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दांडीश्वर मन्दिर वेलाचेरी

दक्षिण भारत के चेन्नई शहर के वेलाचेरी ( वेदों का स्थान ) का दांडीश्वर मन्दिर, भगवान शिव को समर्पित हिन्दू मन्दिर है। भगवान शिव यहाँ लिंगम रूप में उपस्थित है, जिन्हें दण्डीस्वरार ( यमदूतों के दाता ) और देवी आदिशक्ति पार्वती जिन्हें एक करुणामयी माता अथवा करुणाम्बिकाई के नाम से सम्बोधित किया जाता है। यदि आप अपने जीवन से निराश हो चुके है और अपनी जीवन शक्ति को पूर्णतया खो चुके है, तो इस धार्मिक तीर्थ की यात्रा अवश्य करे क्यूंकि मान्यतानुसार दांडीश्वर मन्दिर में दर्शन और अनुष्ठान करने से आप पुनः अपनी कोई हुई जीवन शक्ति को दण्डीस्वरार की कृपा से प्राप्त कर सकते है। दांडीश्वर मन्दिर जिसका रख रखाव और प्रशासन तमिलनाडु सरकार के मानव संसाधन और सीई विभाग के द्वारा किया जाता है।  


दांडीश्वर मन्दिर से जुडी दंतकथा 


दांडीश्वर मन्दिर से जुडी कथायें तो बहुत है, परन्तु सबसे प्रचलित किंवदंतियों जिसका वर्णन तिरुवन्मियूर स्थल पुराण में किया गया है के अनुसार, यह क्षेत्र जो प्राचीन चेन्नई के पुलियुर कोट्टम का एक अभिन्न भाग था, में हुए द्वंद्व जिसका प्रारम्भ थिरुकादावुर में मार्कण्डेय और मृत्यु के स्वामी यम के मध्य होकर वेलाचेरी में समाप्त हुआ था। द्वापर में ऋषि मुकुंद और उनकी पत्नी जिन्हे संतान सुख की अभिलाषा थी, ने भगवान शिव की कई वर्ष तक कठिन तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर देवादिदेव भगवान शिव द्वारा उन्हें एक पुण्यतमा, गुणों के सागर और ज्ञानी पुत्र जो की अल्पायु होगा का वरदान प्रदान किया। बालक मार्कंडेय वरदान के अनुरूप ही महाज्ञानी व परम शिव भक्त थे, समय के साथ साथ बड़े होने लगे। जब वे १६ वर्ष के हुए तो उनके माता पिता अपने पुत्र की भाग्य को लेकर उदास रहते थे। वह समय भी आ गया जिसके लिए ऋषि और उनकी पत्नी चिन्तित रहा करते थे और मार्कंडेय के प्राण हरण करने के लिए आ गए। बालक मार्कंडेय ने उनके साथ जाने से माना किया और शिवलिंग से लपिट गए। यमराज ने अपना यमपाश फेंका जो की मार्कंडेय के साथ साथ शिवलिंग से भी लिपट गया। जिससे शिवलिंग के दो टुकड़े हो गए और देवादिदेव अपने भक्त की रक्षा के लिए प्रकट हो गए। उन्होंने यमराज से युद्व किया तथा उन्हें हरा कर अपने भक्त के प्राणो की रक्षा की। इस पर भी भगवान शिव का क्रोध यमराज पर काम नहीं हुआ और उन्होंने उनसे उनकी समस्त शक्ति छीन ली। इस घटना से भूदेवी की चिंता बाद गयी की यम की शक्ति न होने से धरती पर मनुष्यों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जाएगी जिससे वे अपना संतुलन नहीं रख पायेंगी। इधर यम भी अपनी शक्तियों को पुनः पाने के लिए कैलाश की तरफ जा रहे थे। तब उनके मार्ग में उन्हें नारद जी मिलें और उन्होंने उन्हें वेलाचेरी जाने और स्वयंभू शिवलिंग की प्रार्थना करने की सलाह दी। यमराज ने इस स्थल पर एक कुण्ड का निर्माण किया और भगवान शिव की तपस्या की। भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें उनकी शक्तियां वापस कर दी। जिससे यमराज ने भगवान शिव से प्रार्थना की की वे उस स्थान पर दंडीश्वर (दंड को हरण करने वाले ) के रूप में निवास करे। इस प्रकार दांडीश्वर मन्दिर अस्तित्व में आया।  

दूसरी किंवदंती के अनुसार, असुर हिरण्याक्ष द्वारा जब चारों वेदों का हरण कर समुद्र में छिपा लिया। जिन्हे भगवान विष्णु ने हिरण्याक्ष का वध करके उसके बंधन से मुक्त कराया। चारों वेद जो की अपना तेज खो चुके थे, ने वेलाचेरी के इस स्थल पर स्वयं भू शिवलिंग से अपना तेज लौटाने की प्रार्थना की। देवादिदेव महादेव ने प्रसन्न होकर उनकी शक्ति उन्हें लौटा दी। इसलिए जो लोग अपनी शक्ति को खो देते है उन्हें इस स्थल पर दर्शन करने से पुनः अपनी शक्ति प्राप्त होती है। 


दांडीश्वर मन्दिर का इतिहास 

प्रारम्भिक काल में लगभग ९वीं शताब्दी के समय वेलाचेरी एक गांव के रूप में अस्तित्व में था। जिसका उल्लेख गर्भगृह की दीवारों पर पाए गए अनेक प्रकार के शिलालेख, जो की तमिल भाषा में लिखे गए है, के द्वारा होता है। जिनसे ज्ञात होता है कि मन्दिर का निर्माण कार्य चोल राजवंश के राजाओ के द्वारा कराया गया। राजा कोप्परुंजिंगन प्रथम का जिन्होंने १२वीं शताब्दी के दौरान शासन किया था का शिलालेख भी यहाँ पर उपलब्ध है। सबसे प्राचीन शिलालेख राजा गंडारादित्य चोल के काल का है। किन्तु स्थानीय लोकमत के अनुसार  मन्दिर का निर्माण कार्य पल्लव शासकों के आदेश पर कराया गया था। चूंकि ऐतिहासिक साक्ष्य प्रमाणित करते है की वेलाचेरी पर कदवों, चोलों, पांड्यो और पल्ल्वो से शासन किया है। अप्पय दीक्षितर द्वारा १६वीं शताब्दी में श्री चक्र के साथ देवी को भी मन्दिर में स्थापित किया गया था।  इसके अतिरिक्त आरकोट के भक्त ने मन्दिर परिसर में श्री गणेश के मन्दिर का निर्माण करा के नित्य अनुष्ठानों का प्रावधान कराया। 


दांडीश्वर मन्दिर की वास्तुकला 

राजगोपुरम 
मन्दिर में प्रवेश के लिए ३ प्रवेश द्वार है - पूर्व, पश्चिम और उत्तर दिशा में। मुख्य प्रवेश द्वार पांच स्तरों वाला गोपुरम है जिसका मुख उत्तर दिशा की और है। परिसर में करुणांबिका, गणपति, शास्ता सुब्रमण्य आदि के मन्दिर है।  उत्तरी द्वार के पास श्री गणेश और सुब्रमण्यम के मन्दिर है। इसके अतिरिक्त इस द्वार के निकट सोमस्कन्द, चंद्रशेखर, उमा, लक्ष्मी और सरस्वती की उत्सव मुर्तियां भी उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त परिसर में नंदी मण्डपम, ध्वज स्तम्भ और बलि पीठम आदि भी है।
 

बाहरी प्राकरम में सूर्य, ६३ नयनमार, नलवर, सेक्किझार , गणेश, वीरभद्र और सनेश्वर  मूर्तियां है। अन्य मन्दिरों में गणेश और सुब्रमण्यम की छोटी मूर्तियों के साथ विश्ननाथर और विशालाक्षी तथा वैथीश्वर लिंगम, बड़ा चोककनाथ लिंगम, नंदी के साथ देवी मीनाक्षी, वेद विनायक बाहरी प्राकरम मुख्य आकर्षण है। 


पीठासीन देवता दण्डीस्वरार जिनका शिवलिंग पूर्व दिशा वाले गर्भगृह में है। ऐसा माना जाता है, तमिल नव वर्ष के प्रथम दिवस पर भगवान सूर्य, दण्डीस्वरार की उपासना करने आते है अर्थात इस दिन सूर्य की पहली किरण शिव लिंग पर सीधी पड़ती थी, किन्तु बाद में मन्दिर क्षेत्र के आस पास ऊँचे निर्माण के कारण अब ऐसा सम्भव नहीं है। 


माँ करुणाम्बिकाई को महामण्डप में स्थित दक्षिण की ओर एक अलग गर्भगृह में रखा गया है। जिनकी चार भुजाओं के साथ खड़ी मुद्रा में दिखाई दे रही हैं। 


आमतौर पर मंदिरों में वीरभद्र डंडा के साथ खड़ी मुद्रा में देखे जाते है, लेकिन इस मन्दिर में वह अपने दाहिने पैर को मोड़कर बैठे हुए दिखाई दे रहे हैं। उनके पास मजू और डंडा की जगह रुद्राक्ष की माला है। मन्दिर में एक पवित्र जलकुण्ड है, जिसे यम थीर्थम के नाम से जाना जाता है। मन्दिर परिसर में विल्व वृक्ष या स्थल वृक्ष है। 


दांडीश्वर मन्दिर का महत्व व विशेष दिवस 

विशेष दिवस 

मन्दिर प्रातः काल ५:०० बजे से ११:०० बजे तक और पुनः सायं ४:३० बजे से रात्रि ८:३० बजे तक श्रदालु तीर्थयात्रियो के लिए खुला रहता है। इस अवधि में पारम्परिक तमिल शैव मंदिरो की ही तरह दैनिक धार्मिक अनुष्ठान किये जाते है। मन्दिर में प्रदोष, षष्ठी, कृतिकाई मासिक उत्सव है। इनके अतिरिक्त फरवरी-मार्च में माने जाने वाला महा शिवरात्रि, अप्रैल-मई में चित्रा पूर्णिमा, तमिल माह आदि में रविवार और अक्टूबर-नवम्बर में मनाया जाने वाला जाने वाला अन्ना अभिषेकम तथा नवरात्रि मुख्य उत्सव है, जिनमें हजारों की संख्या में भक्तगण भगवान दण्डीस्वरार और देवी करुणाम्बिकाई के दर्शन के लिए आते है। 


महत्व 

मंदिर में वीरभद्र जो की महिलाओं के संरक्षक देवता माने जाते है, महिलाओं द्वारा उनकी पूजा का विशेष महत्त्व है। महिला भक्त उन्हें पान की माला चढाती है तथा दूध से उनका अभिषेक करती है। जो लोग अपनी नौकरी खो चुके है, वे यहाँ पर आकर दण्डीस्वरार के दर्शन करके मनोवांछित नौकरी को प्राप्त करते है। 

लोग यहाँ पर अपना ६०वां और ८०वां जन्मदिन मानते है क्योंकि मान्यतानुसार यह स्थान मृत्यु के देवता यमराज  को समर्पित है जिन्होंने इस स्थान पर अपना याम दंड प्राप्त किया था। वे यहाँ पर प्रार्थना करते है तथा अपनी लम्बी उम्र के लिए होम आदि करते है। 


दांडीश्वर मन्दिर में दर्शन के लिए टिप्स  

१. आप स्नान करने के पश्च्यात, स्वच्छ पारम्परिक वस्त्र जैसे धोती अथवा पायजामा पहने जिनमें अधोवस्त्र अवश्य हो पहने।  यदि आप महिला दर्शनार्थी है तो साड़ी या सलवार सूट का प्रयोग करे। 

२. प्राचीन परम्पराओं का पालन करें। 

३. किसी भी प्रकार का नशा और धूम्रपान मन्दिर परिसर और उसके गर्भगृह में वर्जित है। अतः दांडीश्वर मन्दिर के नियमों का पालन करते हुए किसी भी प्रकार का नशा न करते हुए मन्दिर में गर्शन के लिए जाये। 

४. अप्रैल से जून का समय इस क्षेत्र का सर्वाधिक गर्म समय है अतः यदि आप इस समय यात्रा कर रहे है तो अपने साथ पानी की उचित मात्रा अवश्य रखें। 

५. उत्सवों की अवधि में मन्दिर प्रशासन द्वारा उचित व्यवस्था की जाती है, उनका सम्मान करते हुए दर्शन में होने वाले विलम्ब से परेशान न हो। अनुमानित दर्शन की अवधि इस समय में ३० मिनट से एक घंटे तक की हो सकती है।  


दांडीश्वर मन्दिर वेलाचेरी कैसे पहुचे ?

यदि आप दांडीश्वर मन्दिर में दर्शन की योजना बना रहे है तो सबसे बेहतरीन ऋतु सितम्बर से फरवरी की है।  तो वेलाचेरी पहुंचने के लिए आप चेन्नई, जो देश के सभी छोटे बड़े शहरों से एक सुनियोजित रूप से जुड़ा हुआ है तक आसानी से पहुंच सकते है जहां से आप स्थानीय राजकीय बस सेवा अथवा टैक्सी इत्यादि के द्वारा सुगमता से वेलाचेरी पहुंच सकते है। 


हवाई जहाज से 

निकटतम हवाई अड्डा चेन्नई का है जहां से मन्दिर के लिए बहार निकल कर टैक्सी ले सकते है। 


रेल मार्ग से 

चेन्नई एग्मोरे रेलवे स्टेशन और वेलाचेरी रेलवे स्टेशन दो स्टेशन जिनकी निकटम दूरी वेलाचेरी से क्रमश १५ किमी और २ किमी है, मन्दिर के लिए बहार निकल कर स्थानीय राजकीय बस सेवा अथवा टैक्सी ले सकते है।


सड़क मार्ग से 

चेन्नई के गाँधी नगर बस स्टॉप से वेलाचेरी की सीधे बस सेवा उपलब्ध है परन्तु यह दूरी ( लगभग २५० किमी ) ज्यादा होने से जहा तक हो सके इसका प्रयोग करने से बचे। वैसे वेलाचेरी बस स्टेशन से मंदिर की दूरी 1.२ किमी के लगभग है। 



 


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