स्वामीनाथ स्वामी मन्दिर, भारत के तमिलनाडु के तंजावुर जिले में कुम्भकोणम से ५ किमी की दूरी पर कावेरी नदी की सहायक नदी के तट पर स्वामीमलाई नामक स्थान पर स्थित हिन्दू देवस्थल है जो देव सेनापति भगवान मुरुगन को समर्पित है। स्वामीनाथ स्वामी मन्दिर छह अरुपादाइवेदुगल के मध्य मुरुगन का चौथा निवास स्थान है। स्वामीनाथ मन्दिर संगमकाल से पूर्व से अस्तित्व में होने के प्रामाणिक साक्ष्य है। साक्ष्यों के अनुसार परांतक चोल प्रथम द्वारा पुर्ननिर्मित कराया गया था। १७४० में हुए एंग्लो-फ्रांसीसी युद्ध जो हैदर अली और अंग्रेजों के मध्य हुआ था, के दौरान स्वामीनाथ स्वामी मन्दिर उसके परिसर को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ था। तत्कालीन कालावधि में स्वामीनाथ स्वामी मन्दिर का रख रखाव तमिलनाडु सरकार के हिन्दू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग द्वारा किया जाता है। स्वामीमलाई में, मुरुगा को "बालामुरुगन" के रूप में भी जाना जाता है।
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भगवान मुरुगन |
स्वामीनाथ स्वामी मन्दिर से जुडी दंतकथा
मंदिर से जुडी कई किंवदंतिया प्रचलित है। जिसमे से प्रमुख किंवदंती के अनुसार, एक बार ब्रह्मा जी, आदिदेव महादेव से मिलने उनके निवास कैलाश पर्वत पर पहुंचे। वहां उनकी भेंट शिव-पार्वती के पुत्र षटमुखी कार्तिकेय जी से हो गयी। वादविवाद की परिस्थिति उत्पन्न होने पर कार्तिकेय जी ने ब्रह्मा जी से पूछा कि वह जीवों की रचना का कार्य किस प्रकार करते है। उत्तर प्राप्त होने पर उन्होंने ब्रह्मा जी से वेदों का पाठ करने को कहा। ब्रह्मा जी द्वारा प्रणव मन्त्र "ॐ" साथ पाठ करना प्रारम्भ किया। उस समय कार्तिकेय जी उन्हें रोक कर उनसे प्रणव मन्त्र का अर्थ समझाने की प्रार्थना की। ब्रह्मा जी को एक बालक से ऐसे प्रश्न की आशा न होने के कारण वो उसका उत्तर न सके। बालक कार्तिकेय ने उनके मस्तक पर मुट्ठी प्रहार कर उन्हें कारागार में बन्द कर दिया। देवों के अनुरोध पर भी कार्तिकेय जी जब ब्रह्मा जी को छोड़ने को तैयार नहीं हुए तो शिव जी ने उन्हें मुक्त करने का वचन देवों को दिया। जिसके उन्होंने बालक कार्तिकेय से अनुरोध किया तो वह शर्त पर सहमत हुए की ब्रह्मा जी को प्रणव मंत्र "ॐ" का अर्थ सीखना होगा। शिव जी ने उन्हें अर्थ समझाने को कहा और श्री कार्तिकेय जी ने शिव जी को "ॐ" का अर्थ बताया। शिव जी ने एक छात्र की और श्री षटमुखी कार्तिकेय जी ने एक शिक्षक की भांति व्यवहार का ध्यान रखा। शिव जी ने इस पर उन्हें "स्वामीनाथ स्वामी" की उपाधि से सम्मनित जिसका अर्थ है "शिव के शिक्षक" है। इसी कारण मुरुगन (षटमुखी कार्तिकेय जी) मन्दिर पहाड़ी के ऊपर व शिव जी का मंदिर पहाड़ी के नीचे बना हुआ है।
स्वामीनाथ स्वामी मन्दिर की वास्तुकला
स्वामीनाथ स्वामी मन्दिर के अनुष्ठान
मन्दिर के पुजारी पर्वोत्सव की अवधि और दैनिक आधार पर अनुष्ठान करते है। शैव प्रथा का पालन करते हुए भगवान शिव को समर्पित पुजारी ब्राह्मण शैव सम्प्रदाय से सम्बन्धित होते है। मन्दिर प्रातः ५:०० बजे से अपराह्न १२:०० बजे तक और सायं ४:०० बजे से रात्रि ९:०० बजे तक खुला रहता है। मन्दिर के पारम्परिक अनुष्ठान दिन में ६ बार किये जाते है, जो इस प्रकार है -
- प्रातः ५:३० बजे - उषाथकलम
- प्रातः ८:०० बजे - कला शान्ति
- प्रातः १०:०० बजे - उचिकलम
- सायं ५:०० बजे - सयारक्षाई
- सायं ७:०० बजे - इरान्दमकलम
- रात्रि ८:०० बजे - अर्ध जमाम
प्रत्येक अनुष्ठान के ४ चरण होते है - अभिषेक (स्नान), अलंगरम (श्रृंगार), निवेथानम (नैवेद्य अर्पण) और दीपा अरदानई (आरती)। मन्दिर में अन्य शिव मन्दिरों की तरह ही सोमवार और शुक्रवार को साप्ताहिक अनुष्ठान, प्रदोष जैसे पाक्षिक व मासिक पर्व जैसे अमावसई, किरुथिगई, पूर्णनामि और सथुरथी आदि उत्सव मनायें जाते है। मन्दिर का मुख्य उत्सव वैकासी विसगम जो तमिल माह वैकासी (मध्य मई से मध्य जून) में मनाया जाता है।
स्वामीनाथ स्वामी मन्दिर कैसे पहुंचे ?
स्वामीमलाई पहुंचने के लिए आपकों सबसे निकटम रेलवे स्टेशन कुम्भकोणम है, जहां से स्वामीनाथ स्वामी मन्दिर ५ किमी की दूरी पर कुंभकोणम तिरुवय्यारू राजमार्ग पर स्थित है। आप कुम्भकोणम रेलवे स्टेशन से किराये पर कैब, ऑटो, सरकारी या निजी बस जो की सुगमता से उपलब्ध है, की सहायता से स्वामीनाथ स्वामी मन्दिर पहुँच सकते है। सबसे निकट हवाई अड्डा तिरुचिरापल्ली (९१किमी) की दूरी पर है। जहां से कुम्भकोणम तक आप रेलवे अथवा सड़क मार्ग से पहुंच सकते है।
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