट कर दिया गया था। जिसका पुर्न निर्माण छठवीं शताब्दी में कराया गया। मन्दिर एक अष्ट कोणीय आकृति में निर्मित किया गया है। जिसका व्यास ३० फीट है। मन्दिर का गुम्बद पिरामिड नुमा है। जिसे पुरानी सामग्री का प्रयोग करके पुर्न निर्मित किया गया है। छोटी से पहाड़ी पर बने इस मन्दिर तक पहुंचने के लिए पत्थर की सीढिया है जो मुख्य क्षेत्र तक जाती है। 

संरचना के तीन भाग है - उच्च तहखाना, मध्य भाग और शिखर। चबूतरे से २ फीट की ऊंचाई पर गजथरा की मूर्तियां है। जो की वर्तमान में क्षत विक्षत अवस्था में है। प्रत्येक हाथी की ऊंचाई १६" की है। यह सभी डिजाइन एलोरा में मिलने वाली कालकृतियों के ढलाई शैली के सामान है। 

गर्भ गृह १४ फीट चौकोर आकार का है जिसमे पत्थर की सीढ़ियों से उतर सकते है। अंदर एक चबूतरे पर विग्रह उपस्थित है। जो की काळे रंग के पत्थर पर तराश कर बनाई गयी है। इसके अतिरिक्त मंदिर के उपदेवता के रूप में चार मूर्तियां जो की अन्य देवताओं की है गर्भगृह में ही स्थापित की गयी हुई है। गर्भगृह में एक अखंड दीप जलता रहता है, जिसमे तेल एक ट्यूब के माध्यम से पहुँचता रहता है। 

मन्दिर के पास एक बड़ा जलकुण्ड है, जिसे माधव पुखुरी के नाम से भी जाना जाता है। 

मन्दिर में प्रतिवर्ष मनाये जाने त्यौहार 

मन्दिर में प्रतिवर्ष दौल, बिहू और कृष्ण जन्माष्टमी के त्योहारों को बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। जिसमे स्थानीय लोगो के साथ ही साथ देश के कोने कोने से भक्त पहुंचते है। 

मन्दिर का समय 

मन्दिर भक्तों के लिए प्रातः ६:०० बजे से रात्रि ९:०० बजे तक खुला रहता है। दर्शन के लिए सबसे उपयुक्त समय यूं तो सम्पूर्ण वर्ष ही है परन्तु वार्षिक उत्सवों के समय मन्दिर की शोभा और भी बढ़ जाती है। यही वह समय है जब मन्दिर में दर्शन के लिया आने का सबसे उपयुक्त समय है। 

मन्दिर तक कैसे पहुंचे?

सड़क मार्ग के द्वारा मन्दिर 

यूँ तो असम का कामरूप क्षेत्र आसपास के सभी शहरों से एक सुनियोजित रूप से जुड़ा है। जिसके लिए नियमित बस सेवाए तो उपलब्द्ध है साथ ही साथ प्राइवेट टैक्सी भी उपलब्ध है जिनके द्वारा सुगमता से मंदिर दर्शन के लिए पहुंचा जा सकता है। 

रेल मार्ग के द्वारा मन्दिर 

सबसे निकटम रेलवे स्टेशन के रूप में गुवाहाटी एक सुन्दर विकल्प है। जिसके बाहर निकलते ही मंदिर तक पहुंचने के लिए किराये पर उपलब्ध टैक्सी मिल जाएँगी। 

वायु मार्ग के द्वारा मन्दिर 

सबसे निकटम हवाई अड्डे के रूप में गुवाहाटी हवाई अड्डा उपलब्ध है। जो देश के सभी मुख्य हवाई अड्डों से जुड़ा हुआ है। जिसके बाहर निकलते ही मंदिर तक पहुंचने के लिए किराये पर उपलब्ध टैक्सी व स्थानीय बस उपलब्ध है। 



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