दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु के तंजावुर जिले के एक गांव थिरुबुवनम में मयिलादुथुराई-कुम्भकोणम मार्ग पर स्थित कम्पाहेश्वरर मन्दिर भगवान आदिदेव महादेव को समर्पित एक हिन्दू मन्दिर है। शिव जी का यह कम्पाहेश्वरर मन्दिर जैसा की नाम से ही ज्ञात होता है, तीन शब्दों के मिलने से बना है - कम्पा-हर-ईश्वर अर्थात वो ईश्वर जो कम्पन अर्थात संकट का हरण कर लेते है। प्राचीन स्थानीय दंत कथा के अनुसार एक राजा जो ब्रह्म हत्या के पाप से ग्रसित था के संकटों का नष्ट ऐसी स्थान पर शिव जी के द्वारा किया गया था। तभी से मन्दिर में उनके इसी रूप की पूजा अर्चना की जाती है। कम्पाहेश्वरर मन्दिर के गर्भगृह में भगवान कम्पाहेश्वर का प्रतिरूप उनका शिवलिंग एक ऊँचे चबूतरे पर स्थित है। कम्पाहेश्वरर मन्दिर परिसर में भगवान सर्वेश्वर के लिए एक स्वतन्त्र मन्दिर है। पौराणिक दंत कथाओं के अनुसार असुर सम्राट हिरण्यकश्यप को अपने धाम वैकुण्ठ भेजने के बाद भी भगवान नरसिंह का क्रोध शांत नहीं हुआ तो भगवान शिव ने उन्हें रोकने के लिए सर्वेश्वर का रूप जो की आधा सिंह और आधा पक्षी होने के साथ ही साथ आठ पैरों से युक्त था, ने इसी स्थान पर धारण किया था।
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भगवान सर्वेश्वर |
कम्पाहेश्वरर मन्दिर का इतिहास
कम्पाहेश्वरर मन्दिर की दक्षिण दीवार पर पायें गए शिलालेखों से ज्ञात होता है कि मन्दिर का निर्माण चोल राजा कुलोथुंगा चोल तृतीय के समय ११७६ ईस्वी पूर्व कराया गया था। मन्दिर में उपस्थित शिलालेख बहरी गोपुरम के समान है। जो बताते है की मन्दिर का निर्माण कार्य राजा कुलोथुंगा चोल तृतीय के शासनकाल में प्रारम्भ किया गया था तथा राजा कुलोथुंगा चोलदेव द्वारा पूरा किया गया था। कम्पाहेश्वरर मन्दिर को तंजावुर में बृहदीश्वर मन्दिर, गंगईकोंडा चोलपुरम मन्दिर और ऐरावतेश्वर मन्दिर की ही पंक्ति में माना जाता है। मन्दिर तमिल सैवते नयनार अप्पार द्वारा गाये गए वैप्पू स्थलम मन्दिरों में से एक है।
कम्पाहेश्वरर मन्दिर की वास्तुशैली
मन्दिर द्रविण वास्तुशैली का अनुसरण करता है। मन्दिर को जो अन्य द्रविण मन्दिरों से भिन्न बनाता है वो उसका विमान है जो अन्य मन्दिरों से ऊँचा (ऊंचाई लगभग १२० फीट) है। ऐरावतेश्वर मन्दिर की ही भांति इस मंदिर की विशिष्ट विशेषताएं इसके विमान (मुख्य मन्दिर प्रांगण) है। गर्भगृह के उप्पर की संरचना, गेटवे टावर (प्रवेश द्वार ) से ऊँची है जो द्रविण काल के निर्मित मन्दिरों की मुख्य विशेषताओं में से एक है। विमान के चारो ओर वृत्ताकार शाफ्ट वाले दो गोलाकार स्तम्भ इसकी प्राचीनता को इंगित करते है।अन्य मन्दिरों की ही भांति मन्दिर में दो गोपुरम, आंतरिक गर्भगृह, अर्थ मण्डप, मुख मण्डप और महा मण्डप शामिल है।
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परिसर में भगवान सर्वेश्वर के लिए एक स्वतन्त्र मन्दिर है और मन्दिर के भीतर उन्ही की एक धातु की मूर्ति है, जिसमे उत्कृष्ट कलात्मक कार्य किया गया है। यली एक शेर के चेहरे वाला पौराणिक प्राणी है। कम्पाहेश्वरर मन्दिर में चोल कला में इसका सबसे पहला प्रतिनिधित्व है।
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कम्पाहेश्वरर मन्दिर कैसे पहुँचे?
मन्दिर का मुख्य उत्सव पंगुनी ब्रम्होत्सव है जो १८ दिनों तक मध्य मार्च से मध्य अप्रैल में आयोजित होता है। उत्सव के दौरान मन्दिर को दीयों और रोशनी से सजाया जाता है। अतः इस समय की गयी यात्रा एक यादगार अनुभव को देने वाली होगी। कम्पाहेश्वरर मन्दिर प्रातः ६:०० बजे से अपराह्न ११:०० बजे तक और सायं ५:०० बजे से रात्रि ८:०० बजे तक दर्शन के लिए खुला रहता है।
कम्पाहेश्वरर मन्दिर, थिरुबुवनम पहुंचने के लिए आपकों सबसे निकटम रेलवे स्टेशन कुम्भकोणम है, जहां से कम्पाहेश्वरर मन्दिर 9 किमी की दूरी पर कुम्भकोणम-मयिलादुथुराई मार्ग पर स्थित है। आप कुम्भकोणम रेलवे स्टेशन से किराये पर कैब, ऑटो, सरकारी या निजी बस जो की सुगमता से उपलब्ध है, की सहायता से कम्पाहेश्वरर मन्दिर पहुँच सकते है। सबसे निकट हवाई अड्डा तिरुचिरापल्ली (९१किमी) की दूरी पर है। जहां से कुम्भकोणम तक आप रेलवे अथवा सड़क मार्ग से पहुंच सकते है।
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