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एर्नाकुलम शिव मन्दिर

दक्षिण भारत के केरल के कोच्चि शहर के डाउनटाउन क्षेत्र एर्नाकुलम के केन्द्र में स्थित हिन्दू धर्म, संस्कृति और श्रद्धा का स्थल एर्नाकुलम शिव मन्दिर, उन दुर्लभ मन्दिरों की श्रृंख्ला में से एक है, जहाँ पीठासीन देवता भगवान शिव अपने पश्चिम में समुद्र को पराजित करते है। एर्नाकुलम शिव मन्दिर जिसे एर्नाकुलथप्पन मन्दिर के नाम से भी जाना जाता है। यदि केरल की आम प्रथा को माना जाये, तो प्रत्येक क्षेत्र के एक रक्षक देवता होते है। उसी प्रकार से एर्नाकुलम के रक्षक देवता एर्नाकुलम शिव मन्दिर के अधिपति भगवान एर्नाकुलथप्पन अर्थात एर्नाकुलम के भगवान है। मन्दिर दरबार हाल ग्राउंड के भीतर स्थित है। एर्नाकुलम शिव मन्दिर और शहर के इतिहास का एक दूसरे से गहरा रिश्ता है, शिव मन्दिर कोच्चि शासकों के सात शाही मन्दिरों में से एक होने के गौरव के साथ ही साथ केरल के प्रसिद्ध शिव मन्दिरों एट्टुमानुर महादेवर मन्दिर, कंदुथ्रुथी महादेव मन्दिर, वैकोम मन्दिर, चेंगन्नूर महादेवा मन्दिर और वडक्कुनाथन मन्दिरों की गड़ना में अपना स्थान सनिश्चित करता है। मन्दिर का प्रशासन कोचीन देवस्वम बोर्ड के द्वारा किया जाता है। 


एर्नाकुलम शिव मन्दिर
एर्नाकुलम शिव मन्दिर, आकाशीय दृश्य 

मन्दिर के पश्चिम की ओर हिलोरे भरता हुआ अरब सागर है। एर्नाकुलम शिव मन्दिर में उपस्थित स्वयंभू शिवलिंग शिव जी के गौरीशंकर रुप का प्रतिनिधित्त्व करता है। मुख्य गर्भगृह के उत्तरी भाग में एक छोटा सा मन्दिर कीर्थमूर्ति, जहां महान धनुर्धर पाण्डव राजकुमार अर्जुन के द्वारा स्थापित मूल लिंगम की आज भी पूजा की जाती है। मन्दिर के दक्षिणी भाग की शोभा वह पर स्थित भगवान विनायक का छोटा किन्तु सुन्दर सा मन्दिर है। केन्द्रीय गर्भगृह के पीछे पूर्वी क्षेत्र, जिसे आदिशक्ति भगवती के निवास स्थल के रूप में माना जाता है। इस कारणतः मन्दिर का पूर्वीद्वार देवी द्वार के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है। केन्द्रीय मन्दिर के बाहर परिसर में भगवान अयप्पा और नागराज के भी मन्दिर स्थित है। 

दंतकथा 

मन्दिर की कथा हिन्दूों के सबसे बड़ा काव्य महाभारत में वर्णित पाशुपास्त्र प्राप्त करने की कथा से जुड़ा हुआ है। अपने वनवास की अवधि में अर्जुन अपने सखा, श्री कृष्ण के निर्देश से पाशुपास्त्र प्राप्त करने का उद्देश्य लेकर वन में सर्व शक्ति के स्वामी जगत के स्वामी त्रिपुरासुर का मर्दन करने वाले भगवान शिव की तपस्या कर रहे थे। उस समय भगवान शिव उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शक्ति स्वरूपा देवी पार्वती के साथ उस स्थल पर जहां अर्जुन तपस्या कर रहे थे। तब भगवान शिव ने उसकी तपस्या का फल देने के पूर्व उसकी परीक्षा लेने का के विचार से स्वयं को एक भील शिकारी किरथ के रूप में वहां पर प्रकट किया। तभी अर्जुन की तरफ एक जंगली वराह को बढ़ते देख कीरथ और सर्व श्रेष्ठ धनुर्धर अर्जुन ने उस वराह पर बाण से प्रहार किया। बाण लगने से उस वराह रूप धारी असुर को मुक्ति की प्राप्ति हो गयी, किन्तु उस वराह की मृत्यु किसके तीर से हुई इस पर विवाद उत्पन्न हो गया। दोनों ही एक से एक बढ़ कर योद्धा और उनका युद्ध तो लम्बे समय तक चलना ही था। अंततः अर्जुन इस युद्ध में पराजित हुए। पराजित अर्जुन जो की खड़े होने में भी असमर्थ थे, धरा पर पड़े पड़े ही मिटटी का शिवलिंग बना कर उस की फूलों से पूजा करने लगे परन्तु उसके आश्चर्य की उस समय सीमा न रही जब उसने देखा वह कोई भी फूल जब शिवलिंग पर चढ़ाते थे तो वो कीरत के शीश पर सज जाते थे। तब अर्जुन को समझते देर न लगी यह कीरथ कोई और नहीं उनके आराध्य शिव जी ही है। उनकी भक्ति से प्रसन्न शिव जी ने उन्हें पाशुपास्त्र प्रदान किया। मन्दिर परिसर में उपस्थित कीर्थमूर्ति मन्दिर में पूजित शिवलिंग वही शिवलिंग है जिसे अर्जुन ने बनाया था। 


इतिहास

प्रथम चरण 

चेर राजा जिनका शासन इस क्षेत्र पर था, भगवान शिव के अनुनायी थे। उनके शासन की समाप्ति के बाद इस क्षेत्र पर नायर रईसों का अधिपत्य हो गया जिन्होंने इस क्षेत्र को एर्नाकुलम शिव मन्दिर के प्रसिद्ध कुंड की मान्यता में इस स्थान का नाम बदलकर एर्नाकुलम अर्थात पानी के साथ रहने वाला जलकुण्ड कर दिया। १७वीं शताब्दी में जब डच सेना ने कोच्चि किले की घेराबंदी कर ली, तो कोच्चि शासकों ने अपनी राजधानी कोच्चि से एर्नाकुलम में स्थानांतरित कर ली और दरबार हॉल के पीछे देखा जाने वाला टैंक शेड पैलेस के सन्मुख, मन्दिर के पास महल का निर्माण किया। इसी शाही संरक्षण ने इस मन्दिर को प्रसिद्धि प्रदान की। उनके द्वारा ही एर्नाकुलथप्पन को नगर का रक्षक घोषित किया गया। 


द्वितीय चरण 

मन्दिर के विकास का दूसरा चरण तब आया जब कोच्चि के दीवान श्री एडक्कुंनी शंकर वारियर के द्वारा मन्दिर का जीर्णोद्धार का कार्य प्रारम्भ कराया गया। केरल शैली में जीर्णोद्धार का कार्य पूर्ण होने पर १८४६ में आम जनता के लिए मन्दिर को खोल दिया गया। १९४९ में कोच्चि का भारत संघ में विलय होने के बाद मन्दिर का पूर्ण प्रशासन व रखरखाव कोचीन देवस्वम बोर्ड को दे दिया गया। 

मन्दिर प्रबन्धन में स्थानीय भागीदारी को बढ़ाने के उद्देश्य से एर्नाकुलम क्षेत्र क्षेम समिति ने एर्नाकुलम शहर के प्रमुख हिन्दू सदस्यों से मिलकर मन्दिर से सटी हुई जमींन, जो कोच्चि निगम के अधीन थी, को खरीदने के लिए धन संग्रह में हिस्सा लिया। एर्नाकुलम क्षेत्र क्षेम समिति के नेतृत्व में मन्दिर का समग्र विकास प्रारम्भ हुआ। 

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मन्दिर परिस 

सम्पूर्ण मन्दिर का विस्तार १.२ एकड़ में है। जिसमे गोलाकार गर्भगृह जिसकी दीवारों पर बारीक नक्काशी की गयी है। छत ताम्बे से ढकी हुई है। मन्दिर परिसर में प्रवेश के लिए पूर्वी और पश्चिम गोपुरम जिसमें केरल वास्तुशैली में बना हुआ दो मंजिला संरचना है। मन्दिर परिसर में हनुमान मंदिर, जिसमें  उपस्थित हनुमान जी की मूर्ति का मुख केन्द्रीय मन्दिर की और है। इनके अलावा मन्दिर में जलकुंड की तरफ भगवान अयप्पा की मन्दिर है। इनके अतिरिक्त मन्दिर परिसर में प्रशासन कार्यालय के अतिरिक्त एर्नाकुलम ब्राह्मण एसोसिएशन और विवाह हाल के कार्यालय भी उपलब्ध है। 


पूजा   

दैनिक पूजा 
पूजा का समय 
नादथुरक्कल और निर्मलयम 
अभिषेकम 
शंखाभिषेक  
उषापूजा 
तीर्थ पूजा  
तीर्थ सेवेली  
जल धारा 
पंथीराडी पूजा 
उच्च पूजा, उच्च सेवेली, नाडा अदकक्ल 
व्यकुन्नेरम नादथ्रुअक्क्ल
दीपराधना  
अथाजा
प्रातः ३:३० बजे 
प्रातः ४:०० बजे से ४:४५ बजे तक
प्रातः ५:१५ बजे
प्रातः ५:४५ बजे
प्रातः ६:१५ बजे
प्रातः ६:३० बजे
प्रातः ७:०० बजे
प्रातः ७:३० बजे से ८:१५ बजे तक
प्रातः ९:३० बजे से ११:०० बजे तक
सायं ४:०० बजे 
सायं ६:३० बजे 
सायं  ७:१५ बजे से रात्रि ८:०० बजे तक 

मन्दिर समारोह

एर्नाकुलथप्पन मन्दिर का समारोह पूरे कोच्चि शहर में मनाये जाने वाले भव्य उत्सवों में से एक है। जिसे तमिल कैलेंडर के मकरम माह के दौरान सात दिनों के लिए मनाया जाता है। उत्सव का प्रारम्भ शाम को मन्दिर का झंडा फहरा कर किया जाता है, जिसे स्थानीय भाषा में कोडियट्टम कहा जाता है। सातवें दिन पाकलपुरम का आयोजन किया जाता है, जिसमे पांच वाद्यम के साथ देवता को हाथियों पर आरुण करके जुलुस निकाला जाता है। जुलूस का अंत दरबार हॉल ग्राउंड में पान्डमेलम और आतिशबाजी के बाद होता है। उत्सव के अंतिम दिवस शाम को झंडा उतरने के साथ देवता को पञ्चवाद्यम के साथ निकट के कुंड में स्न्नान के लिए ले जाया जाता है जिसे अरट्टू कहते है। देवता का स्न्नान के बाद मन्दिर वापस आने पर दरबार हॉल ग्राउंड में सुन्दर आतिशबाजी द्वारा स्वागत किया जाता है। समारोह से जुडी दैनिक पूजा चेन्नोस और पुलियान्नूर माना के प्रसिद्ध पुजारियों द्वारा की जाती है। इस दौरान मन्दिर में कई प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम जैसे - ओट्टमथुलाल, पाटाकम, थायंबका, कथकली, शास्त्रीय नृत्य आदि का आयोजन किया जाता है। इस कार्यक्रम का आनन्द लेने हजारों की संख्या में लोग मकरम के माह में यहाँ आते है। इसके अतिरिक्त मन्दिर में महा शिवरात्रि और प्रदोष मन्दिर में मनाया जाने वाले मुख्य उत्सव है।  

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एर्नाकुलम शिव मन्दिर कैसे जायें ?

हवाई मार्ग द्वारा 

एर्नाकुलम शहर और मन्दिर से सबसे निकटतम हवाई अड्डा नेदुम्बस्सेरी में स्थित कोच्चि अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है। जिसकी दूरी लगभग ३५ किमी है। कोच्चि अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा देश के सभी राज्यों से एयर इंडिया और जेट एयरवेज की नियमित उड़ानों से जुड़ा हुआ है।  


रेल मार्ग द्वारा 

निकटतम रेलवे स्टेशन एर्नाकुलम है जो देश के सभी मुख्य रेलवे स्टशनों से जुड़ा हुआ है। जहां से एर्नाकुलम शिव मन्दिर मात्र १ किमी की दूरी पर शहर के मध्य स्थित है।


सड़क मार्ग द्वारा 

बैंगलोर, चेन्नई, मैंगलोर, सेलम, कोयंबटूर, मदुरै और केरल के सभी प्रमुख शहरों से एर्नाकुलम के लिए बस सेवा उपलब्ध है। अधिकांश बसें एमजी रोड से गुजरती है, जिनका निकटतम बस स्टॉप "साउथ" या "पल्लीमुक्कू" है। केएसआरटीसी ( केरल राज्य सड़क परिवहन निगम ) बस स्थानक की दूरी मन्दिर से २ किमी की है। एक बार वहाँ पहुँचने के बाद दर्शन के लिए टैक्सी का प्रयोग कर सकते है। 


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