ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
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महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग Image Source - Google Image by wallpaperaccess.com |
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्यप्रदेश की शिप्रा नदी के तट पर स्थित पौराणिक शहर उज्जैन में स्थित एक सामान्य सा दिखने वाला ज्योतिर्लिंग है। परन्तु जब आप उसे दिमाग को दूर रख कर आधात्यम और मन से अनुभव करने का प्रयास करेंगें तो यह आप को उतना ही महत्वपूर्ण लगेगा जितना जीने के लिए सांस लेना। यह द्वादश ज्योतिर्लिंगों में तीसरा और सबसे प्रमुख और श्रेष्ठ ज्योतिर्लिंग है। जिसकी महिमा का विशद वर्णन विभिन्न पुराणों में किया गया है।
सनातन धर्म में सभी देवों में भगवान शिव को सबसे उच्च स्थान प्राप्त है। इन्हें कालों का काल महाकाल कहा जाता है। इनकी कृपा से काल भी मनुष्य का कुछ नहीं बिगाड़ सकता है।
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुडी किंवदंती
रत्नमाल पर्वत पर दूषण नामक राक्षस जिसे ब्रह्मा जी का वरदान मिला था, निवास करता था। वरदान के मद में चूर उसने अवंती नगर के ब्राह्मणों को उनके धार्मिक कर्मकांडों को करने से रोकने लगा। राक्षस के इस अधार्मिक कृत्य से ऋषि मुनि और देव उपासक बहुत परेशान हो गया। तब इस क्षेत्र में निवास करने वाले ब्राह्मणों ने भगवान शिव शंकर से अपनी रक्षा के लिए प्रार्थना करना शुरू कर दिया। ब्राह्मणों के इस विनय से भगवान शिव ने पहले तो राक्षस को चेतावनी दी, परन्तु इस चेतावनी का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। एक दिन राक्षस ने ब्राह्मणों पर हमला कर दिया। तब दूषण दैत्य से अपने शरणागत ब्राह्मणों को बचाने के लिए भगवान शिव ने धरती फाड़कर महाकाल के रूप में प्रकट हुए और क्रोधित शिव ने अपनी एक हुंकार से ही दूषण दैत्य को भस्म कर दिया। इसे देखकर ब्राह्मण भक्त अति प्रसन्न हुए, तथा भगवान शिव को उस स्थल पर ही निवास करने का निवेदन करने लगे। ब्राह्मणों के निवेदन से अभीभूत होकर होकर भगवान शिव वहीं ज्योति स्वरुप में विराजमान हो गए। इसी वजह से इस जगह का नाम महाकालेश्वर पड़ा गया, तथा ज्योतिस्वरूप लिंग को महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है।
महाकालेश्वर मन्दिर से जुड़ा इतिहास
महाकालेश्वर मंदिर पहली बार कब अस्तित्व में आया इसका कोई भी साक्ष्य उपलब्ध नहीं है, परन्तु ऐसी पौराणिक मान्यता है की इसकी स्थापना जग रचियता भगवान ब्रह्मा जी के द्वारा की गयी थी। अनेक प्राचीन काव्य ग्रंथों में महाकालेश्वर मन्दिर की भव्यता का वर्णन किया गया है। जिसकी नींव और चबूतरा पत्थरों से निर्मित था। तथा मन्दिर लकड़ी के नक्काशीदार खम्भों पर टिका हुआ था। मन्दिर में किसी भी प्रकार का शिखर नहीं था, छते ज्यादातर सपाट थी।
गुप्तकाल के पतन के बाद मैत्रक, चालुक्य, कलचुरी, पुष्यभूति, गुर्जर, प्रतिहार, राष्ट्रकूट आदि कई राजवंशो ने अपना प्रभुत्व उज्जैन पर स्थापित किया परन्तु उज्जैन के वास्तविक स्वामी के आगे वे भी नतमस्तक रहे तथा इस अवधि में उन्होंने अनेक मन्दिरों और कुंडो का निर्माण करवाया। आठवें दशक में एक गजनवी सेनापति ने इस प्रान्त को बेरहमी से लूटा तथा अनेक मन्दिरों को नष्ट कर दिया। लेकिन परमार शासकों ने सभी का पुनर्निर्माण अतिशीघ्र रूप से करवा दिया। जिसका प्रमाण कुछ शिलालेखों से होता है।
१२वी शताब्दी के उत्तरार्ध में उदयादित्य और नरवर्मन के शासनकाल में मन्दिर के पुर्ननिर्माण का कार्य प्रारम्भ किया गया। जिसमें भूमिजा शैली का प्रयोग किया था। जिसकी मुख्य विशेषता इसकी तारे की आकृति की योजना और शिखर थे। १८विं शताब्दी में उज्जैन मराठा शासकों के अधीनस्त आ गया, जो इसका स्वर्णकाल था। पेशवा बाजीराव प्रथम द्वारा अपने सहयोगी सेनापति रानोजी शिंदे को उज्जैन का प्रशासन कार्य को करने के अधिकार दिए। जिनके आदेश पर उनके दीवान सुखानाकर रामचन्द्र बाबा शेनवी थे, ने अनेक विद्वान पंडितो और शुभचिंतको के सुझाव पर महाकाल मन्दिर का पुनर्निर्माण करवाया।
महाकालेश्वर मन्दिर का आर्किटेक्चर
मन्दिर की इमारत तीन मंजिला है। जिसके निचले भाग में भगवान महाकालेश्वर शिवलिंग स्वरुप में , मध्य भाग में ओंकारेश्वर शिवलिंग स्वरुप में और सबसे ऊपरी भाग में नागचंद्रेश्वर छवि रूप में विराजमान है। परिसर में कोटि तीर्थ नामक बहुत बड़े आकार का एक कुंड है, जिसका निर्माण सर्वतोभद्र शैली में बनाया गया है। जिसके मार्ग पर परमार शासकों के द्वारा निर्मित मूर्तिकला का भव्य प्रतिनिधित्व करने वाली नक्काशीदार चित्रण उपलब्ध है। इस कुण्ड के पूर्व में एक बड़े आकार का बरामदा है, जिसमें गर्भगृह की और जाने के लिए प्रवेश द्वार है। मुख्य मन्दिर के दक्षिण में अनेक छोटे मन्दिर है, जिनमें वृद्ध महाकालेश्वर, अनादि कल्पेश्वर और सप्तऋषि के मन्दिर प्रमुख है।
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महाकालेश्वर मन्दिर Image Source - Google by Tripsavvy |
महाकालेश्वर लिंगम कोलोसस है। चांदी से मढ़वाया गया नागा जलाधारी और गर्भगृह की छत को ढकने वाली चांदी की प्लेट मन्दिर और गर्भगृह को अतिरक्त भव्यता प्रदान करती है। गर्भगृह में शिव परिवार के आकर्षक और छोटे चित्र देखे जा सकते है। दीवारों पर शास्त्रीय स्तुति के रूप में शिव स्तुति को दर्शाया गया है। नंदा दीपक जो हमेशा ही जलता रहता है। बाहर जाने के मार्ग पर एक हाल है जिसमें विनय मुद्रा में आकर्षक धातु के नंदी के दर्शन होते है।
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नन्दी Image Source - Google |
नागचंद्रेश्वर के दर्शन भक्तो को सिर्फ और सिर्फ सावन माह में मनाई जाने वाली नागपंचमी के पावन दिन पर ही उपलब्ध होते है। जहाँ भगवान शिव और माता पार्वती, के साथ एक दस फण वाले सर्प पर विराजमान है।
महाकालेश्वर मन्दिर में की जाने वाली भस्म आरती
महाकालेश्वर मन्दिर में प्रतिदिन की जाने वाली भस्म आरती मन्दिर में किये जाने वाले अनुष्ठानों का प्रमुख आकर्षण है। सूर्योदय के पूर्व भस्म आरती का आयोजन किया जाता है। इस धार्मिक अनुष्ठान के दौरान भगवान के शिवलिंग की विभिन्न घाटों से लायी गयी पवित्र राख से पूजा की जाती है। प्रार्थना के बाद उस राख से शिवलिंग पर श्रृंगार किया जाता है।
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भस्म आरती करते हुए पुजारी Image Source - Google by jagran.com |
कुछ वर्षों तक श्मशान से राख लाने की परम्परा थी परन्तु कुछ वर्षों से इसमें बदलाव हुआ है और चिता की भस्म के स्थान पर कपिला गाय के उपलों, शमी, पीपल, पलास, अमलतास और बेर की लकड़ी को कपडे से छानकर जलाकर उसकी राख का प्रयोग किया जाने लगा है।
चूंकि भस्म को ब्रम्हांड का सार माना जाता है इसलिए भगवान इसे अंगीकार करना पसन्द करते है। इस आरती में शामिल होने से इस ज्योतिर्लिंग की यात्रा के सुख को आनन्द से भर देता है। क्योंकि संसार का एकमात्र ज्योतिर्लिंग मन्दिर है जहां यह आरती की जाती है।
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भस्म आरती Image Source - Google |
मन्दिर के नियमो के अनुसार आरती में उपस्थित स्त्रियों को आरती के दौरान घूँघट रखना आवश्यक है, क्योंकि उन्हें इस आरती को देखने का अधिकार नहीं है। साथ ही साथ पुजारी भी आरती में केवल धोती ही धारण कर सकते है। अन्य किसी भी प्रकार के वस्त्र को धारण करना वर्जित है।
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इस आरती की बुकिंग के लिए ऑनलाइन बुकिंग सुविधा उपलब्ध है। इसके लिए एक दिन पहले आवेदन करना होगा आवेदन केवल दोपहर १२:३० बजे तक स्वीकार किये जाते है जिसकी सूंची शाम ७:०० बजे सूंची घोषित की जाती है। आपको भस्म आरती में सम्मिलित होने के लिए किसी फोटो पहचान पत्र (पैन कार्ड मान्य नहीं है ) की आवश्यकता होगी।
महाकालेश्वर मन्दिर में पूजा का समय
हिन्दू पंचांग के माह चैत्र से आश्विन तक
| हिन्दू पंचांग के माह कार्तिक से फाल्गुन तक
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महाकालेश्वर मन्दिर में दर्शन के लिए ड्रेस कोड
सामान्य दर्शनों के लिए किसी भी विशेष प्रकार के ड्रेस कोड की आवश्यकता नहीं है परन्तु यदि आप भस्म आरती और जलाभिषेक में उपस्थित होना चाहते है तो आपको धोती व शाल की आवश्यकता होगी। यदि आप अपने साथ ऐसे नहीं ले जाते है तो चिंता की बात नहीं है क्योंकि मन्दिर के बाहर यह पोशाक किराये पर भी मिल जाती है।महिला दर्शनार्थी सिर्फ साड़ी में ही दर्शन कर सकती है।
महाकालेश्वर मन्दिर में दर्शन के लिए जाने का सबसे अच्छा समय
महाकालेश्वर मन्दिर में दर्शन के लिए महाशिवरात्रि व श्रावण मास का समय सबसे अच्छा समय है। महाशिवरात्रि का पर्व मन्दिर में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण उत्सव है। जिसमे आने वाले भक्त, शिव की रात के उत्सव का हिस्सा बन सकते है। इस दिन सभी भक्त दिन और रात का उपवास करते है और शिवलिंग की पूजा व अनुष्ठान करते है।
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उज्जैन के राजा भगवान महाकालेश्वर |
भगवान महाकालेश्वर जो उज्जैन के राजा है। श्रावण मास के आखिरी सोमवार को अपनी प्रजा से मिलने के लिए पालकी में बैठ कर मन्दिर से निकल कर सड़को पर आते है। जो विशेष रूप से लोगो का ध्यान आकर्षित करता है।
इसके अतिरिक्त विजयादशमी का समय भी मन्दिर में दर्शन के लिए आने का एक अच्छा समय है।
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़े कुछ रोचक तथ्य
- महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग सृष्टि का एक मात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है जिसका मुख दक्षिण दिशा की ओर है। ऐसा इसलिए क्योंकि मृत्यु की दिशा दक्षिण मानी जाती है। जो इस बात का प्रतीक है की भगवान शिव मृत्यु के देवता है।
- कोई भी नेता, मन्त्री, राजपरिवार या वृद्ध पुरुष या महिला महाकालेश्वर के राज्य में रात्रि में निवास नहीं कर सकता।
- किसी भी बारात जिसमें दूल्हा घोड़े पर बैठा हुआ हो मंदिर के सामने से नहीं गुजर सकती है।
- मान्यता है महाकालेश्वर मन्दिर धरती का केन्द्र बिंदु है जिस पर सूर्य की किरणें सदैव ९० डिग्री में पड़ती है।
- महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग एक स्वयंभू लिंग है, इसलिए यह स्वयं ही शक्ति प्राप्त करता है। इसे अन्य लिंगो की भांति शक्ति के लिए किसी मन्त्र की आवश्यकता नहीं होती है।
- मन्दिर में चढ़ाये गए प्रसाद को फिर से चढ़ाया जा सकता है। ऐसा विश्वास किसी अन्य मन्दिर में नहीं मिलता है।
- १९८० में सिंहस्थ महापर्व के अवसर पर मन्दिर में नंदी हाल का निर्माण किया गया था। इस अवधि के दौरान खुदाई में प्राचीन मुर्तिया पाई गयी थी।
- २०१४ में सुविधा केन्द्र और सुरंग निर्माण के समय घरी खुदाई में नरकंकाल पाए गए थे। कहा जाता है यह मंदिर श्मशान के ऊपर बना हुआ है।
- २०१९ में हॉल के विस्तार के कार्य में खुदाई के दौरान एक प्राचीन सूर्य यंत्र मिला था जो रख रखाव के अभाव में टूट गया था।
- २०२० में मुख्य द्वार के आसपास नए निर्माण के लिए की जा रही खुदाई में हजारों साल पुराने मन्दिरों के अवशेष प्राप्त हुए।
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन के लिए कैसे पहुंचे ?
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए सबसे निकटतम हवाई अड्डा इंदौर में स्थित अहिल्याबाई होल्कर हवाई अड्डा है। जहां से मंदिर की दूरी लगभग ५१ किमी के आसपास है। इंदौर हवाई अड्डे के अतिरक्त भोपाल, जयपुर और अहमदाबाद हवाई अड्डे भी एक विकल्प के रूप में चुनाव किये जा सकते है। जिनसे बाहर निकल कर आप मंदिर तक पहुंचने के लिए स्थानीय वाहन का चुनाव कर सकते है। | महाकालेश्वर मन्दिर से सबसे निकटतम ४ रेलवे स्टेशन है - उज्जैन जंक्शन ( ३ किमी ), विक्रम नगर ( १० किमी ), चिंतामन ( ९ किमी ), पिंगलेश्वर ( १२ किमी )। यह सभी स्टेशन देश के सभी प्रमुख शहरो से व्यवस्थित रूप से जुड़े हुए है। रेलवे स्टेशन पहुंचने के बाद आप मंदिर तक पहुंचने के लिए स्थानीय वाहन का चुनाव कर सकते है। | महाकालेश्वर मन्दिर दिल्ली, बैंगलुरु, मुम्बई, पुणे, भोपाल तथा देश के अन्य मुख्य शहरों आदि से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। जो महाकालेश्वर ज्योर्तिलिंग पहुंचने के लिए सबसे बढ़िया और सुविधाजनक तरीका है। |
2 टिप्पणियाँ
Keep it up bro. Good information
जवाब देंहटाएंNice information.
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