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भगवती के वात्सलयपूर्ण नेत्रों को समर्पित कामाक्षी मन्दिर


अयोध्या मथुरा माया काशी कांची अवंतिका। 
  पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिकाः॥

भारत के चेन्नई के निकटतम स्थित प्राचीन ऐतिहासिक कांचीपुरम शहर की आत्मा कामाक्षी मन्दिर, जो भगवती ललिता महात्रिपुरा सुन्दरी कामाक्षी को समर्पित एक हिन्दू मन्दिर है। कामाक्षी मन्दिर शहर के केन्द्र में स्थित है जिसके चारों ओर सुन्दर कांची साड़ियों के लिए प्रसिद्ध व्यापारिक नगर की स्थापना की गयी है। स्थानीय निवासी भगवती को कामाक्षी अम्मन और उनके प्रसिद्ध इस धाम को कामाक्षी अम्मन मन्दिर के नाम से सम्बोधित करते हैं।कामाक्षी मन्दिर के एक तरफ शिव या बड़ी कांची और दूसरी तरफ विष्णु या छोटी कांची उपस्थित है। 


भगवती के वात्सलयपूर्ण नेत्रों को समर्पित कामाक्षी मन्दिर
भगवती कामाक्षी
कामाक्षी तीन अक्षरों - का, मा और अक्ष के मेल से बना एक अर्थ पूर्ण शब्द है। का का अर्थ है - सरस्वती, मा का अर्थ है लक्ष्मी और अक्ष का अर्थ है आँखे या नेत्र और जब यह तीनों पूर्ण अक्षर मिल जाते है तो उस शब्द का अर्थ होता है - वह देवी जिनके नेत्र सरस्वती और लक्ष्मी हैं। देश के ५१ शक्ति पीठों में से एक कांचीपुरम का कामाक्षी मन्दिर एक महत्वपूर्ण शक्ति पीठ है। यहीं पर देवी सती की अस्थियां गिरी थी। ऐसा माना जाता है कि भगवती ने असुर भण्डासुर को मरने के लिए जन्म लेने के बाद कन्या स्वरुप धारण कर मन्दिर में बैठ गई। लोकमान्यताओं के अनुसार देवी यहाँ देवी स्थूला (ध्यान योग), सूक्ष्मा ( मन्त्र और यंत्रात्मक ) और शून्य (करण) तीनों ही स्वरूपों में होने के साथ ही साथ स्वयंभू है। 


कामाक्षी मन्दिर के मुख्य देवता भगवती कामाक्षी की छवि पद्मासन में विराजमान है। पद्मासन एक ऐसी योग मुद्रा है, जो शांति और समृद्धि का प्रतीक मानी जाती है। देवी ने अपनी निचली दो भुजाओं में एक गन्ना और पुष्पों का गुच्छा और ऊपरी दो भुजाओं में पाश और अंकुश को धारण करती है। पुष्पों का गुच्छे के पास एक सुक भी बैठा हुआ है। यूँ तो पूरा शहर ही मंदिरों से भरा हुआ है परन्तु भगवती कामाक्षी के कामाक्षी मन्दिर के अतिरिक्त पूरे शहर में कोई भी अन्य शक्ति मन्दिर नहीं है, जो एक पारम्परिक शहर, जिसमे भगवान विष्णु और शिव के सैकड़ों पारम्परिक मन्दिर है को कुछ असमानता प्रधान करता है। कामाक्षी मन्दिर में होने वाली प्रत्येक पूजा व रस्मों का शुभारम्भ गो पूजा व गज पूजा के साथ प्रारम्भ होता है। केन्द्रीय गर्भगृह के सामने दाई ओर के मण्डपम देवी के अन्य रूप अरूप लक्ष्मी और स्वरुप लक्ष्मी के दर्शन किये जा सकते है। 

दंतकथा 

पौराणिक दंतकथाओं के अनुसार, जिस प्रकार मीनाक्षी अम्मन, जो मदुरै और विशालाक्षी देवी जो वाराणसी में स्थापित है, के अनुरूप ही कामाक्षी अम्मन को पृथ्वी पर शक्ति की आधारभूता पराशक्ति माना जाता है। त्रिपुरा रहस्य, बहरुचा उपनिषद और ब्रह्माण्ड पुराण जैसे तांत्रिक ग्रंथों में चर्चा की गयी है जिसमे वर्णन किया गया है की किन किन रूपों में ललिता देवी कांची के कामकोटि पीठ में निवास करती है। श्री ललिता पराशक्ति निम्न रूपों में कामकोटि पीठ की अध्यक्षता करती है -


श्री पराशक्ति कामाक्षी

कामाक्षी मन्दिर की अध्यक्षा और मूल देवी कामाक्षी अम्मन, मन्दिर के गर्भगृह के केन्द्र जिसे गायत्री मण्डपम कहा जाता है, में स्थित है। कामाक्षी रहस्य के अनुसार मण्डप की चारों दीवारों का प्रतिनिधित्व चारों वेदों और २४ मण्डप स्तम्भ का प्रतिनिधित्व गायत्री के पवित्र सूत्र के २४ अक्षरों और आकाशीय द्वारा किया गया है। श्री विद्या परमेश्वरी जो प्राकट्य गायत्री को रहस्य गायत्री बनती है। आदि पराशक्ति जगदम्बा का विग्रह योग मुद्रा में जिसका मुख दक्षिण पूर्व दिशा में है, स्थित है। 


श्री तपस कामाक्षी 

परमेश्वरन से विवाह करने के लिए, भगवती कामाक्षी ने पांच पवित्र अग्नि और सुई के किनारे पर एक पैर पर खड़े होकर घोर तपस्या की थी। जिसके परिणाम स्वरुप फाल्गुनी उथीराम के दिन उसने परमेश्वरन से विवाह किया, इसे फाल्गुनी उथिरा डिवाइन वेडिंग कहते है। इसलिए इस दिन यहाँ भक्त अपना उपयुक्त जीवन साथी पाने के लिए प्रार्थना करते है। इसे विग्रह को मूलदेवी के दाईं ओर और बिल्व द्वार के निकट देखा जा सकता है। 


श्री अंजना कामाक्षी 

विग्रह को मूलदेवी के बाईं ओर और उत्तर की और श्री सौभाग्य गणेश के सामने देखी जा सकने वाली देवी को अरूप के नाम से भी जाना जाता है। इन्हे कामकालक्षरा के रूप में भी जाना जाता है जिसका वर्णन राम बीज में भी किया गया है। देवी के इस रूप को कुमकुम का प्रसाद अर्पित किया जाता है, क्योंकि प्राचीन मान्यतानुसार प्रभु श्री राम ने यहाँ पर देवी की उपासना कर अपना खोया हुआ तेज प्राप्त किया था।  


श्री बंगारू कामाक्षी 

देवी जिन्हे स्वर्ण कामाक्षी के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है, देवी श्री विद्या परमेश्वरी ने अपनी तीसरे नेत्र से एकम्बिका नामक एकमरानाथ की शक्ति के रूप में सेवा करने के लिए धारण किया था। मुगल आक्रमणकारियों के आक्रमण के दौरान देवी कामाक्षी की स्वर्ण मूर्ति को उनसे बचाने के लिए उसे उदय्यार पलायम में स्थानान्तरित कर दिया गया था। वही जो अब तंजौर में है। अष्ट भुजा सरस्वती जिन्हे मंत्रीनी, मातंगी और राजा श्यामला भी कहा जाता है। जो अपने भक्तों अर्थात छात्रों को उत्कृष्ट शिक्षा का आशीर्वाद प्रदान करती है। मूल विग्रह के पास कांची मठ के महा स्वामी ने बंगारू कामाक्षी की पादुका को स्थापित किया है जिनकी प्रतिदिन देवी के साथ ही पूजा अर्चना की जाता है। 


श्री उत्सव कामाक्षी 

उत्सव कामाक्षी का मन्दिर, जो मूर्ति जुलूस के दौरान निकली जाती है। मूर्ति के दोनों ओर शारदा और राम की मूर्तियाँ है। भण्डासुर के संहार के लिए चिदाग्नि से प्रकट हुई  श्री ललिताम्बिका को ब्रह्मा द्वारा विशेष नाम प्रदान किया गया।

भैरवर 

मन्दिर के पास बाहरी परिसर में भैरवर मन्दिर है। जैसा की पुराणों में वर्णित है भैरव देवी के सभी शक्तिपीठों के रक्षक देव है, वैसा ही देवी के इस कामाक्षी मन्दिर के सन्दर्भ में भी प्रचलित है। प्रतिदिन रात्रि दीपा अरदानई(आरती) के बाद जब मन्दिर के पट बंद किये जाते है।  तब भगवान श्री भैरव की आरती की जाती है और उनसे मन्दिर की चाभी पुजारी को देने की अनुमति ली जाती है।  बिना उनकी आज्ञा के पुजारी चाभी को नहीं ले सकते है। यह प्रथा वर्षों से चली आ रही है। 

 

कामाक्षी मन्दिर की वास्तुशैली

भगवती के वात्सलयपूर्ण नेत्रों को समर्पित कामाक्षी मन्दिर
मन्दिर ५ एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है। मन्दिर का निर्माण सम्भवतः पल्लव शासकों द्वारा कराया गया था, जिनकी राजधानी श्री कांचीपुरम थी। गर्भगृह में विराजित विग्रह के के साथ त्रिदेवों की भी मूर्ति स्थापित है। मुख्य गर्भगृह के ऊपर सोने का शिखर है। मन्दिर के जलकुण्ड पंचगंगा  के पास से आप इसकी एक अनुपम झलक को देख सकते है, सबसे अच्छा दृश्य मन्दिर के अंदर से  मिलता है जब आप भव्यता को निकट से देखते है। मुख्य गर्भगृह के पीछे शीशे की छत है और यहाँ से मंदिर के इस सुनहरे शिखर का बेहतरीन नजारा देखने को मिलता है। मुख्य मन्दिर के चारों और कई बड़े और छोटे मण्डप है। इन खुले मण्डपों में नक्काशीदार पत्थर के खम्भों में कांचीपुरम के सामाजिक जीवन की कल्पना कर सकते है। विशाल ऊँची दीवारों और चार गोपुरम के साथ मंदिर में कुल ८ छोटे बड़े मण्डप है। 

भगवती के वात्सलयपूर्ण नेत्रों को समर्पित कामाक्षी मन्दिर
मूर्ति के सामने योनि के आकार की नक्काशी है, जिसके अंदर श्री चक्र है।  यहाँ श्री चक्र की उपासना की जाती है। सभी शास्त्रों के अनुसार, आदि शक्ति श्री चक्र के शीर्ष बिंदु पर विराजमान है। जिसके चारो ओर ८ वाग्देवी (महा सरस्वती) उपस्थित है। श्री चक्र की वास्तविक छवि जिसे पत्थर पर उकेर कर बनाया गया है, को देख पाना कठिन है क्योंकि यह हमेशा ताजे गुलाबी रंग के कमल पुष्पों से आच्छादित रहता है। एक प्राचीन स्थानीय किंवदंती के अनुसार, देवी का स्वरुप उग्र था और संत आदि शंकराचार्य ने उनकी ऊर्जा को शांत करने के लिए उनके सामने एक चक्र रखा जिससे उनका स्वरुप शान्त और सौम्य हो गया। मुख्य गर्भ गृह की ओर जाने वाले द्वार को बिल्व द्वार कहते है। जब देवी को उत्सवों के दौरान इस द्वार से बाहर जुलूस के लिए लाया जाता है तभी उनकी तीव्र अभिव्यक्ति को पुनः अनुभव किया जा सकता है।


कामाक्षी मन्दिर के पर्वोत्सव

तमिल हिन्दू पंचांग के अनुसार मासी माह (फरवरी से मार्च तक) भगवान शिव और पराशक्ति आदि भगवती देवी ललिता की पूजा के लिए शुभ माना जाता है। वर्ष के इस बिंदु पर कामाक्षी अम्मन मन्दिर का वार्षिक उत्सव आयोजित किया जाता है। विशेष रूप से इस महीने के सातवें दिन, देवी कामाक्षी को एक चांदी के रथ  पर आरुण कर के गर्भगृह से बाहर जुलुस के लिए निकला जाता है। मन्दिर के अन्य मुख्य पर्वोत्सव नवरात्रि, रथ यात्रा, शिव जयन्ती, आदि और अप्पासी पूरम भी हर्षोउल्लाष के साथ मनायें जाते है। 


कामाक्षी मन्दिर में दर्शन करने का सबसे उपयुक्त दिन 

कामाक्षी मन्दिर में प्रतिदिन ४ कर्मकाण्डीय पूजा अर्चना की जाती है, रविवार का दिन मन्दिर में दर्शन करने का सबसे उत्तम दिवस है क्योंकि इस दिन देवी को निजा स्वरूपम अर्थात कम से कम गहनों के साथ अपने मूल विशेष स्वरुप में, के रूप में देखा जा सकता है। इस दिन देवी को उनका प्रिय प्रसाद अभिषेकम का नैवद्य अर्पित किया जाता है। अन्य दिनों में भीड़ और लम्बी कतारों से बचने के लिए मन्दिर जाने का सबसे उपयुक्त समय प्रातः ६ बजे के आसपास का है। मन्दिर में आम तौर पर त्योहारों, मंगलवार, शुक्रवार और सप्ताहांत के दौरान भारी भीड़ होती है, जिन्हे पूजा के लिए उपयुक्त समय माना जाता है। हालाँकि जगह का प्रबंधन सुनियोजित है। फिर भी इन विशेष दिनों के दौरान लगभग २०-३० मिनट की प्रतीक्षा अवधि सामान्य है। 


कामाक्षी मन्दिर कैसे पहुँचे ?

कांचीपुरम तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई जो की वायु, रेल और सड़क मार्ग के द्वारा देश के प्रमुख राज्यों व शहरों से एक सुनियोजित तंत्र से जुडी हुई है, से ७५ किमी की दूरी पर स्थित है। चेन्नई हवाई अड्डे व रेलवे स्टेशन से आप टैक्सी अथवा सरकारी व निजी बस सेवा का आनन्द लेते हुए कामाक्षी मन्दिर में पराशक्ति भगवती कामाक्षी अम्मन के दर्शन करने के लिए पहुँच सकते है। 



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