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चेंगन्नूर महादेवा मन्दिर

चेंगन्नूर महादेवा मन्दिर, केरल के चेंगन्नूर शहर के मध्य में स्थित एक प्राचीन मन्दिर है, जिसके अलंकार रूप भगवान शिव व भगवती सती है। जिसके कोविल ( गर्भगृह ) में उपस्थित भगवान शिव का मुख पूर्व तथा देवी मन्दिर में उपस्थित भगवती का मुख पश्चिम दिशा की ओर है। आमतौर पर जब आप चेंगन्नूर महादेवा मन्दिर नाम को सुनते है तो लगता है की इस मन्दिर की प्रसिद्ध का कारण शिव मन्दिर होना होगा परन्तु इस मन्दिर की प्रसिद्धि का कारण इसके विपरीत उनकी शक्ति प्रकृति स्वरूपा देवी सती का मन्दिर है इसलिए इसे चेंगन्नूर भगवती मन्दिर के नाम से भी जाना जाता है। इसके अलावा इस शहर की प्रसिद्धि का कारण इसको सबरीमाला मन्दिर के प्रवेश द्वार के रूप में माना जाना भी है। मन्दिर में उपदेवता के रूप में श्री विघ्नेश्वर, शास्ता ( भगवान अयप्पा ), श्री चण्डिकेश्वरन, नीलग्रीवन, गंगा और नागर की उपासना की जाती है। पास ही में भगवान श्री कृष्ण का एक मन्दिर भी स्थित है।


चेंगन्नूर महादेवा मन्दिर

 मन्दिर को सदियों पहले एक विकसित और सुनियोजित प्रकार से वास्तुकला के ज्ञाता पेरुंथाचन ( मुख्य वास्तुकार ) की डिजाइन से बनाया गया था। १८वीं शताब्दी में लगी आग से मन्दिर का अधिकांश परिसर लगभग समाप्त हो गया था। तत्कालीन चेंगन्नूर महादेवा मन्दिर की सनरचना का निर्माण वंधिपुझा थनपुरन के द्वारा किया गया। परन्तु वंधिपुझा थनपुरन, पेरुंथाचन जितने कुशल वास्तुकार न होने के कारण वे इस मन्दिर के कुथमबलम ( प्रदर्शन हाल ) जिसके प्रत्येक पद पर सभी दीपक जलाये जाने पर कलाकार की छाया मंच पर नहीं पड़ती थी, का निर्माण न कर सके। 


केरला के अन्य मन्दिरों की तुलना में इस मन्दिर की विशेषता जो इसे अन्य देवी मन्दिरों से भिन्न बनाती है वो है इस मन्दिर की दिलचस्प मान्यता और मन्दिर में मनाया जाने वाला मुख्य पर्व त्रिपुथरटटू है, जिसे उर्वरता का प्रतीक माना जाता है। यह मन्दिर गुवहाटी  में स्थित देवी कामाख्या मन्दिर के समकक्ष ही शक्तिपीठ के रूप दक्षिण में माना जाता है तथा त्रिपुथरटटू का पर्व जोकि एक मासिक धर्म से जुड़ा है समय समय पर वर्ष भर में आयोजित किया जाता है। 

चेंगन्नूर शहर और चेंगन्नूर महादेवा मन्दिर से जुडी किंवदंतियां 

चेंगन्नूर शहर और उसके प्रसिद्ध चेंगन्नूर महादेवा मन्दिर से कई जुडी हुई किंवदंतियां है। जो इसकी सत्यता को प्रमाणित करती है तो आइये जानते है उन किंवदंतियों को -  


शिव - पार्वती के दिव्य विवाह के दरम्यान कैलाश पर देवगणों, भूतों पिशाचों, सुर - असुर, ॠषि और मुनियों का आगमन हुआ। ऋृषि अगस्त भी इस विवाह में समलित होना कहते थे परन्तु धरती के उत्तरी भाग पर लोगो के एकत्र होने से धरती का उत्तरी भू भाग झुकने लगा तब शिव जी ने ॠषि अगस्त को श्रोनाद्री पर बैठने का आदेश दिया जिससे धरती को संतुलित रखा जा सकें। ॠषि अगस्त ने उनकी आज्ञा को सम्मान देते हुए श्रोनाद्री पर जाना स्वीकार कर लिया परन्तु देव विवाह न देख पाने के लिए चिंता भी व्यक्त की। विवाह के उपरांत जब भगवान शिव  माता पार्वती को लेकर श्रोनाद्री पहुंचे, ताकि ॠषि अगस्त अपनी भार्या लोपामुद्रा के साथ उनके दर्शन करने का सुख प्राप्त कर सके। किन्तु वहां माता "ऋतु" ( मासिक धर्म ) से हो गयी।  जिसके कारण वो इस स्थान पर अपने मासिक धर्म के समाप्त होने तक निवास करती रही। ॠषि अगस्त जिस स्थल पर शिव जी के आदेश से बैठे थे उसे मलयालम में चेंगन्नूर (लाल पर्वत) कहा जाता है। इसलिए इस शहर का नाम चेंगन्नूर पड़ा। 


चेंगन्नूर महादेवा मन्दिर के पश्चिमी प्रवेश द्वार से जुडी शपथ लेने की एक दिलचस्प प्रथा का पालन किया जाता है जिसकी किवदंती भी शपथ की ही तरह रोचक है। एक मुरींगुर परिवार जो की चेंगन्नूर देवी के बहुत बड़े भक्त थे। एक बार एक अलवर ने उन्हें लड़ने की चुनौती दी, किन्तु देवी के भक्त परिवार में उपस्थित एक मात्र १२ वर्षीय पुरुष जो की एक बालक था ने देवी से प्रार्थना की। देवी ने रात्रि में दर्शन देकर एक पीतल के पाइप जिसमे एक सांप जो की बालक के नियंत्रण में होगा, का उपयोग करने का निर्देश दिया। अगले दिन लड़के ने उस अलवर को उस सांप को छोडने की चुनौती दी। जिसमे वो विफल रहा और सांप उसे काटने ही जा रहा था की उसने बालक से विनती की कि वो उसकी उस सर्प से रक्षा करे। बालक ने उस सांप को पुनः पाइप में बंद कर दिया। उस पाइप में उपस्थित सर्प को पश्चिमी प्रवेश द्वार के पास एक छेद करके छोड़ दिया। उस बालक ने वह उपस्थित लोगो को बताया की यदि कोई झूठ बोलकर अपना हाथ इस छेद के अंदर डालेगा तो सर्प उसे डस लेगा। ऐसी मान्यता आज भी चली आ रही है। 


एक और किंवदंती के अनुसार, रानी कन्नकी, जिन्हे देवी सती का अवतार माना जाता है के पति की हत्या पंड्या राजा ने कर दी थी जिसका मदुरै पर शासन था। रानी कन्नकी ने उसकी हत्या कर दी और चेंगन्नूर आ गयी।  यहाँ एक पहाड़ी पर अत्पस्या करने लगी। जब वह तपस्या कर रही थी तो उनके पति राजा कोवलन प्रकट हुए और दोनों ने एक साथ ही स्वर्ग की अपनी यात्रा प्रारम्भ की। सिलपथिकारम में जिस स्थान पर देवी ने ध्यान किया था उस स्थल का उल्लेख चेन कुन्नू के रूप में किया गया है। वह पर रहने वाले लोगों ने अपने राजा चेरन सेनकुट्टुवन की आर्थिक सहायता से मन्दिर का निर्माण किया। माना जाता है कि जिस पत्थर पर छवि को उभारा गया है वो राजा चेरन सेनकुट्टुवन ने हिमालय से मंगाया था। 


चेंगन्नूर महादेवा मन्दिर का इतिहास

चेंगन्नूर महादेवा मन्दिर जिस स्थल पर बनाया गया है वह स्थल वंधीपुझा थनपुरन के अधीनस्थ था। जिसे उसने नयनारु पिल्लई को पट्टे पर दिया हुआ था। एक दिन जब नयनारु पिल्लई की नौकरानी इस स्थान पर काम कर रही थी, उसने देखा कि एक पत्थर से खून निकल रहा है। जिसकी सूचना उसने नयनारु पिल्लई और वंधीपुझा थनपुरन को दी गयी। 


वंधीपुझा थनपुरन ने अनुभवी ब्रह्मणों के निर्देशानुसार एक मन्दिर बनाने का निर्णय लिया। एक प्रसिद्ध वास्तुकला के ज्ञाता पेरुंथाचन की योजना के आधार पर मन्दिर का निर्माण कराया गया। भवन निर्माण के बाद वंधीपुझा थनपुरन ने पेरुंथाचन से देवता की मूर्ति का निर्माण करने का अनुरोध किया। उन्होंने एक स्थल की ओर इंगित करते हुए उसकी खुदाई का निर्देश दिया। उस स्थल पर उन्हें देवी पार्वती की प्रतिमा दिखाई दी जिसे शुभ समय पर स्थापित किया गया। किन्तु कुछ वर्षों उपरांत जब पुनः पेरुंथाचन ने मन्दिर का दौरा किया तो उन्होंने मन्दिर के अग्नि में नष्ट होने की भविष्यवाणी की तथा एक पञ्च धातु की मूर्ति देते हुए उसको लिखित दस्तावेज में वर्णित करने का निर्देश दिया। १८वीं शताब्दी में यह घटना सत्य साबित हुई और मन्दिर को पुनः निर्मित किया गया तथा मूर्ति को उन्ही लिखित दस्तवेजो की मदद से नदी से लाया गया। 

तत्कालीन मन्दिर और उसमे उपस्थित मूर्ति आज भी वही पञ्च धातु की मूर्ति है। 

चेंगन्नूर महादेवा मन्दिर की वास्तुकला 

मंदिर का निर्माण पारम्परिक केरल वास्तु शैली में किया गया है, जिसका अवलोकन केरल के सभी छोटे बड़े मन्दिरों में होता है। जिसमे मुख्य मंदिर तक पहुंचने के लिए मन्दिर के टॉवर और एक झंडे के माध्यम से पहुंच सकते है जो की गर्भगृह के अक्षीय है। मन्दिर परिसर में प्रवेश के लिए एक द्विस्तरीय गोपुरम जिसके ऊपरी हिस्से में चल सकने हेतु स्थल है जिसमे खड़े होकर देवता के सम्मान में ढोल बजाया जाता है। इस स्थल को कोट्टुपुरा के नाम से जाना जाता है। प्रथम परिसर में गणपति की छवि दिखती है तथा 

चेंगन्नूर महादेवा मन्दिर

दूसरे परिसर में मन्दिर प्रशासन के कार्यालय के साथ ही साथ नीलग्रीवन व अन्य देवी देवताओं के लिए मंदिरों का निर्माण किया गया हैं। केंद्रीय मन्दिर के गर्भगृह  और उससे जुड़े हुए हॉल जिसे नल्लमबलम कहा जाता है के मध्य एक आयताकार उठी हुई संरचना को नमस्कार मण्डपम कहा जाता है। नमस्कार मण्डपम का गुम्बद एक पिरामिड के आकर का है। नमस्कार मण्डप के बाई ओर देवता के लिए प्रसाद बनाने हेतु एक पाक गृह ( रसोई ), जिसे थेवरापुर कहा जाता है स्थित है। एक प्रकार की वेदी जिसका प्रयोग कर्मकाडों व उत्सव की अवधि में देवताओं को अर्ध्य देने के लिए किया जाता है, बलिथारा के नाम से सम्बोधित की जाती है। कोविल के द्वार पर द्वारपालों की सुन्दर छवि है। कोविल में प्रवेश की अनुमति सिर्फ मुख्य पुजारी जिसे तंत्री और उसके एक सहायक जिसे मेलशांति के नाम से सम्बोधित किया जाता है को ही है। ऐसा आपको केरल के सभी मन्दिरों में देखने को मिलता है। मन्दिर की छत और स्तम्भों पर रामायण और महाभारत की कहानियां देखने को मिल जाती है।  


चेंगन्नूर महादेवा मन्दिर में की जाने वाली पूजा और अनुष्ठान 

चेंगन्नूर महादेवा मन्दिर के द्वार प्रातः ३:५० पर खोल दिए जाते है तथा दिवस की पहली पूजा का आयोजन किया जाता है जिसको रविले पल्ली अनर्थल के नाम से जाना जाता है। इस पूजा का उद्देश्य देवता के जागरण के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। इसके बाद नादथुरक्कल प्रातः ४:३० बजे, जिसका उद्देश्य गर्भगृह को भक्तों की पूजा के योग्य बनाना है। इसके बाद अभिषेकम प्रातः ५:०० बजे से ५:३० बजे तक किया जाता है। जिसके बाद गणपति होम किया जाता है। इसके बाद उषा पूजा जो की सूर्योदय के ३० मिनट बाद लगभग ०५:४५ से ७:०० तक किया जाता है। इसके बाद श्री बाली प्रातः:७:३० बजे दी जाने वाली देवता को सेवा है। प्रातः:८:३० बजे लगभग पंथीरादि नाम की सेवा देवता को दी जाती है। इसके बाद प्रातः ९:३० बजे मृत्युंजय होम और १०:०० बजे नवकम कलश पूजा की जाती है, जिसमे ९ पात्रों में भरे हुए जल से शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है। इसके बाद उच्च पूजा प्रातः ११:०० बजे और प्रातः ११:३० बजे नादा अदकुन्ना समयम नाम की सेवा की जाती है। सायं ५:०० बजे वैकिटटू नाडा थुरकुन्ना देवता को दी जाने वाली सेवा है। सायं सूर्यास्त के लगभग २ घंटे बाद दी जाने वाली सेवा दीपराधना जिसमे सात स्तरों की पिरामिडाकार दीपक से शिव जी की लहराते हुए आरती की जाती है। ७:३० बजे सायं अथाज पूजा और रात्रि ८:३० बजे श्री बाली की सेवा देवता को दी जाती है। विशेष पर्वो पर पूजा के समय में फेर बदल हो सकता है। 


चेंगन्नूर महादेवा मन्दिर में मनाये जाने वाले उत्सव

वार्षिकोत्सवम 

चेंगन्नूर महादेवा मन्दिर में  २८ दिनों तक मनाया जाने वाला उत्सव मन्दिर का वार्षिक उत्सव कहलाता है। इसमें मन्दिर को पारम्परिक रूप से केले और नारियल के पत्तों, फूलों और दीपकों की रोशनी से सजाया जाता है तथा प्रत्येक दिन मन्दिर में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। इन २८ दिनों में मन्दिर में विभिन्न परम्परिक कला, संगीत और नृत्य का आयोजन किया जाता है। अंतिम दिन उत्सव मूर्ति को स्न्नान के लिए मन्दिर से बाहर लाया जाता है। इस उत्सव का हिस्सा बनने के लिए हजारों की संख्या में भक्तगण इन दिनों में मन्दिर में पहुंचते है।


त्रिपुथरटटू 

त्रिपुथरटटू चेंगन्नूर महादेवा मन्दिर में मनाया जाने वाला सबसे मुख्य उत्सव है। यह उत्सव मासिक धर्म से जुड़ा है। इस अवधि में मन्दिर के पट ३ दिवस के लिए बंद रखे जाते है तथा देवी की दूसरे स्थल पर स्थित मूर्ति की पूजा की जाती है। चौथे दिन मूर्ति को नदी के तट पर लाया जाता है तथा स्न्नान जिसे अराट्टू ( पवित्र स्न्नान ) कहते है, का आयोजन किया जाता है। स्न्नान के बाद देवी गज पर सवार होकर अपने धाम पर आती है। जहां भगवान शिव के साथ उनकी उत्सव मूर्ति का जुलुस निकला जाता है जिसमे ३ बार मन्दिर की परिक्रमा की जाती है। तदोपरांत देवादिदेव पूर्व दिशा के द्वार से और आदि भवानी पश्चिम दिशा के द्वार से मन्दिर में प्रवेश करती है। 

महाशिवरात्रि 

महा शिवरात्रि भगवान शिव की आराधना करने की सबसे प्रमुख रात है। मान्यतानुसार इस दिन आराधना  समस्त पापों का नाश होता है तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। विवहित महिलाये अपने परिवार की समृद्धि के लिए तो अविवाहित कन्याएं शिव जैसे जीवनसाथी के लिए इस दिन पूजा अर्चना करती है। शिवरात्रि के दिन बड़ी संख्या में भक्त मन्दिर पहुंचते है। 

थुलासंक्रमा नेय्यटटू 

यह उत्सव मध्य अक्टूबर से मध्य नवंबर के मध्य एक दिन के लिए मनाया जाने वाला उत्सव है। जिसमें शिवलिंग का घी के ३६ पारों ( मलयालम में वर्णित एक प्रकार की माप ) द्वारा अभिषेक किया जाता है। 

चेंगन्नूर महादेवा मन्दिर कैसे पहुंचे?

हवाई मार्ग द्वारा 

कोचीन और त्रिवेंद्रम अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे चेंगन्नूर के सबसे निकटवर्ती हवाई अड्डे हैं। जहा से आप सड़क मार्ग के द्वारा अपने गंतव्य चेंगन्नूर महदेवा मन्दिर पहुंच सकते है। 


सड़क मार्ग द्वारा 

चेंगन्नूर बस स्टैण्ड अलप्पुझा जिले का एक मुख्य बस स्टेशन है, जहाँ से के एस आर टी सी ( केरल राज्य सड़क परिवहन निगम ) की अरनमुला, तिरुवल्ला, पंडालम, पथानामथिट्टाऔर त्रिवेंद्रम के लिए नियमित बस सेवा उपलब्ध है। चेंगन्नूर बस स्टैण्ड से मन्दिर मात्र एक किमी की दूरी पर स्थित है। जहां आप सुगमता से अपना प्रिय संसाधन लेकर मन्दिर पहुंच सकते है। 


रेल मार्ग द्वारा 

चेंगन्नूर रेलवे स्टेशन सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन है। जिसे केरल एक्सप्रेस, हैदराबाद एक्सप्रेस, कन्याकुमारी एक्सप्रेस, चेन्नई मेल, अमृता एक्सप्रेस देश के प्रमुख शहरों से जोड़ती है। 


चेंगन्नूर महादेवा मन्दिर के आसपास दर्शनीय स्थल 

जब आपने चेंगन्नूर महादेवा मन्दिर में आदिदेव और भगवती के दर्शन का मन बना ही लिया है तो उसके आस पास के दर्शनीय मन्दिरों में जाना न भूलें, जो आप की इस यात्रा को हमेशा के लिए ही आप के मन मस्तिक में संजो देगी। 

१. अरनमुला श्री कृष्ण मन्दिर 
२. चक्कुलथुकावु देवी मन्दिर   
३. तिरुवल्ला श्री वल्लभस्वामी मन्दिर 
४. त्रिचित श्री कृष्ण मन्दिर 
५. सस्थामकुलन्गरा मन्दिर 
६. सबरीमाला मन्दिर
७. कुन्नाथुमाला मन्दिर 


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