प्रकाश और ऊर्जा के देवता भगवान सूर्य को समर्पित विश्व के मन्दिरों में से एक सूर्यनार कोइल मन्दिर, भारत के तमिलनाडु के तंजावुर जिले के गांव सूर्यनार कोविल में स्थित प्राचीन मन्दिर है। सूर्यनार कोइल मन्दिर के पीठासीन देवता भगवान सूर्य नारायण मन्दिर में उपस्थित अन्य ग्रहों की अध्यक्षता अपनी दोनों पत्नियों उषा और छाया के साथ करते है। मन्दिर का उल्लेख मुथुस्वामी दीक्षितार के सौराष्ट्र राग में "सूर्यमूर्ति" से शुरू होने वाले एक गीतों में मिलता है।
सूर्यनार कोइल मन्दिर में पायें गए एक शिलालेख से ज्ञात होता है की ११वीं शताब्दी के कुलोत्तुंगा चोलदेव के शासनकाल के दौरान निर्माण कार्य किया गया था जिसका पुर्न निर्माण विजयनगर काल में किया गया। अभिलेखों से पता चलता है की वर्तमान संरचना ग्रेनाइट दीवारों का निर्माण श्रीविजयम के राजा श्रीविजय राजा द्वारा कराया गया था। जो इंडोनेशिया के पास है। आधुनिक समय में मन्दिर का रख रखाव और प्रशासन तमिलनाडु सरकार के हिन्दू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग द्वारा किया जाता है।
सूर्यनार कोइल मन्दिर से जुडी दंतकथा
हिन्दू पौराणिक कथा के अनुसार, ऋृषि कलावा गम्भीर बीमारियों के साथ साथ कुष्ठ रोग से ग्रसित हो गए। ऋृषि कलावा ने नवग्रह देवताओं से अपने को रोगमुक्त काया प्रदान करने की प्रार्थना की। उनके अनुनय विनय से देवताओं ने प्रसन्न होकर उन्हें उनका अभिष्ट वरदान प्रदान कर दिया। जिससे जग रचियता ब्रह्मा जी ने क्रोधित होकर नवग्रह देवताओं को कुष्ठ रोग से पीड़ित होने व देवलोक से निष्काषित कर पृथ्वी पर वेल्लुरुक्कु वन जो जंगली श्वेत फूलों से आच्छादित रहता था पर श्राप देकर भेज दिया। नवग्रहों ने श्राप से मुक्त होने के लिए वन में ही भगवान शिव की तपस्या की। शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन देकर श्राप से मुक्त किया और वचन लिया की, यह स्थान उनका है और इस स्थान पर आकर उनकी पूजा करने वालें भक्त गणों पर अपनी कृपा करेंगे। यह एक मात्र ऐसा मन्दिर जहां प्रत्येक ग्रह देवता का अपना अलग मंदिर है।
सूर्यनार कोइल मन्दिर की वास्तुकला
मन्दिर का निर्माण एक आयताकार योजना के अंतर्गत किया गया है। संरक्षण के लिए ग्रेनाइट की दीवार जिसके परिसर में प्रवेश के लिए एक पांच स्तरीय आकर्षक राज गोपुरम है। एक ऊँचे स्थल पर केंद्रीय मन्दिर भगवान सूर्य का है, जिसके सामने अक्षीय रेखा पर अन्य आठ ग्रहों गुरु (बृहस्पति), बुद्ध, शनि, सुकरान (शुक्र), सोमा(चन्द्रमा), अंगारागन(मंगल), राहु और केतु के मन्दिर व्यवस्थित किये गये है। गुरु को भगवान शिव की पूजा करते हुए दिखाया गया है। केन्द्रीय मन्दिर हॉल की ओर जाने वाले हॉल की दीवारों पर विश्वनाथर, विशालाक्षी, नटराज, शिवकामी, विनयगर और मुरुगन की अद्भुत छवि चित्रांकित की गयी हैं।सूर्यनार कोइल मन्दिर के पर्वोत्सव
मन्दिर के पुजारी पर्वोत्सव की अवधि और दैनिक आधार पर अनुष्ठान करते है। सूर्यनार कोइल मन्दिर प्रातः ६:०० बजे से अपराह्न १२ ३० बजे तक और सायं ४:०० बजे से रात्रि ८:०० बजे तक खुला रहता है। मन्दिर के पारम्परिक अनुष्ठान दिन में ६ बार किये जाते है, जो इस प्रकार है -
- प्रातः ५:३० बजे - उषाथकलम
- प्रातः ८:०० बजे - कला शान्ति
- प्रातः १०:०० बजे - उचिकलम
- सायं ६:०० बजे - सयारक्षाई
- सायं ८:०० बजे - इरान्दमकलम
- रात्रि १० :०० बजे - अर्ध जमाम
प्रत्येक अनुष्ठान के ४ चरण होते है - अभिषेक (स्नान), अलंगरम (श्रृंगार), निवेथानम (नैवेद्य अर्पण) और दीपा अरदानई (आरती)। मन्दिर में अन्य शैव मन्दिरों की तरह ही सोमवार और शुक्रवार को साप्ताहिक अनुष्ठान, प्रदोष जैसे पाक्षिक व मासिक पर्व जैसे अमावसई, किरुथिगई, पूर्णनामि और सथुरथी आदि उत्सव मनायें जाते है।
सूर्यनार कोइल मन्दिर पूजा के लाभ
माना जाता है की ग्रह एक पूर्व निर्धारित अवधि के दौरान अपनी स्थिति को बदलते हैं जिससे किसी के जन्म के समय के आधार पर गणना की गयी, कुण्डली पर प्रभाव पड़ता है और उसके जीवन पर इसका प्रभावित द्रष्टिगोचर होता हैं। हिन्दू रीति के अनुसार नवग्रहों को किसी भी व्यक्ति के लिए अच्छे और बुरे दोनों प्रभाव को प्रधान करने वाला माना जाता है तथा बुरे प्रभाव को प्रार्थना से कम किया जाता है। क्यूँकि नवग्रहों द्वारा चक्रीय रूप में वितरित ऊर्जा को उपचारात्मक उपायों के आधार पर प्रसारित किया जा सकता है। जिसके फलस्वरूप यहाँ उपासना से उनके निम्न प्रभावों से मुक्त हुआ जा सकता है -
- कालथिरा दोष के अशुभ प्रभाव
- विवाह में आ रही बाधाओं को
- पुत्र दोष
- अच्छे करियर और शिक्षा के लिए
- सूर्य दास में
- शनि की साढ़े साती को सूर्य प्रदोषम के समय सूर्य देव की पूजा करने से
सूर्यनार कोइल मन्दिर में देवों का दर्शन क्रम
मन्दिर परिसर में प्रत्येक ग्रह का स्वयं का मन्दिर है अतः उनकी पूजा व् दर्शन का क्रम भी उसी प्रकार निर्धारित किया गया है जो इस प्रकार है -
- गणपति
- विश्वानंद विशालाक्षी
- मुख्य देवता सूर्य
- गुरु
- शनि
- भुदानी
- अंगारकण
- चन्द्रन
- केतु
- सुकरान
- राहु
- चण्डिकेश्वरन
सूर्यनार कोइल मन्दिर कैसे पहुँचे?
मन्दिर जाने का आदर्श समय तमिल माह के थाई (मध्य जनवरी से मध्य फरवरी) का माह जब १० दिनों तक रथ सप्तमी का भव्य उत्सव मनाया जाता है। सूर्यनार कोइल मन्दिर, पहुंचने के लिए आपकों सबसे निकटम रेलवे स्टेशन कुम्भकोणम है, जहां से सूर्यनार कोइल कुम्भकोणम-मयिलादुथुराई मार्ग पर स्थित है। आप कुम्भकोणम रेलवे स्टेशन से किराये पर कैब, ऑटो, सरकारी या निजी बस जो की सुगमता से उपलब्ध है, की सहायता से सूर्यनार कोइल मन्दिर पहुँच सकते है। सबसे निकट हवाई अड्डा तिरुचिरापल्ली (९१किमी) की दूरी पर है। जहां से कुम्भकोणम तक आप रेलवे अथवा सड़क मार्ग से पहुंच सकते है।
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