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ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग

 कावेरिका नार्मद्योः पवित्र समागमे सज्जन तारणाय। 

सदैव मंधातत्रपुरे वसंतम ओमकारमिशं शिवयेकमीडे।।

अर्थ::::: कावेरी और नर्मदा के पवित्र संगम पर सज्जनों के तारण के लिए सदा ही मान्धाता की नगरी में विराजमान ज्योतिर्लिंग स्वयंभू ओंकारेश्वर ही है। 

आदि शंकराचार्य द्वारा विरचित

मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में इंदौर से ७७ किमी और मोरटक्का से १३ किमी की दूरी पर पवित्र देवनदी नर्मदा के तट पर भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग हिन्दू धर्म का एक पवित्र देवस्थल है। यहाँ पर नर्मदा नदी दो भागों में बंट कर के आकार के एक द्वीप का निर्माण करती है, इस द्वीप को मान्धाता या शिवपुरी के नाम से जाना जाता हैं। दक्षिण वाली धारा ही मुख्य धारा मानी जाती है। इसी मान्धाता-पर्वत पर श्री ओंकारेश्वर-ज्योतिर्लिंग का मंदिर स्थित है।     

इस ॐ के आकार वाले द्वीप की लम्बाई ४ किमी और चौडाई २ किमी है में दो मन्दिर है - 

  • ओंकारेश्वर 
  • ममलेश्वर (अमलेश्वर ) 

दोनों लिंगों का स्थान और मंदिर पृथक्‌ होते भी दोनों की सत्ता और स्वरूप एक ही माना गया है। जिस ॐ शब्द के उच्चारण के बिना वेद पाठ का किया जाना असम्भव हैं। उस ओंकार का भौतिक स्वरुप यह ओंकार क्षेत्र है। जिसमें ६८ तीर्थ और ३३ कोटि देवी देवता अपने परिवार के साथ निवास करते हैं।

ओंकारेश्वर से जुडी दंतकथा

इस ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दो स्वरुप हैं।  एक को ममलेश्वर के नाम से जाना जाता है। यह नर्मदा के दक्षिण तट  पर ओंकारेश्वर से थोड़ी दूर हट कर है पृथक होते हुए भी दोनों की गणना एक ही में की जाती है।  शिवलिंग के दो स्वरुप होने की कथा पुराणों में इस प्रकार दी गई है। एक बार नारद मुनि ने विंध्य पर्वत का आथित्य स्वीकार किया और उनके यहाँ पहुंच गए। वहां विंध्य ने उनसे कहा की कि में सर्वगुण सम्पन्न हूं मेरे पास प्रत्येक प्रकार की सम्पदा है। जिसका गर्व उन्होंने नष्ट करना आवश्यक जान अहंकार नाशक देव ऋषि नारद ने एक गहरी सांस ली। उन्हें इस प्रकार गहरी साँस लेने कारण विंध्य को कुछ अचरज हुआ और उन्होंने नारद जी से पूंछा देव क्या मेरे पास किसी वस्तु की कमी है जिसे देख कर आपने गहरी सांस ली, इस पर नारद जी ने कहा मेरु पर्वत तो तुमसे भी ऊँचा है और उसके शिखर तो देवलोक तक पहुंचते है। मुझे नहीं लगता की तुममें इतनी शक्ति है। और ऐसा कह कर नारद जी वहां से चले गए। 

विंध्य पर्वत ने उसी समय निर्णय लिया की अब मैं जगत के स्वामी परमपिता भगवान शिव की आराधना और तपस्या करूँगा। ऐसा निश्चय कर वे नर्मदा के तट पर आ गए और मिट्टी का एक पार्थिव लिंग बना कर ( जहां वर्तमान में ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग है ) भगवान शिव की कठोर तपस्या करना प्रारम्भ कर दिया। कठोर तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हुए तथा विंध्य पर्वत के समक्ष प्रकट हुए और विंध्य पर्वत से वरदान मांगने को कहा। इस पर विंध्य पर्वत ने वरदान माँगा - भगवन यदि आप मुझ पर प्रसन्न है, तो कृपया कर मुझे कार्य की सिद्धि करने वाली अभीष्ट बुद्धि प्रदान करे और शिवलिंग के रूप में सदा सदा के लिए यहाँ विराजित हो जाये। 

उसी समय देवगण तथा कुछ शुद्ध बुद्धि मुनिगण भी उस स्थल पर प्रकट हुए तथा सृष्टि के कल्याण के लिए इसी स्थल पर निवास करने के लिए प्रार्थना करने लगें। देवताओं और ऋषियों के अनुनय पर भगवान शिव का पार्थिव शिवलिंग दो भागों में विभक्त हो गया। जिसमें एक प्रणव लिंग ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग (Omkareshwar Jyotirling) और दूसरा पार्थिव लिंग ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग (Mamleshwar Jyotirling) के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

एक और मान्यता के अनुसार राजा मान्धाता ने नर्मदा के किनारे इस पर्वत पर तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया था और उन्हें प्रसन्न करके इस स्थल पर निवास करने की प्रार्थना की। तभी से उक्त प्रसिद्ध तीर्थ नगरी ओंकार-मान्धाता के रुप में पुकारी जाने लगी। 

ज्योतिर्लिंग क्षेत्र से जुडी मान्यता 

ओंकारेश्वर तीर्थ नर्मदा क्षेत्र का एक सर्वश्रेष्ठ तीर्थ है। मान्यता है किसी व्यक्ति द्वारा सभी तीर्थ कर लिए जाये परन्तु जब तक वह ओंकारेश्वर आकर किये गए तीर्थों का जल भगवान शिव के शिवलिंग स्वरुप पर नहीं चढ़ाता। उसके द्वारा किये गए तीर्थों के फल उसे प्राप्त नहीं होते। 

पुराणों में देव नदी नर्मदा का अतुल्य महत्व है एक मान्यता के अनुसार किसी व्यक्ति के द्वारा इस स्थल पर नर्मदा जी के एक मात्र दर्शन से इतना पुण्यफल मिल जाता है, जितना ७ दिन तक गंगा और १५ दिन तक यमुना जी में किये गए स्न्नान से प्राप्त होता है।

ओंकारेश्वर मन्दिर का आर्किटेक्चर

ओंकारेश्वर मन्दिर का मुख्य भवन एक ऊँचे शिखर से युक्त उत्तरभारतीय वास्तुकला में बनाया गया है। जो आने वाले श्रद्वालुओं के मुख्य आकर्षण का केन्द्र है। मन्दिर का निर्माण कब और किसके द्वारा करवाया गया इसका कोई प्रामाणिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं है। मुख्य गर्भगृह पुरानी मूल शैली में बनाया गया है जिससे देखने में किसी छोटे मन्दिर के समान प्रतीत होता है। चूंकि यह छोटा मन्दिर नदी के गहरे किनारे के अत्याधिक निकट दक्षिण में ऊँचाई पर स्थित है। उत्तर की ओर स्थापित नए निर्मित विस्तृत हिस्से को आधुनिक निर्माण शैली में बनाया गया है। मन्दिर में एक विशाल सभा मण्डप है जो की लगभग १४ फुट ऊँचा है जिसमे ६० विशालकाय खम्भे है। मन्दिर ५ मंजिला इमारत है जिसमे नीचे से ऊपर श्री ओंकारेश्वर, श्री महाकालेश्वर, श्री सिध्दनाथ श्री गुप्तेश्वर और ध्वजाधारी शिखर देवता है। 

ओंकारेश्वर मन्दिर के पूजा का समय व सोमवार सवारी 

मन्दिर में प्रतिदिन ३ समय दैनिक अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता है। जिसमे प्रातः कालीन पूजा मन्दिर के ट्रस्ट के द्वारा नियुक्त पुजारी के द्वारा, दोपहर की पूजा सिंधिया घराने के द्वारा नियुक्त पुजारी के द्वारा एवं संध्या पूजन होल्कर स्टेट के द्वारा नियुक्त पुजारी के द्वारा संपन्न की जाती है। भक्त जो नर्मदा में स्न्नान करने के बाद जल से भरे पात्र, पुष्प और अन्य सामग्रियों द्वारा पुरोहित के साथ भगवान का विशेष पूजन व अभिषेक करते है।

अनुष्ठान
मंगला आरती एवं नैवेध्य अर्पण
मङ्गल दर्शन 
मध्यान्ह कालीन भोग 
मध्यान्ह दर्शन 
सायंकालीन श्रृंगार 
श्रृंगार दर्शन 
शयन श्रृंगार व आरती 
शयन श्रृंगार दर्शन
समय
प्रातः ४:३० बजे से प्रातः ५:०० बजे तक
प्रातः ५:०० बजे से मध्यान्ह १२:२० बजे तक
मध्यान्ह १२:२० बजे से मध्यान्ह १:१५ बजे तक
मध्यान्ह १:१५ बजे से सायं ४:०० बजे तक
सायं ४:०० बजे से सायं ४:१५ बजे तक 
सायं ४:१५ बजे से रात्रि ८:०० बजे तक 
रात्रि ८:३० बजे से रात्रि ९:०० बजे तक 
रात्रि ९:०० बजे से रात्रि ९:३० बजे तक 
   

🔔गर्भगृह में बिल्वपत्र और फूल आदि लेकर दर्शनार्थ आये भक्तों को जाना पूर्णतः वर्जित है।  विशेष अवसरों पर पूजा के समय में बदलाव किया जा सकता है। 

सोमवार सवारी 

प्रत्येक सोमवार को भगवान ओंकारेश्वर की तीन मुखों वाली स्वर्णखचित मूर्ति एक सुन्दर पालकी में विराजित कर ढोल नगाडों के साथ पुजारियों एवं भक्तों द्वारा जुलुस निकाला जाता है जिसे डोला या पालकी कहते हैं इस दौरान सर्वप्रथम नदी तट पर जाते हैं एवं पूजन अर्चन किया जाता है तत्पश्चात नगर के विभिन्न भागों में भ्रमण किया जाता है। यह जुलुस सोमवार सवारी के नाम से जाना जाता है। पवित्र श्रावण मास में में यह बड़े पैमाने पर मनाया जाता है एवं भारी मात्रा में भक्त नृत्य करते हुए एवं गुलाल उड़ाते हुए ओम् शम्भू भोले नाथ का उद्घोष करते हैं। यह बड़ा ही सुन्दर द्रश्य होता है।

ओंकारेश्वर मन्दिर में खेला जाने वाला चौसर-पांसे का खेल 

ओंकारेश्वर मन्दिर के पुजारी के अनुसार माना जाता है की 12 ज्योतिर्लिंगों में यह एकमात्र ज्योतिर्लिंग है, जहां महादेव शयन करने आते हैं। भगवान शिव प्रतिदिन तीनों लोकों में भ्रमण के पश्चात यहां आकर विश्राम करते हैं। भक्तगण एवं तीर्थयात्री विशेष रूप से शयन दर्शन के लिए यहां आते हैं। भोलेनाथ के साथ यहां माता पार्वती भी रहती हैं और रोज रात में यहां चौसर-पांसे खेलते हैं। यहां शयन आरती भी की जाती है, शयन आरती के बाद ज्योतिर्लिंग के सामने रोज चौसर-पांसे की बिसात सजाई जाती है। सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि रात में गर्भगृह में कोई परिंदा भी पर नहीं मार सकता, लेकिन जब सुबह देखते हैं तो वहां पांसे उल्टे मिलते हैं, यह अपने आप में एक बहुत बड़ा रहस्य है, जिसके बारे में कोई नहीं जानता। ओंकारेश्वर मन्दिर में भगवान शिव की गुप्त आरती की जाती है जहां पुजारियों के अलावा कोई भी गर्भगृह में नहीं जा सकता। पुजारी भगवान शिव का विशेष पूजन एवं अभिषेक करते हैं। इसकी शुरुआत रात 8:30 बजे रुद्राभिषेक से होती है। अभिषेक के बाद पुजारी पट बंद कर शयन आरती करते हैं। आरती के बाद पट खोले जाते हैं और चौसर-पांसे सजाकर फिर से पट बंद कर देते हैं। साल में एक बार शिवरात्री के दिन चौसर-पांसे की पूरी बिसात बदल दी जाती है, इस दिन भगवान के लिए नए चौसर-पांसे लाए जाते हैं।

भगवान शिव और पार्वती के लिए सजायी गयी चौसर-पांसे की बिसात 

ओंकारेश्वर दर्शन 

नर्मदा किनारे बसी हुई बस्ती जिसे विष्णुपुरी कहा जाता हैं, यहाँ नर्मदाजी पर पक्का घाट है। सेतु (अथवा नौका) के द्वारा नर्मदाजी को पार करके यात्री मान्धाता द्वीप में पहुँचते है। उस ओर भी पक्का घाट है। यहाँ नर्मदाजी के तट पर स्थित घाट के पास कोटितीर्थ या चक्रतीर्थ माना जाने वाला स्थल है। यहीं स्नान करके यात्री सीढ़ियों से ऊपर चढ़कर ओंकारेश्वर मन्दिर में दर्शन करने जाते हैं। मन्दिर जो तट पर ही कुछ ऊँचाई पर स्थित है।

नर्मदा के तट पर स्थित ओंकारेश्वर मन्दिर 

दर्शन की इस यात्रा में पहला पड़ाव मन्दिर के अहाते में स्थित पंचमुख गणेशजी की मूर्ति है। जिसके बाद पांच लिंगो के दर्शन की यात्रा प्रारम्भ होती है। प्रथम तल पर ओंकारेश्वर लिंग विराजमान हैं। श्रीओंकारेश्वर का लिंग अनगढ़ है। जो की ठीक शिखर के नीचे न होकर एक ओर हटकर है। यहाँ पर भगवान परमेश्वर महादेव को चने की दाल चढ़ाने की परम्परा है। लिंग के चारों ओर जल भरा रहता है। मन्दिर का द्वार छोटा है। ऐसा लगता है जैसे गुफा में जा रहे हों। पास में ही पार्वतीजी की मूर्ति है। ओंकारेश्वर मन्दिर में सीढ़ियाँ चढ़कर तीसरे पड़ाव के रूप में दूसरी मंजिल पर स्थित महाकालेश्वर लिंग के दर्शन होते हैं। यह लिंग शिखर के नीचे है। तीसरी मंजिल पर सिद्धनाथ लिंग है। यह भी शिखर के नीचे है। चौथी मंजिल पर गुप्तेश्वर लिंग है। पांचवीं मंजिल पर भगवान शिव ध्वजेश्वर लिंग के रूप में विरजमान है।  

तीसरी, चौथी व पांचवीं मंजिलों पर स्थित शिवलिंगों के ऊपर स्थित छते अष्टभुजाकार आकृतियाों में बनी हुई हैं जो एक दूसरे में गुंथी हुई हैं। द्वितीय तल पर स्थित महाकालेश्वर लिंग के ऊपर छत समतल न होकर शंक्वाकार है और अष्टभुजाकार आकृतियां में नहीं हैं। प्रथम और द्वितीय तलों के शिवलिंगों के प्रांगणों में नन्दी की मूर्तियां स्थापित हैं। तृतीय तल के प्रांगण में नन्दी की मूर्ति नहीं है। यह प्रांगण केवल खुली छत के रूप में है। चतुर्थ एवं पंचम तलों के प्रांगण नहीं हैं। वह केवल ओंकारेश्वर मन्दिर के शिखर में ही समाहित हैं। प्रथम तल पर जो नन्दी की मूर्ति है, उसकी हनु के नीचे एक स्तम्भ दिखाई देता है। ऐसा स्तम्भ नन्दी की अन्य मूर्तियों में विरल ही पाया जाता है। 

ओंकारेश्वर परिक्रमा 

मान्धाता टापू में ही ओंकारेश्वर मन्दिर की दो परिक्रमाएँ होती हैं - एक छोटी और एक बड़ी। ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की यात्रा तीन दिन की मानी जाती है। इस तीन दिन की यात्रा में यहाँ के सभी तीर्थ आ जाते हैं। अत: इस क्रम से ही वर्णन इस प्रकार है -

प्रथम दिन की यात्रा

मान्धाता द्वीप में स्थित कोटि-तीर्थ पर स्नान और घाट पर ही कोटेश्वर, हाटकेश्वर, त्र्यम्बकेश्वर, गायत्रीश्वर, गोविन्देश्वर, सावित्रीश्वर का दर्शन करके भूरीश्वर, श्रीकालिका तथा पंचमुख गणपति का एवं नन्दी का दर्शन करते हुए ऑकारेश्वरजी का दर्शन करे। ओंकारेश्वर मन्दिर में ही शुकदेव, मान्धांतेश्वर, मनागणेश्वर, श्रीद्वारिकाधीश, नर्मदेश्वर, नर्मदादेवी, महाकालेश्वर, वैद्यनाथेश्वरः, सिद्धेश्वर, रामेश्वर, जालेश्वरके दर्शन करके विशल्या संगम तीर्थ पर विशल्येश्वर का दर्शन करते हुए अन्धकेश्वर, झुमकेश्वर, नवग्रहेश्वर, मारुति (यहाँ राजा मानकी साँग गड़ी है): साक्षीगणेश, अन्नपूर्णा और तुलसीजी का दर्शन करके मध्याह्न विश्राम किया जाता है। मध्याहोत्तर अविमुक्तेश्वर, महात्मा दरियाईनाथ की गद्दी, बटुकभैरव, मंगलेश्वर, नागचन्द्रेश्वर, दत्तात्रेय एवं काले-गोरे भैरव का दर्शन करते बाजार से आगे श्रीराम मन्दिर में श्रीरामचतुष्टय का तथा वहीं गुफा में धृष्णेश्वर का दर्शन करके नर्मदाजी के मन्दिर में नर्मदा जी का दर्शन करना चाहिये।

दूसरे दिन की यात्रा 

यह दिन ओंकार ( मान्धाता ) पर्वत की पंचक्रोशी परिक्रमा का है। कोटितीर्थ पर स्नान करके चक्रेश्वर का दर्शन करते हुए गऊघाट पर गोदन्तेश्वर, खेड़ापति हनुमान, मल्लिकार्जुनः, चन्द्रेश्वर, त्रिलोचनेश्वर, गोपेश्वरके दर्शन करते श्मशान में पिशाचमुक्तेश्वर, केदारेश्वर होकर सावित्री-कुण्ड और आगे यमलार्जुनेश्वर के दर्शन करके कावेरी-संगम तीर्थ पर स्नान - तर्पणादि करे तथा वहीं श्रीरणछोड़जी एवं ऋणमुक्तेश्वर का पूजन करे। आगे राजा मुचुकुन्द के किले के द्वार से कुछ दूर जाने पर हिडिम्बा-संगम तीर्थ मिलता है। यहाँ मार्ग में गौरी-सोमनाथ की विशाल लिंगमूर्ति मिलती है (इसे मामा-भानजा कहते हैं)। यह तिमंजिला मन्दिर है और प्रत्येक मंजिल पर शिवलिंग स्थापित हैं। पास ही शिवमूर्ति है। यहाँ नन्दी, गणेशजी और हनुमानजी की भी विशाल मूर्तियाँ हैं। आगे अन्नपूर्णा, अष्टभुजा, महिषासुरमर्दिनी, सीता-रसोई तथा आनन्द भैरव के दर्शन करके नीचे उतरे। यह ऑकार का प्रथम खण्ड पूरा हुआ। नीचे पंचमुख हनुमान जी हैं। सूर्यपोल द्वार में षोडशभुजा दुर्गा, अष्टभुजा देवी तथा द्वार के बाहर आशापुरी माता के दर्शन करके सिद्धनाथ एवं कुन्ती माता ( दशभुजादेवी ) के दर्शन करते हुए किले के बाहर द्वार में अर्जुन तथा भीम की मूर्तियोंके दर्शन करे। यहाँ से धीरे-धीरे नीचे उतरकर वीरखला पर भीमाशंकर के दर्शन करके और नीचे उतरकर कालभैरव के दर्शन करे तथा कावेरी-संगम पर जूने कोटितीर्थ और सूर्यकुण्ड के दर्शन करके नौका से या पैदल (ऋतुके अनुसार जैसे सम्भव हो ) कावेरी पार करे। उस पार पंथिया ग्राम में चौबीस अवतार, पशुपतिनाथ, गयाशिला, एरंडी-संगमतीर्थ, पित्रीश्वर एवं गदाधर-भगवान के दर्शन करे। यहाँ पिण्डदान श्राद्ध होता है। फिर कावेरी पार कर के लाट भैरव-गुफा में कालेश्वर, आगे छप्पन भैरव तथा कल्पान्त भैरवके दर्शन करते हुए राजमहल में श्रीराम का दर्शन करके ओंकारेश्वर के दर्शन से परिक्रमा पूरी करे।

तीसरे दिन की यात्रा 

इस मान्धाता द्वीप से नर्मदा पार करके इस ओर विष्णुपुरी और ब्रह्मपुरी की यात्रा की जाती है। विष्णुपुरी के पास गोमुख से बराबर जल गिरता रहता है। यह जल जहाँ नर्मदा में गिरता है, उसे कपिला-संगम तीर्थ कहते हैं। वहाँ स्नान और मार्जन किया जाता है। गोमुख की धारा गोकर्ण और महाबलेश्वर लिंगों पर गिरती है। यह जल त्रिशूलभेद कुण्ड से आता है। इसे कपिलधारा कहते हैं। वहाँ से इन्द्रेश्वर और व्यासेश्वर का दर्शन करके अमलेश्वर या ममलेश्वर का दर्शन करना चाहिये।

ममलेश्वर मन्दिर शिव भक्त रानी अहिल्याबाई होल्कर के द्वारा बनवाया गया था। जिसमे पुजारी की नियुक्ति गायकवाड़ राज्य की ओर से किये जाने का प्रावधान है। इस यात्रा का प्रमुख क्रम है की पहले ओंकारेश्वर के दर्शन किये जाये उसके बाद ममलेश्वर में दर्शन हेतु जाया जाये। 

प्रशासन 

श्री ओंकारेश्वर मन्दिर ट्रस्ट शासन द्वारा प्रशासित ट्रस्ट है। यहाँ का प्रबंधन एवं कार्य पालन भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी गणों के दिशा निर्देश मे किया जाता है। मन्दिर ट्रस्ट आने वाले दर्शनार्थियों की सभी सुविधाओ एवं सभी गतिविधियों के सुचारु रूप से संचालन हेतु निरंतर प्रयत्नशील रहता है। मन्दिर परिसर मे साफ सफाई, सुरक्षा एवं सुविधा के लिए पर्याप्त प्रबंध किए गए है। समर्पित एवं प्रशिक्षित कर्मचारियों की टीम हर समय विभिन्न व्यवस्थाओं के संचालन हेतु उपलब्ध रहती है। यदि आप मन्दिर व्यवस्था के विषय मे और जानकारी चाहते हों तो सहायक मुख्य कार्यपालन अधिकारी से उनके मन्दिर कार्यालय में सम्पर्क कर सकते है। 

मन्दिर में पालन करने योग्य कुछ सामान्य नियम 

  • ऑनलाइन बुकिंग करने वाले सभी आगंतुक चाहे वे विशेष दर्शन अथवा पूजन अभिषेक किसी भी सेवा हेतु आए हो कृपया मन्दिर काउंटर पर टिकट की प्रिंटेड कॉपी एवं फोटो आईडी के साथ रिपोर्ट करें। 
  • किसी भी पूजन आरती भोग आदि के टिकट बुक करने पर अधिकतम 2 लोग पूजन में शामिल हो सकते हैं, किन्तु विशेष दर्शन टिकट प्रति व्यक्ति ही मान्य होता है। 
  • किसी भी परिस्थिति में शिवलिंग को स्पर्श करने की अनुमति नहीं दी जा सकती इस हेतु वाद विवाद न करें. दर्शन जलाभिषेक, पुष्प समर्पण नियत विधि अनुसार ही करें। आपके द्वारा बुक किया गया टिकट पूरे दिन हेतु मान्य रहता है दर्शन टिकट का उपयोग आप पूरे दिन में एक बार कभी भी कर सकते हैं। इस हेतु कोई टाइम स्लॉट की व्यवस्था नहीं है दर्शन हेतु एंट्री पहले आओ पहले पाओ के आधार पर दी जाती है। विशेष दर्शन समय सायं 08:00 तक ही रहता है।     
  • अपना टिकट किसी भी अन्य व्यक्ति अथवा पंडित को ना दें। केवल अधिकारिक काउंटर पर अथवा ट्रस्ट के आईडी कार्ड एवं यूनिफॉर्म धारण किए हुए कर्मचारियों को ही दिखाएं।   
  • दर्शन हेतु समय सारणी वेबसाइट पर एवं मोबाइल ऐप पर दी हुई है अपना  दर्शन समय पूजन आरती एवं श्रृंगार के समय मन्दिर बंद होने एवं खुलने के अनुसार ही सुनिश्चित करें।    
  • 12 वर्ष से कम के बच्चे विशेष दर्शन टिकटधारी अभिभावक के साथ निशुल्क विशेष दर्शन प्राप्त कर सकते हैं।  
  • भगवान ओमकारेश्वर का अभिषेक मंदिर ट्रस्ट द्वारा तय की गई व्यवस्था के अनुसार किया जाता है. ऑनलाइन बुक करने पर आपका अभिषेक पंडित जी द्वारा अभिषेक स्थल पर करवाया जायेगा गर्भगृह में केवल दर्शन एवं जल समर्पण किया जा सकता है।  
  • यदि आप नैवेद्य भोग हेतु बुकिंग करते हैं तो आप स्वयं भोग नहीं लगा सकते। यह भोग प्रतिदिन पुरोहितों द्वारा लगाया जाता है जिसमें मेवे एवं दही चावल आदि परंपरा अनुसार समर्पित किए जाते हैं। यदि आप स्वयं उपस्थित होकर के प्रसाद प्राप्त नहीं कर सकते तो आपके पते पर मेवे का प्रसाद भेज दिया जाता है। 
  • यदि श्रृंगार हेतु बुकिंग करते हैं तो दर्शन प्रारंभ होने पर दर्शन हेतु अंदर जा सकते हैं. श्रृंगार मन्दिर के कर्मचारियों द्वारा किया जाता है  एवं आपका प्रसाद एवं श्रृंगार का चित्र आपके पते पर भेज दिया जाता है. 
  • यदि आपने सोमवार सवारी बुकिंग की है तो प्रातः काल 10:00 बजे मंदिर काउंटर पर रिपोर्ट करें इस व्यवस्था में आप सवारी में शामिल हो सकते हैं एवं सवारी के साथ नगर भ्रमण कर सकते हैं तत्पश्चात प्रसाद प्राप्त कर सकते हैं इसमें विशेष दर्शन टिकट शामिल नहीं है।  
  • यदि आपने प्रसादालय हेतु टिकट बुक किया है तो कृपया समय पर जाकर उसका उपयोग करें दोपहर में 12:00 से 3:00 तक  एवं शाम को 7:00 से 9:00 भोजन उपलब्ध होता है यदि आप समय पर ना पहुंच पाए हो तो कृपया काउंटर पर सूचित करें ताकि आपके लिए अगले भोजन हेतु टिकट उपलब्ध करवाया जा सके। यह टिकट रिफंड हेतु नहीं होता यह ध्यान रखें।  
  • ६५ वर्ष से अधिक के वरिष्ठ नागरिक, दिव्यांग, अतिरुग्ण जन निशुल्क विशेष दर्शन हेतु पात्र हैं। इस सुविधा हेतु मन्दिर प्रशासन से सम्पर्क करें, यह सुविधा मंदिर प्रशासन के विवेकाधीन है, एवं मंदिर प्रशासन परिस्थिति अनुसार निर्णय लेने हेतु अधिकृत है एवं किसी भी रूप से बाध्य नहीं है। 
  • मन्दिर में दिया गया कोई भी दान एवं ऑनलाइन की गई कोई भी बुकिंग रिफंड नहीं की जाती है. ऐसा सिर्फ विशेष परिस्थितियों में किया जा सकता है। जिसके लिए आप हमारी रिफंड पालिसी का अध्ययन कर सकते हैं एवं मन्दिर प्रशासन से संपर्क कर सकते हैं  
  • आपके द्वारा की गई बुकिंग विशेष परिस्थितियों में रद्द करने का अधिकार मन्दिर प्रशासन के पास सुरक्षित है। इस परिस्थिति में जब मन्दिर की ओर से रद्द किया गया हो आप रिफंड प्राप्त करने अथवा अगली तिथि हेतु बुकिंग प्राप्त करने के अधिकारी हैं।   
  • गणमान्य विभूतियों द्वारा मन्दिर प्रवास के अवसर पर प्रोटोकोल लागु होता है। इस दौरान दर्शन आदि कुछ समय के लिए सुरक्षा कारणों से रोका जा सकता है। ऐसे अवसरों पर सभी का सहयोग आपेक्षित होता है।    
  • विशेष दिवस जैसे शिवरात्रि त्यौहार, मेला, श्रावण मास आदि के समय अत्यधिक भीड़ होने पर सेवाओं में विलम्ब हो सकता है। ऐसे अवसरों पर सामान्य दर्शन नियम लागु नहीं होते। कृपया बुकिंग से पहले वेबसाईट पर पर्व सूंची चेक करें।  

ओंकारेश्वर मन्दिर कैसे पंहुचा जाये?

इंदौर में स्थित देवी अहिल्याबाई होल्कर अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डा सबसे निकटतम हवाई अड्डा है। जो देश के विभिन्न हवाई अड्डों से सुनियोजित रूप से जुड़ा हुआ है। जहां से मन्दिर की दूरी ७७ किमी के लगभग है। बाहर निकलते ही स्थानीय संसाधन मन्दिर तक पहुंचने के लिए सबसे बढ़िया साधन है। 

सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन खंडवा में स्थित खंडवा रेलवे स्टेशन है। जिसकी कनेक्टिविटी देश के अधिकतर शहरों से सीधी है। स्टेशन से निकलते ही ओंकारेश्वर के लिए टैक्सी, बस आदि उपलब्ध है जिनसे २:३० घंटे में अपने गंतव्य तक पंहुचा जा सकता है। 


मोरटक्का बस स्टेशन सबसे निकटतम बीएस स्टेशन है। जहा से मन्दिर की दूरी मात्र १४ किमी के लगभग है तथा मोरटक्का के लिए नियमित सीधी बसों का संचालन इंदौर, उज्जैन, खंडवा, खरगोन तथा बुरहानपुर आदि से क्या जाता है। 



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