महाराष्ट्र का कोल्हापुर जिला जिसकी अधिष्ठाती भगवती महालक्ष्मी को समर्पित शक्तिपीठ महालक्ष्मी मन्दिर या श्री अम्बाबाई मन्दिर के रूप में जाना जाता है। हिन्दू धर्म में माना जाता है कि तिरुमला वेंकटेश्वर, कोल्हापुर में अम्बाबाई और पद्मावती मन्दिर में जाने से और देवता के दर्शन से मोक्ष प्राप्त करने का मार्ग खुलता है। मान्यता है, महालक्ष्मी मन्दिर में माता अपने सभी बच्चों के दिल की बात सुनती है और एक माँ होने के कारण उन्हें पूरा भी कर देती है।
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आकाशीय द्रष्टि से मन्दिर का अवलोकन |
महालक्ष्मी मन्दिर का इतिहास
उपलब्ध सक्ष्यों और वास्तुकला से ज्ञात होता है की मन्दिर का निर्माण कार्य चालुक्य शासकों के निरीक्षण में प्रारम्भ हुआ था। १०९ सीई की कालावधी में महाराज कर्णदेव के इस क्षेत्र में निर्माण कार्य के लिए जंगलो को कटवाया जिस के कारण मन्दिर अस्तित्व में आ पाया। परन्तु कुछ इतिहासविद्यो के अनुसार मन्दिर महाजनपद समय का होना बताते है। यादव राजा टोलम के द्वारा १२१८ में महाद्वार का निर्माण कराया गया। १३वीं शताब्दी में शंकराचार्य द्वारा दीपमाला का निर्माण कराया गया। जब छत्रपति शिवजी महाराज और छत्रपति संभाजी राजे ने इस क्षेत्र पर शासन किया उस दौरान मन्दिर का जीर्णोद्धार का कार्य किया गया तथा आधुनिक रूप प्रधान किया गया। मुग़ल शासकों के दौरान उपासकों ने मूर्ति को सुरक्षा की दृष्टि से छिपा लिया था। नरहर भट्ट शास्त्री को स्वप्न में आकर भगवती ने अपने स्थल का पता दिया जिसे उन्होंने छत्रपति संभा जी को बताया। उनके स्वप्न पर विस्वास करके उन्होंने देवी के स्थल की खोज का आदेश दिया। पन्हाला के सिंधुजी हिंदूराव घोरपड़े ने छत्रपति संभा जी की आज्ञानुसार २६ सितम्बर १७१२ विजयादशमी के दिन पुनः मूर्ति की स्थापना की। तत्कालीन समय में मन्दिर परिसर में पांच मुख्य मन्दिर, पांच दीपमाला तथा छोटे छोटे ३५ मन्दिर के आस पास मन्दिर है।
महालक्ष्मी मन्दिर का विग्रह
देवी महामात्य के अनुसार आदिस्वरूपा देवी भगवती जिन्होंने त्रिदेवों और सृष्टि का निर्माण किया। उस अजन्मा शक्ति ने जब सागरपुत्री लक्ष्मी के रूप में समुद्र मंथन से उत्पन्न हुई और श्री हरी से विवाह किया। अद्वितीय सुन्दरता वाली यह देवी अपने आठ रूपों - धनलक्ष्मी, धानलक्ष्मी, धैर्यलक्ष्मी, शौर्यलक्ष्मी, कीर्तिलक्ष्मी, विनयलक्ष्मी, राजलक्ष्मी और संतानलक्ष्मी में सार्वभौमिक धन की एक महिला प्रतिनिधित्व कर्त्ता है। जैसे जैसे मानव संस्कृति का विकास हुआ उन्होंने नदियों और समुद्रों की किनारे बस्तियों का विकास करना प्रारम्भ कर दिया।
राजनीतिक प्रमुखों द्वारा वैदिक संस्कृति को प्रोत्साहन मिलने लगा और मन्दिर अस्तित्व में आने लगे। एक पत्थर के चबूतरे पर चार सशस्त्र हाथों और मुकुट वाली देवी की छवि काले रंग के बलुआ पत्थर से बनी है। काले पत्थर पर २ फीट ८.५ इंच ऊँची छवि मन्दिर प्रांगण में मुख्य गर्भगृह में बनी हुई है। मूर्ति के सामने एक कोने में श्री यंत्र उकेरा गया है। मूर्ति के ठीक पीछे देवी का वाहन सिंह की खड़ी मुद्रा में प्रतिमा उकेरी हुई है। देवी के मुकुट में पञ्चमुखी नाग की आकृति है। देवी के दाहिने निचले हाथ में म्हालुंगा ( निम्बू जैसा एक खट्टा फल ), ऊपरी दाहिने हाथ में गदा जिसका शीश धरा को स्पर्श करता है। देवी के बाये निचले हाथ में एक पानपात्र और बाये ऊपरी हाथ में ढाल शोभायमान है। देवी की मूर्ति का मुख अन्य हिन्दू मंदिरों के विपरीत, पश्चिम दिशा को संरक्षण प्रदान कर रही है।
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श्री देवी अम्बाबाई |
महालक्ष्मी मन्दिर में की जाने वाली दैनिक पूजा
मन्दिर प्रातः ४:०० बजे से रात्रि १०:३० बजे तक भक्तों के लिए खुला रहता है। पूरे वर्ष प्रतिदिन मन्दिर में पूजा सेवा दी जाती है। जो की इस प्रकार है -
- प्रातः ४:३० बजे से सेवा का प्रारम्भ होता है, जिसमे पुजारी दिया जलाते है और उपस्थित भक्तगण आरती भजन गाते हुए देवी को जगाते है। इस क्रिया को काकड़ आरती के नाम से जाना जाता है।
- इसके बाद देवी के विग्रह का अभिषेक किया जाता है तथा पुष्प अर्पण किये जाते है। इसे दूसरी सेवा कहा जाता है जिसे प्रातः ८ बजे किया जाता है।
- तीसरी सेवा के रूप में देवी को प्रातः ९:३० बजे भोग या नैवेद्य अर्पण किया जाता है।
- ११:३० बजे महापूजा का आयोजन किया जाता है। जिसमे देवी को महानैवेद्य जिसमें पुरन पोली, चावल, वरन और सब्जियां और चटनी होती है, का देवी को भोग लगाया जाता है।
- देवी के भोग के उपरान्त १:३० बजे देवी का अलंकार पूजन किया जाता है। जिसमे देवी को स्वर्ण आभूषणों से सुसज्जित किया जाता है।
- सायं सेवा में ८ बजे देवी की धूप आरती शंख और घंटा ध्वनि के साथ की जाती है।
- अंत में रात्रि १० बजे देवी की पुनः आरती की जाती है। जिसे सेज आरती के नाम से भी जाना जाता है।
महालक्ष्मी मन्दिर में मनायें जाने वाले पर्वोत्सव
मन्दिर में मनाये जाने वाले मुख्य उत्सव जिनमे हजारों की संख्या में मातृ शक्ति को मानने वाले उनके भक्त उपस्थित होकर हर्षोउल्लास के साथ मानाते है, निम्न है -
किरणोत्सव
- सूर्य की किरणें सीधे देवी के चरणों पर पड़ती है - ३१ जनवरी और ९ नवम्बर
- सूर्य की किरणें सीधे देवी के वक्ष पर पड़ती है - ०१ फरवरी और ९ नवम्बर
- सूर्य की किरणें सीधे देवी के पूरे शरीर पर पड़ती है - ०१ फरवरी और ९ नवम्बर
नवरात्र महोत्सव
ललिता पंचमी
अष्टमी
नवमी
नवमीं से पुनः सभी धार्मिक अनुष्ठान पूर्ववत किये जाते है। देवी रात्रि में ९:३० बजे अपनी पालकी में सवार होकर मन्दिर जुलुस में विधिवत सम्मिलित होती है।
महालक्ष्मी मन्दिर विग्रह की विशेषता
दूसरा मुख्य आकर्षण, मन्दिर के निर्माण कर्त्ता और उन गणितज्ञों और शिल्पकारों का ज्ञान है। जिनके द्वारा निर्माण को ध्यान में रखते हुए उस समय और आज की गणनाओं में भी कोई अन्तर नहीं हुआ है। मन्दिर में सीधे विग्रह पर आज भी जनवरी और नवम्बर के तीन दिनों में भगवान सूर्य के द्वारा आदिशक्ति भगवती अम्बाबाई की अपनी प्रकाश किरणों से पूजा किया जाना है। जिसे किरणोत्सव पर्व के नाम से भी जाना जाता है।
ऐसी मान्यता है कि देवी महालक्ष्मी तिरुपति में वेंकटाद्रि पर्वत पर विराजित अपने पति भगवान वेंकटेश्वर अर्थात भगवान विष्णु से किसी कारणवश रूठकर कोल्हापुर आ गईं। इसके बाद से हर साल भगवान वेंकटेश्वर माता लक्ष्मी को मनाने के लिए तिरुपति से एक विशेष शॉल उपहार स्वरूप भेजते हैं, जिसे माता लक्ष्मी दीपावली के दिन धारण करती हैं।
इसलिए ही कहा जाता है कि तिरुपति की यात्रा तब तक अपूर्ण मानी जाती है, जब तक कि कोल्हापुर में विराजित देवी महालक्ष्मी के दर्शन न किए जाएँ।
महालक्ष्मी मन्दिर कैसे पहुँचे ?
सड़क मार्ग द्वारा
कोल्हापुर पुणे-बैंगलोर राजमार्ग ४ से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। इसके अतिरिक्त अपने निकटवर्ती राज्य कर्नाटक, गोवा और आंध्र प्रदेश के द्वारा भी एक सुनियोजित तरीके द्वारा जुड़ा हुआ है। महाराष्ट्र परिवहन सेवा के द्वारा मुम्बई ( लगभग ३८० किमी ) और पुणे ( २२५ किमी ) से नियमित बस सेवा से जुड़ा हुआ है। जिसके द्वारा आप कोल्हापुर बस स्थानक पहुंच सकते है। जहां से ऑटो के द्वारा आप मन्दिर तक सुगमता से पहुंच सकते है।
रेलमार्ग द्वारा
एक तीर्थस्थल की उपस्थिति होने के कारण कोल्हापुर में अपना रेलवे स्टेशन है जिसमें देश के प्रमुख स्टेशनों के नियमित रूप से ट्रेनो का आवागमन होता रहता है। पुणे से महाराष्ट्र एक्सप्रेस, मुंबई से महालक्ष्मी एक्सप्रेस, बंगलौर से रानी चेन्नमा एक्सप्रेस, अहमदाबाद से अहमदाबाद एक्सप्रेस और तिरुपति से नियमित हजारों यात्री कोल्हापुर पहुंचते है। जहां से ऑटो के द्वारा आप मन्दिर तक सुगमता से पहुंच सकते है।
हवाई मार्ग द्वारा
कोल्हापुर का स्थानीय उज्लेवाडी हवाई अड्डा है। इसका सम्पर्क देश के मुख्य शहरों से ही होने के कारण ज्यादातर तीर्थयात्री मुम्बई या पुणे हवाई अड्डे का ही प्रयोग करते है। जहां से महाराष्ट्र परिवहन सेवा अथवा निजी बस सेवा के द्वारा आप कोल्हापुर तक सुगमता से पहुंच सकते है।
फोटो गैलरी
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