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अनंतपुरा झील मन्दिर

सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु जिनकी आध्यात्मिक शक्ति स्वामी श्री अनंत पद्मनाभ स्वामी मन्दिर के रूप में धरा पर जिवंत रूप में उपस्थित है, का मूल स्रोत केरल के उत्तरी छोर पर स्थित कासरगोड जिले में कुंबला के पास अनंतपुरा में स्थित अनंतपुरा का झील मन्दिर के रूप में जग चर्चित है। अनंतपुरा झील मन्दिर, गांव में स्थित एक झील में बना शांत हिन्दू मन्दिर है। जिसका ऐतिहासिक सम्बन्ध द्वापर युग से है। 


अनंतपुरा झील मन्दिर
अनंतपुरा का झील मन्दिर प्रवेश द्वार 
इस मन्दिर में प्रकृति और मानव के बीच के पूर्ण सामंजस्य को प्रस्तुत करते हुए देखा जा सकता है। मान्यता है, की मन्दिर के जलकुंड में एक मगरमच्छ जिसे बबिया के नाम से जाना जाता है। इस मन्दिर का रक्षक है। आये हुए यात्रीगण मन्दिर में देव दर्शन के पूर्व जलकुंड में स्न्नान करते है। यदि एक मगरमच्छ किसी जलाशय में हो और वो भी किसी पर आक्रमण न करे ऐसा सम्भव हो ही नहीं सकता, किन्तु अनंतपुरा झील मन्दिर में इसके विपरीत आज तक ऐसा नहीं हुआ है। बबिया किसी पर हमला नहीं करती तो वही मानव भी उसके साथ एक मिश्रित शान्तिपूर्ण व्हवहार का पालन करते है। इसी पूर्ण सद्भाव का अनुभव करने के लिए तीर्थयात्री इस मन्दिर में आना पसंद करते है।


दंतकथा  

यदि कुछ मिथकों को छोड़ दिया जाये तो मन्दिर का अस्तित्व आज भी अस्पष्ट है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, इस स्थल का प्रयोग मुनि विलवमंगलम ( विल्वमंगलथु ) द्वारा अपनी तप साधना के लिए किया जाता था। उसकी साधना से प्रसन्न उसके इष्ट श्री हरि नारायण ने उनके समक्ष एक बालक के रूप में प्रकट हुए। अचानक से आये उस बालक को देख मुनि के मन में उस बालक के विषय में जानने की जिज्ञासा उत्पन्न हो गयी। तब उन्होंने उस बालक से प्रश्न किया कि वह कौन है? इस पर बालक ने उन्हें उत्तर में बताया की वह अनाथ है और जीवन के यापन के लिए इधर उधर घूमता रहता है। इस पर मुनि ने उस बालक को अपने पास सहायक के रूप में रहने की पेशकश की। जिसे बालक ने सशर्त मान लिया की यदि वे उन्हें ( बालक ) को कभी भी अपमानित करेंगे तो वह उन्हें छोड़ के चले जायेंगे। बालक ने कुछ काल तक तो मुनि की सेवा की किन्तु वह कब तक अपनी बालसुलभ क्रीड़ाओं से दूर रहता, अतः वह अपनी बाल शरारतें करने लगा। मुनि के लिए असहनीय था अतः उन्होंने क्रोध रूप में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर बैठे। बालक ने इसे अपना अपमान जान घोषणा कर दी, की वह उसे छोड़ देंगे और मुनि को उनके पुनः दर्शन प्राप्त करने के लिए नागदेवता अनंत के वन में आना होगा। पौराणिक लेखों में नागदेवता अनंत के इस वन को अनंतंकट या अनंतंकडु के नाम से भी उल्लेख किया गया है। इसके बाद बालक ने वही एक छोटी सी गुफा में प्रवेश कर स्वयं को अदृश्य कर लिया। 


अनंतपुरा झील मन्दिर
मुख्य गर्भगृह
इमेज सोर्स - गूगल इमेज क्रेडिटेड बय
 happiereads.com
 
मुनि को बालक के विलुप्त होते ही ज्ञान हो आया की कि बालक कोई नहीं अपितु उसके इष्ट नारायण ही थे। उन्होंने भी उसी गुफा में उनकी खोज के लिए प्रवेश कर लिया और चलते हुए वह उत्तरी भू-भाग से केरल के दक्षिण भाग में समुद्र तट के समीप पहुंच गए। उनकी अनंतंकडु की खोज की यात्रा अभी समाप्त नहीं हुई थी। अतः खोजते खोजते वह उस स्थल पर पहुंचे, जहां इलिपा ( महुआ ) के वृक्ष थे। यहाँ पर उन्होंने देखा वही बालक एक इलिपा के वृक्ष में विलीन हो गया। उसके विलीन होते ही वृक्ष भूमिगत हो गया और हजारों सर्पों की शय्या पर विश्राम करते हुए भगवान विष्णु का रूप धारण कर लिया। यहीं स्थल तत्कालीन तिरुवनंतपुरम है और जिस स्थल पर भगवान विष्णु प्रकट हुए थे, उस स्थल पर बनाये गए मन्दिर को पद्मनाभ स्वामी मन्दिर के नाम से जाना जाता है। 


बबिया मगरमच्छ मन्दिर के रक्षक 

अनंतपुरा झील मन्दिर
मन्दिर के रक्षक मगरमच्छ बबिया
देवताओं की भूमि कहे जाने वाले केरल के कासरगोड जिले में स्थित झील मन्दिर के संरक्षक के रूप में निवास करने वाले मगरमच्छ बबिया एक अद्धभुत जीव है। जिसका मन्दिर के जलकुण्ड में निवास करना प्राणियों के सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व को प्रदर्शित करता है। सबसे पहले बाबिया को ब्रिटिश शासन की अवधि में वर्ष १९४५ में देखा गया था जिसकी मृत्यु ब्रिटिश सैनिक के द्वारा गोली मारने से हुई थी। कुछ दिन बाद उस सैनिक की मृत्यु सांप के काटने से हुई। लोगों द्वारा माना जाता है, की यह भगवान अनंत द्वारा उस सैनिक से लिया गया बदला है। पहले मगरमच्छ की मृत्यु के बाद, एक और दिखाई दिया और मन्दिर की रक्षा करते है। कहा जाता है कि झील में एक समय में एक मगरमच्छ मौजूद होता है और उसके मरने के बाद ही दूसरा दिखाई देता है। अब हम जिस मगरमच्छ को देखते है उसका नाम बबिया है और वह झील में ८० वर्षों से रह रहा है। प्रतिदिन पूजा के बाद पुजारी द्वारा बबिया को पवित्र प्रसाद खिलाया जाता है। माना जाता है, उसके द्वारा गुफा की उस मुख पर पहरा दिया जाता है जिस गुफा में भगवान कृष्ण अदृश्य हुए थे। 

मन्दिर वास्तुशास्त्र 

मन्दिर का निर्माण ३०० फीट लगभग के प्रभावशाली झील के मध्य किया गया है, जो की संरचनात्मक पहलुओं में अद्वितीय है। प्रकृति ने भी इसे बारहों माह शुद्ध जल की आपूर्ति प्रदान करके अपना अनमोल उपहार दिया है। झील में श्रीकोविल ( मुख्य गर्भगृह ), नमस्कार मण्डपम, थिटापल्ली, जलदुर्गा का मन्दिर और गुफा जिसकी बबिया द्वारा रक्षा की जाती है। नमस्कार मण्डपम एक पैदल पुल द्वारा पूर्वी चट्टान से जुड़ा हुआ है जो श्री कोविल को जाने वाला एक मात्र मार्ग है। 

अनंतपुरा झील मन्दिर
नमस्कार मण्डपम
मन्दिर के मुख्य देवता भगवान श्री विष्णु है। मन्दिर की मूर्ति १९७२, जब तक कांची कामकोटि मठ के अधिपति जयेन्द्र सरस्वती तिरुवाटिकल द्वारा दान किये गए पञ्च लौह धातु की है। १९७२ के पूर्व श्री कोविल में उपस्थित सभी मूल मूर्तियाँ  प्रकार की धातु या पत्थर से बनी होकर ७० से अधिक औषधीय सामग्रियों को मिलाकर बनाई गयी थी, जिन्हें "कडु-शरकारा-योगम" कहा जाता है। जो की इस मन्दिर की दूसरी मुख्य विशेषता थी। कडु-शरकारा-योगम से बनी मूर्तियों को पुनः स्थापित करने के प्रबंधन समिति द्वारा प्रयास किये जा रहे है। भगवान श्री विष्णु की मूर्ति पांच शीश वाले भगवान श्री अनंत के ऊपर बैठी हुई मुद्रा में है। 

मन्दिर के मण्डपम की छत पर दशावतारम ( भगवान विष्णु के दश अवतारों ) से जुडी हुई कथाएँ व नव ग्रहों को चित्रित किया गया है, जो नक्काशी का एक उत्कृष्ट संग्रह है। श्री कोविल के प्रवेश द्वार के दोनों ओर भगवान के दोनों द्वारपालों ( जय और विजय ) को बड़ी ही खूबसूरती से लकड़ी पर उभारा गया है। 

मन्दिर में पूजा का समय 

मन्दिर भक्तों के दर्शन के लिए प्रातः ५:३० बजे से अपराह्न १२:३० बजे और सायं ०५:३० बजे से सायं ७:३० बजे तक खुला रहता है। जिसमे प्रातः पूजा ७:३० बजे तथा दोपहर पूजा अपराह्न १२:३० बजे की जाती है। सायंकाल ७:३० बजे आरती की जाती है जिसके बाद मन्दिर को भगवान विष्णु के विश्राम के लिए बंद कर दिया जाता है। 

बबिया को नैवेद्य चढ़ाने का समय प्रातः ८:०० बजे और अपराह्न १२:०० बजे का है जिसमे समय का पालन किया जाता है। 

तपोत्सवम मन्दिर में मनाया जाने वाला मुख्य उत्सव 

यह अप्रैल के महीने में मंदिर में मनाया जाने वाला धार्मिक रूप से मुख्य त्यौहार है। जिसमें झील के किनारे देवता का एक औपचारिक जुलुस निकला जाता है। उत्सव में जुलुस के भाग के बाद यक्षगानम का आयोजन किया जाता है जो की कर्नाटक का एक पारम्परिक नृत्य है। 

अनंतपुरा मंदिर में दर्शन के नियम 

  • अमे और सूतक के दौरान मन्दिर में भक्तों का प्रवेश प्रतिबंधित है। 
  • परिसर में गंदगी फैलाना निषेद्य है। 
  • मन्दिर परिसर में ऊँची ध्वनि में बात करना और शोर मचाना मना है। 
  • पारम्परिक ड्रेस कोड का पालन करना सभी भक्तों के लिए अनिवार्य है। पुरुष भक्तों को गहरे ( नीले अथवा काले ) रंग कि धोती पहनने पर प्रतिबन्ध है, वे मुंडू ( सफेद धोती ) अथवा पैंट का चुनाव कर सकते है परन्तु पूजा की अवधि में उन्हें अपनी शर्ट व बनियान उतारनी पड़ेगी। महिला भक्त साड़ी अथवा सलवार सूट का चुनाव कर सकती है। उन्हें किसी भी प्रकार के शार्ट और रिवीलिंग वस्त्रों को पहन कर मन्दिर में प्रवेश की अनुमति नहीं है। 

अनंतपुरा मंदिर में दर्शनार्थियों के लिए उपलब्ध सुविधा 

मन्दिर का निर्माण एक भव्य कल्याण मंडप की भांति किया गया है जिसमें एक साथ ३०० व्यक्ति आराम से बैठ सकते है। मन्दिर की रसोई जो की इतनी आधुनिक व भव्य है की उसमे ३००० व्यक्तियों का भोजन एक समय पर बनाया जा सकता है। इसी रसोई में बनने वाले दोपहर का भोजन जिसे प्रसाद भोजनम के नाम से सम्बोधित किया जाता है, आने वाले सभी भक्तों को निशुल्क उपलब्ध होता है। आगंतुक भक्त जनों के पास बालिवाडु ( एक प्रकार देवता को दी जाने वाली भेंट ) भी मात्र ३०/- रूपये के भुगतान से सुगमता से प्राप्त की जा सकती है। 


अनंतपुरा झील मंदिर तक कैसे पहुंचे ?

अनंतपुरा झील मन्दिर जाने का सबसे अच्छा समय सितम्बर से मार्च माह का समय है, जब दक्षिण भारत का मौसम अन्य माह की अपेक्षा कुछ ठंडा व सुहावना होता है। यूँ तो पूरा केरल ही सड़क मार्ग और रेल मार्ग के सुनियोजित तंत्र से जुड़ा हुआ है इसलिए कासरगोड पहुंचना भी बहुत ही सुगम है। कुंबला-बड़ियाडका मार्ग मन्दिर पहुंचने के लिए सबसे आसान सड़क मार्ग है। 


सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन कुबला रेलवे स्टेशन और कासरगोड रेलवे स्टेशन जहा से शांत और सुरम्य मन्दिर द्वार की दूरी क्रमश: ५ किमी और १२ किमी है। जिसके लिए ऑटो रिक्शा बड़ी ही सुगमता से उपलब्ध है। 


सबसे निकटतम हवाई अड्डा मैंगलोर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है जहा से मंदिर परिसर की दूरी ५६ किमी है। आने वाले दर्शनार्थी यहाँ से निजी अथवा राजकीय वाहन के द्वारा मन्दिर परिसर तक  पहुंच सकते है।  



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