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मलयालप्पुझा मन्दिर

मलयालप्पुझा मन्दिर भारत के दक्षिणी केरला में स्थित पराशक्ति आदि भगवती भद्रकाली का एक प्राचीन मन्दिर है। जो की मलयालप्पुझा, पठानमथिट्टा शहर से ८ किमी की दूरी पर स्थित एक छोटा सा स्थल है। मान्यतानुसार इस मन्दिर की आयु १००० वर्ष के लगभग मानी जाती है। 


मलयालप्पुझा मन्दिर
मलयालप्पुझा मन्दिर प्रवेश द्वार  
देवी भद्रकाली के मलयालप्पुझा मन्दिर में प्रतिष्ठित रूप को स्थानीय निवासियों के द्वारा मलयालापुझा अम्मा के रूप में बुलाया जाता है। जिनकी ऊंचाई ५.५ फ़ीट है। मन्दिर का निर्माण एक पहाड़ी के ऊपर किया गया है। पौराणिक कथाओं के अनुसार देवी का मुख्य विग्रह उनके उग्र रूप को दर्शाता है क्योंकि यह वो रूप है जब देवी ने राक्षस दारिका का वध किया था। गर्भगृह में देवी की अन्य दो प्रतिमायें भी है जिनमे से एक को अभिषेक व दूसरी को दैनिक अनुष्ठान के लिए प्रयोग किया जाता है। इनके अतिरिक्त मन्दिर के पूर्वी भाग में मन्दिर के उपदेवता ब्रम्ह राक्षस और बहरी भाग में उपदेवता नागराजा के रूप में आदिदेव महादेव का शिवलिंग उपस्थित है। लोगों का मनना है यदि तत्काल वर्षा की आवश्कता हो तो शिवलिंग का कच्चे नारियल के जल से अभिषेक करना चाहिये। 

मलयालप्पुझा मन्दिर से जुडी दंतकथा 

किंवदंतीय के अनुसार, मलयालप्पुझा मन्दिर पठानमथिट्टा के छोटे से समृद्ध गांव एडाथिट्टा में स्थित था। एक बार एक तांत्रिक जो की मलयालपुझा के इस क्षेत्र में निरिक्षण किया तथा अपनी शक्ति से मलयालापुझा अम्मा को स्थानांतरित कर दिया। उस दिन के बाद एडाथिट्टा का पूर्णतः विनाश हो गया। गांव के लोगो ने की ज्ञानी जानो की सहायता ली की पता चल सके की किस प्रकार से और देवी की वापसी हो सकती है क्योंकि दैवीय सत्ता को कभी भी पूर्णतया स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है। १९९२ में गांव के एक व्यक्ति ने रात्रि स्वप्न में देखा की देवी का विग्रह व दैनिक पूजा के पात्र भूमि में दबे हुए है। उसने प्रातः अपना स्वप्न गांव के बुजुर्गओ को बताया तथा उस स्थल पर खुदाई का कार्य प्रारम्भ किया गया। खुदाई से प्राप्त मूर्ति को पुनः विधि विधान से स्थापित किया गया। आज भी देवी उसी स्थल पर मलयालापुझा अम्मा के रूप में स्थित है। 


मलयालप्पुझा मन्दिर
मलयालापुझा अम्मा
एक मुख्य और अनोखी कथा जो इस मन्दिर से जुडी हुई है वो इस प्रकार है - मलयालप्पुझा मन्दिर में प्राचीनकाल में प्रत्येक १२ वर्ष में मूर्ति को बदला जाता था तथा पुराणी मूर्ति के स्थान पर नई मूर्ति की प्रतिष्ठा की जाती थी। एक बार मन्दिर के पदाधिकारियों द्वारा इसी क्रम को दोहराया जा रहा था। परन्तु उपस्थित पुजारी मन्दिर में देवी की प्रतिमा को अपने स्थान से तनिक भी हटा नहीं पा रहे थे। रात्रि में देवी ने उन लोगों में से एक को रात्रि में स्वप्न में दर्शन देकर मूर्ति को न बदलने का आदेश दिया। तब से आज तक देवी की मूर्ति को नहीं बदला गया और देवी अपने उसी स्वरुप में आज भी पूजित है। 


मलयालप्पुझा मन्दिर में की जाने वाली पूजा 

देवी की पूजा के लिए शुक्रवार का दिन सबसे शुभ माना जाता है। अतः इस दिन मलयालप्पुझा मन्दिर में भगवती के श्रद्धालुओ की सबसे ज्यादा भीड़ देखने को मिलती है। चूँकि मलयालप्पुझा मन्दिर में देवी अपने रौद्र रूप में उपस्थित है। अतः माना जाता ही यदि किसी भी प्रकार की बुरी शक्तियों से ग्रसित है, देवी के दर्शन जरूर करे और विशेष पूजा जिसमे लाल रंग के पुष्पो का प्रयोग किया जाता है जिसे रक्षा पुष्पांजलि के नाम से जाना जाता है, अवश्य करना चाहिए। मलयालापुझा अम्मा को लाल रंग के फूल पसन्द होने के कारण देवी का मुख्य प्रसाद पुष्प ही है। इसके अतिरिक्त अम्मा को मंजड़ी के बीज व थोनियारी पायसम भी अर्पित किया जाता है। 


मलयालप्पुझा मन्दिर
मलयालापुझा अम्मा

वे भक्त जिन्हे समृद्धि की चाहत होती है वे देवी को चतुष्टम, एक प्रकार का मीठा भात या चावल का नैवद्य देवी को चढ़ाते है। वो भक्त जिन्हे रोगों से मुक्ति चाहिये होती है वे मलयालप्पुझा मन्दिर में मुर्गी को लाकर देवी को चढ़ा कर उसे मुक्त कर देते है। एक और अनुष्ठान जिसे किसानों के द्वारा किया जाता है मलयालप्पुझा मन्दिर में किया जाने वाला एक महत्त्वपूर्ण अनुष्ठान है जिसे मलयालपुझा थूपू के नाम से जाना जाता है। इसमें वे मन्दिर से लाई गयी किसी भी वस्तु को अपने खेत में लगते है क्योंकि उनका मानना है ऐसा करने से मलयालापुझा अम्मा उनकी फसल की रक्षा करती है। जिन भक्तों की मनोकामना मन्दिर में दर्शन के बाद पूरी होती है वे मलयालापुझा अम्मा को पान, सुपारी और लौंग का बीड़ा और कपूर चढ़ाते है। 


मलयालप्पुझा मन्दिर कैसे पहुँचे ?

सड़क मार्ग द्वारा 

पठानमथिट्टा शहर में चूँकि केरल का मुख्य देवस्थल सबरीमाला में दर्शन करने के लिए भी आये हुए उनके भक्त एक अलग मार्ग को लेते है इसलिए केरल के सभी मुख्य शहर इससे एक सुनियोजित सड़क मार्ग से जुड़े हुए है। अतः के एस आर टी सी ( केरल राज्य सड़क परिवहन निगम )की नियमित सेवा इस मार्ग पर उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त आप अपनी सुगमता के लिए टैक्सी का भी उपयोग कर सकते है। 

 

रेल मार्ग द्वारा 

चेंगन्नूर रेलवे स्टेशन ( ३३ किमी ) से पठानमथिट्टा शहर के लिए सीधी बस सेवा का संचालन किया जाता है। जिसकी सहायता से आप मलयालप्पुझा मन्दिर दर्शन के लिए पहुँच सकते है। 


हवाई मार्ग द्वारा 

सबसे निकटतम हवाई अड्डा तिरुवनंतपुरम ( १०७ किमी ) का है जहाँ से दर्शन के लिए आने वाले तीर्थयात्री सड़क मार्ग से मलयालप्पुझा मन्दिर तक पहुँच सकते है। 


मलयालप्पुझा मन्दिर का महत्त्व 

१. आदि शक्ति भगवती की पूजा उपासना करने से विवाह योग्य लड़कियों को उनका मनोवांछित वर प्राप्त होता है। इस कारण दूर दूर से भक्त जिनमें ऐसी कन्या जिनका विवाह नहीं हो रहा होता है, अपने परिजनों के साथ यहाँ अम्मा के दर्शनार्थ आते है। 


२. मन्दिर के उपदेवता ब्रम्ह राक्षस होने के कारण लोगों का मानना है यदि आप उनकी पूजा करेंगे तो वो आप की काले जादू, भूत प्रेत और पड़ने वाली गलत छाया से रक्षा करेंगे। 


३. मन्दिर के बाहर एक कोन्ना का वृक्ष है, नीचे एक शिवलिंग स्थापित है। कोन्ना का यह वृक्ष पुरे वर्ष भर सुन्दर फूलों से भरा रहता है। सबसे महत्वपूर्ण, कितनी भी भीषण गर्मी हो यदि नारियल के जल से शिवलिंग का अभिषेक किया जाये तो बरसात होती है और गर्मी से राहत प्रदान करती है। 

४. मन्दिर का मुख्य आकर्षण गजराज पटट्म है। जो मन्दिर का शुभ हाथी है और पिछले कई वर्षो से श्री धर्मशास्त्र की मूर्ति को लेकर आते है। 



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