Header Ads Widget

Responsive Advertisement

छोटानिकारा मन्दिर

केरल जिसकी रक्षक देवी भद्रकाली है, के मन्दिरों की श्रृंख्ला में एक देवस्थल ज्योति अन्नाक्कारा मन्दिर या छोटानिकारा मन्दिर, एक प्राचीन तीर्थस्थल के रूप में जाना जाता है। यह देवस्थल भारत के केरल में स्थित कोच्चि के छोटानिकारा नामक स्थल पर स्थित है। जहां प्रति वर्ष हजारों की संख्या में शक्ति मत या देवी को मानने वाले उनके भक्त देवी भद्रकाली के दर्शन के लिए आते है। छोटानिकारा मन्दिर कोचीन देवस्वम बोर्ड जो केरल के ३९३ मन्दिरों का प्रबंधन करता है, के अंतर्गत आने वाला सबसे महत्वपूर्ण मन्दिर है। देवी के तीनो रूप एक ही प्रतिमा में द्रष्टिगोचर होते है, यही इस मन्दिर की सबसे मुख्य विशेषता है। यहाँ देवी भद्रकाली, राजराजेश्वरी के रूप में प्रातःकाल ज्ञान की अधिष्ठात्री महासरस्वती के रूप में श्वेत वस्त्रों में , दिन में समृद्धि की देवी महालक्ष्मी के रूप में लाल वस्त्रों में तथा शाम को महाकाली के रूप में नील वस्त्रों में अपने भक्तों को दर्शन देती है। 

छोटानिकारा मन्दिर
देवी भद्रकाली 

छोटानिकारा मन्दिर से जुडी किवदंती 

मन्दिर और उसके क्षेत्र से जुडी उसकी किंवदंती भी मंदिर की ही तरह रोचक है।


एक बार पराशक्ति की प्रेरणा से आदि शंकराचार्य के मन में विचार आया विचार आया कि केरल की पवित्र धरती पर देवी सरस्वती का कोई भी मंदिर नहीं है। ऐसा विचार आते ही उन्होंने चामुंडी पहाड़ियों की तरफ अपना रूख कर लिया और वहां पहुंच कर उन्होंने तप करना प्रारम्भ कर दिया। प्रसन्न होने पर देवी ने प्रकट होकर वरदान मांगने को कहा। तो आदि शंकराचार्य ने उन्हें अपने गृहनगर केरल ले जाना चाहते की अभिलाषा व्यक्त की, ताकि वहां के लोगों जिनमे अधिकांश वृद्ध लोग थे को लम्बी दूरी की यात्रा करने में मुश्किल होती थे। देवी के दर्शन करने में असमर्थ रहते थे। बहुत अनुनय विनय के बाद देवी इस शर्त पर साथ चलने को तैयार की वो उनके अनुगत (अर्थात पीछे पीछे ) चलेंगी लेकिन वो किसी भी परिस्थिति में पीछे मुडकर यह नहीं देखेंगे की देवी उनके पीछे है या नहीं। यदि वह पीछे मुड कर देखेंगे तो देवी उसी स्थान पर स्थिर हो जायेंगी और आगे नहीं चलेंगी। शंकराचार्य देवी से सहमत हो गए और देवी ने उनका अनुसरण करना प्रारम्भ कर दिया। जब वह चलते चलते कोडाचाद्री की पर्वत श्रृंख्ला पर पहुंचे तो आदि शक्ति जगदम्बा ने शंकराचार्य परीक्षा लेने का विचार किया और अपनी पायल से उत्पन्न होने वाली झनझनाहट को रोक दिया। पायल की झनझनाहट शंकराचार्य के लिए संकेत था की देवी उनके पीछे पीछे चल रही है। जब उन्होंने कुछ देर तक पायल की झनझनाहट नहीं सुनी तो तो उन्होंने पीछे मुड़ कर देवी की तरफ देखा तो देवी अपनी शर्तानुसार वही स्थित हो गयी। इसी स्थल पर वर्तमान का कोल्लूर मुकाम्बिका मन्दिर स्थित है। आदि शंकराचार्य को अपने द्वारा की गयी इस भूल का अहसास होते ही वे बारम्बार देवी से विनति करने लगे। काफी प्रयासों के बाद देवी इस बात पर तैयार हुई कि वह प्रतिदिन प्रातःकाल छोटानिकारा मन्दिर में आयेंगी और अपने भक्तों को दर्शन प्रदान करेंगी परन्तु दोपहर में कोल्लूर वापस आ जायेंगी। तब से आज तक प्रथा स्वरुप कोल्लूर मुकाम्बिका मन्दिर से पहले छोटानिकारा मन्दिर के पट खोले जाते है और माँ शारदा का पूजन किया जाता है।


छोटानिकारा मन्दिर
मन्दिर परिसर 

एक अन्य लोककथा के अनुसार, जिस क्षेत्र में मन्दिर स्थित है, प्राचीन समय में वह एक घना वन क्षेत्र था जिसमें यक्ष जाती के लोग निवास करते थे। इस वन में एक आदिवासी कन्नप्पन, जो देवी काली का भक्त था, रहता था तथा प्रत्येक शुक्रवार को देवी को जानवरों की बलि चढ़ाता था। एक दिन उसने जंगल के पास घूम रहे एक बछड़े को पकड़ लिया और बलि देने के लिए वेदी पर ले जाने लगा।  जब वह बलि की तैयारी कर रहा था तभी उसकी पुत्री पविजम वहां आ गयी और बलि के लिए लाये गए बछड़े को मुक्त करने की प्रार्थना अपने पिता से की। कन्नप्पन ने उस बछड़े को अपनी पुत्री को दे दिया। दुर्भाग्य से कुछ दिन बाद ही उसकी पुत्री की मृत्यु हो गयी। कन्नप्पन ने बड़े ही दुःखी मन से पविजम के अंतिम संस्कार की तैयारी प्रारम्भ की। अब जो घटना घटी, उसने सभी को आश्चर्य में डाल दिया, क्योंकि अंत समय उसकी पुत्री का पार्थिव शरीर गायब हो गया। कबीले के पुजारी ने इस घटना का कारण बताते हुए कन्नप्पन को बताया चूँकि वो जबरदस्ती बछड़ो को उनकी माताओं से अलग कर के उनकी बलि देता था इस लिए देवता ने उसे सजा देने के लिए एक दिव्य बछड़े का रूप लिया जो दिव्य जोड़े श्री हरी और देवी लक्ष्मी का प्रतिनिधित्व करता था, से अपने किये हुए अपराधों के लिए क्षमा मांगे। कन्नप्पन की मृत्यु के बाद उस स्थल जहा कन्नप्पन बलि देता था को लोग भूल गए।  उस स्थल को एक बार पुनः घास काटने वाली जाती के लोगो द्वारा खोजा गया। जब काम करते समय एक बिना धार की दराती के लगने से पत्थर से रक्त का प्रवह होने लगा। जिसे देख आस पास के लोग भयभीत हो गए। सबने मिल कर पुजारी को बुलाया। उसने देवप्रसन्न करने के बाद बताया यह पत्थर दिव्य है। उस पर येदत्तु घर के बड़े ब्राह्मण नारियल के खोल में मुरमुरा लेके इस स्थल पर आये और प्रसाद स्वरुप उसे उस पर अर्पण किया। जो की इस स्थल पर चढ़ाया गया देवी को पहला प्रसाद था। ऐसी स्थल पर छोटानिकारा मन्दिर का निर्माण किया गया और येदत्तु घर के ब्राह्मण इस मन्दिर के वंशानुगत पुजारी बन गए। 


छोटानिकारा मन्दिर का परिसर और उसके मन्दिर 

मुख्य रूप से विशिष्ट केरल वास्तुशैली में लकड़ी का प्रयोग करके कोच्चि के बाहर बनाये गए छोटानिकारा मन्दिर परिसर में दो स्तरीय देवी मन्दिर के अतिरिक्त कई अन्य छोटे छोटे मन्दिर निर्मित है। 

मुख्य छोटानिकारा मन्दिर 

यह एक खुले मैदान में बना हुआ मन्दिर परिसर का सबसे बड़ा मन्दिर है, जिसमें पीठासीन देवता नारायण की पूजा उनकी शक्ति देवी नारायणी के साथ की जाती है। जो की मुख्य स्वरुप में महालक्ष्मी का ही रूप है। 

छोटानिकारा मन्दिर
नारायण और देवी छोटानिकारा 
मुख्य मूर्ति लैटेराइट पत्थर में है जिसे संस्कृत में रुद्राक्ष शिला भी कहा जाता है। यह एक स्वयंभू शिला है। देवता के मानव रूप को उनके सभी चिन्हों के साथ दर्शाता है। देवी के विग्रह के निकट ही महाविष्णु का विग्रह है, जिन्हें स्थानीय भाषा में अम्मे नारायण, देवी नारायण और भद्र नारायण कहा जाता है। 

किजुक्कावु मन्दिर 

यह एक प्राचीन मन्दिर है, जो मुख्य मंदिर के नीचले स्तर पर स्थित है ऊपरी तल सीढ़ियों के माध्यम से जुड़ा हुआ है। दोनो के बीच एक मंदिर का कुंड है।  जिसकी पीठासीन देवता के रूप में देवी भद्रकाली शोभायमान है। जिन्हे कीझक्कावू भगवती कहा जाता है। 


छोटानिकारा मन्दिर

जो की देवी कालिका का ही एक रूप है। गुरुथी पूजा देवी का आह्वान करने के लिए की जाने वाली एक विशेष पूजा है, जो सायंकाल में प्रत्येक शुक्रवार को की जाती है। गुरुथी का शाब्दिक अर्थ "बलिदान" है, परन्तु तत्कालीन समय में यह एक प्रथा के रूप में देवी को भोजन के रूप में चढ़ा के दी जाती है और अब इसे प्रतिदिन किया जाता है। 


छोटानिकारा मन्दिर का महत्त्व 

छोटानिकारा मन्दिर
माना जाता है कि यहाँ मानसिक समस्या अथवा सिजोफ्रेनिया से पीड़ित महिलाये व वह लोग जिन पर बुरी आत्माओं का साया होता है आते है और माँ भद्रकाली की कृपा से उनसे मुक्ति प्राप्त करते है। आपने कई मानसिक रोगियों को मन्दिर के आसपास परिसर में बैठे हुए देखेंगे। उन्ही लोगो की दृष्टि आपको असहाय या वहां की असमान्य और बैचेन करने वाली ऊर्जा का अनुभव कराती है। 

मंदिर के चारो ओर के पेड़ घने और लम्बे नाखूनों से भरे हुए है। मान्यता है जो भी मानसिक रोगी यहाँ देवी की कृपा के पात्र बन जाते है, वह ४१ दिन तक मन्दिर में प्रार्थना करने के बाद यहाँ पर एक कील जिसे वो अपने माथे से ठोंकते है। पेड़ पर कुछ छोटे पालने जैसा त्रिंकोमाली कोनेस्वरा मन्दिर जो की श्रीलंका में स्थित है में लगाए जाते है जैसा देखने को मिलता है। जिन्ह दम्पतियों द्वारा देवी से बच्चों की कामना के लिए लगाया जाता है। देवी के भक्तों को प्रसाद में नीम के पत्ते, चूना और मिर्च दी जाती है। मान्यता है इस प्रसाद को घर ले जाने से घर से बुरी शक्तियां दूर रहती है और घर में समृद्धि बनी रहती है। 

 छोटानिकारा मन्दिर में की जाने वाली पूजा का समय 

दैनिक पूजा 
पूजा का समय 
नाडा ( गर्भगृह के पट खुलना )
भगवान शिव की धारा 
एथ्रथू पूजा 
प्रातः सेवेली 
प्रातः गुरुथी पूजा 
पंथीराडी पूजा 
भगवान शिव की धारा 
उच्च पूजा 
दोपहर सेवेली
शाम नाडा 
दीपराधना 
अथाह पूजा 
सायं सेवेली
संध्या गुरुथी पूजा
प्रातः ४:०० बजे 
प्रातः ५:०० बजे 
प्रातः ५:३० बजे
प्रातः ६:०० बजे
प्रातः ७:३० बजे
प्रातः ७:४५ बजे
प्रातः ११:०० बजे
अपराह्न १२:०० बजे
अपराह्न १२:१० बजे
सायं ४:०० बजे 
सायं ६:३० बजे 
सायं ७:३० बजे 
सायं ८:०० बजे 
सायं ८:४५  बजे 

** देवी के वह भक्त को केरल तक नहीं जा सकते है। उनके लिए मन्दिर में की जाने वाली दीप आराधना का सीघा प्रसारण मन्दिर वेबसाइट पर भी उपलब्ध है। 


वेदी वजीपाडु  

वेदी वजीपाडु (एक प्रकार का पटाखें फोडने) का उत्सव मन्दिर में मनाया जाने वाला एक विशेष प्रकार का अनुष्टान है, जिसे मन्दिर में किया जाता है। इस पूजा को करने के लिए आप मन्दिर प्रशासन से पूजा के लिए बुकिंग कर सकते है, जिसे मन्दिर प्रशासन द्वारा नियुक्त कर्मचारी फोडता है। यह अनुष्ठान इस मन्दिर का मुख्य आकर्षण का हिस्सा है। यह दोनों मुख्य मंदिरों को जोड़ने वाली सीढ़ियों के निकट ही किया जाता है। 


छोटानिकारा मन्दिर में मनाये जाने वाले मुख्य उत्सव 

नवरात्रि

मन्दिर जिसका मुख्य अलंकार एक भगवती है,अतः अन्य देवी मंदिरों की ही तरह नवरात्रि का पर्व मन्दिर का सबसे हर्षोल्लास से मनाया जाने वाला एक उत्सव है। दुर्गाष्ठमी, दुर्गानवमी और विजयादशमी तीनों दिन मन्दिर में हर्षोल्लास के साथ हजारों भक्तों के द्वारा मनाये जाते है। विजयादशमी के दिन विद्यारंभम के रूप में आयोजित होता है। जिसमें ३ से ६ आयु वर्ष के शिशुओं को विद्या की देवी के समक्ष पढ़ने, लिखने और अंकगणित की दीक्षा देने का प्रावधान है। 


माकम थोझाली 

छोटानिकारा मन्दिर में वार्षिक उत्सव के रूप में मनाया जाने वाला मकम थोझल या माकम थोझल का उत्सव है। मान्यतानुसार इस दिन विल्वुमंगला स्वामी ने देवी के दर्शन किये थे इस लिए देवी के भक्त इस दिन उनकी उपासना करते है। इस दिन देवी को प्रातः उत्तरी किनारे पर स्थित कैली ओनाकुट्टीचिरा ( पवित्र जलकुंड ) में अनुष्ठानिक स्न्नान के लिए लाया जाता है। इसके उपरांत देवी को उनके मन्दिर तक लाया जाता है। जहा से वो सात हाथियों पर भगवान सस्थ के साथ सवार होकर पूरापरंभु की ओर जाती है। 

मध्याह्न के समय गर्भगृह का द्वार उच्च पूजा के लिए बंद किया जाता है तथा पुनः दोपहर २ बजे "मकम दर्शन" के लिए खोला जाता है। जिस समय विल्वुमंगला स्वामी ने देवी के दर्शन किये थे उस देवी अपने पूर्ण वैभव में प्रकट हुई थी और विल्वुमंगला स्वामी के द्वारा उनकीप्रतिष्ठा के बाद वे पश्चिम को चली गयी थी। छोटानिकारा देवी के उसी वैभवपूर्ण रूप जिसमें वह अपने सुन्दर चारो हांथो में वर,अभय, शंख और चक्र के साथ सुन्दर अभूषणों से शुसोभित होती है। अपने भक्तों को दर्शन देती है। स्थानीय मान्यता के अनुसार यह देवी का सबसे प्रबल रूप होता है और इस समय पर दर्शन करने से भक्त की सभी प्रार्थना और इच्छाओं की पूर्ति हो जाती है। 


छोटानिकारा मन्दिर में रहने की व्यवस्था 

चूँकि वो भक्त जिनको मानसिक समस्याओं से मुक्ति मिलती है। वे देवी की ४१ दिन तक प्रार्थना करते है और उनमे से की भक्त दूर दूर से आते है इस लिए मन्दिर प्रशासन की तरफ से रहने की व्यवस्था उपलब्ध कराई गयी है, जिसका शुल्क भी बहुत ही न्यूनतम निर्धारित किया गया है। जिसके लिए आपको जाने से पूर्व ही सुचना प्रदान करके कमरे का आरक्षित कराना पड़ता है। कमरों की सूंची इस प्रकार है -

कमरों का नाम 
कमरों का प्रकार 
 शुल्क प्रतिदिन 

नारायण मन्दिर
नारायण मन्दिर
कार्तिका 
कार्तिका
कार्तिका
अमृता आवास ए ब्लॉक 
दर्शना 
सुदर्शन 
    

डबल बेड रूम ( बिना ए सी )
डीलक्स रूम ( बिना ए सी )
डबल बेड रूम ( ए सी )
३ बेड रूम ( ए सी )
छात्रावास १० बेड 
३ बेड रूम
सिंगल बीएड रूम 
सिंगल बीएड रूम


४००.०० भारतीय रूपए 
८००.०० भारतीय रूपए
११००.०० भारतीय रूपए
२०००.०० भारतीय रूपए
१२५०.०० भारतीय रूपए
६५०.०० भारतीय रूपए
२००.०० भारतीय रूपए
२००.०० भारतीय रूपए

कमरे की बुकिंग के लिए आप चेक,ड्राफ्टऔर मनी आर्डर भी भेज सकते है जिसका विवरण इस प्रकार है -

चेक और ड्राफ्ट के लिए :
आवास प्रबंधक, छोटानिकारा देवस्वोम 
 
मनी आर्डर के लिए :
आवास प्रबंधक, छोटानिकारा देवस्वोम, छोटानिकारा, जिला एर्नाकुलम, केरल - ६८२ ३१२   
आप दूरभाष और ई-मेल के द्वारा भी प्रशासन से सम्पर्क कर सकते है -
☎   ०४८४ - २७११०३२ और  २७१३३०० 
📧  eo@chottanikkarabhagavathy.org 

छोटानिकारा मन्दिर कैसे पहुंचे ? 

सड़क मार्ग से

सबसे निकटतम बस अड्डा एर्नाकुलम बस स्टेशन है।  इसके अतिरिक्त कोच्चि ( १६ किमी ), तिरुवंतपुरम बस स्टेशन ( १९९ किमी )   और मदुरै बस स्टेशन (२६० किमी )  लगभग है। जहाँ से छोटानिकारा मन्दिर के लिए नियमित बस सेवा उपलब्ध है। 

रेल मार्ग से

निकटतम रेलवे स्टेशन एर्नाकुलम है जो देश के सभी मुख्य रेलवे स्टशनों से जुड़ा हुआ है। जहां से छोटानिकारा मन्दिर की दूरी १५ किमी है, जिसे आप स्थानीय बस या किराये पर उपलब्ध टैक्सी के द्वारा पूरा करके देवी के दर्शन कर सकते है। 

हवाई मार्ग से

सबसे निकटतम हवाई अड्डा कोचीन  हवाई अड्डा है। जहाँ से छोटानिकारा की दूरी ३८ किमी है।


** मंदिर में करोना महामारी को देखते हुए ऑनलाइन पूजा की सुविधा छोटानिकारा देवस्वोम के द्वारा उपलब्ध कराई गयी है जिसमे भक्त पूजा  बुकिंग कर सकते है। ऑनलाइन  बुकिंग के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें। 






एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ