दक्षिण भारत के तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में कावेरी और कोलिदाम नदी से घिरे बड़े से द्वीप पर स्थित, भगवान विष्णु के मन को अपनी ओर आकृष्ट करने वाले रूप श्री रंगनाथ को समर्पित, रंगनाथस्वामी मन्दिर एक हिन्दू तीर्थ है। जो की पौराणिक कथाओं और इतिहास में उल्लेखित दक्षिण भारत का एक समृद्ध व सबसे प्रसिद्ध वैष्णव मन्दिर है।
रंगनाथस्वामी मन्दिर की वास्तुशैली
सबसे महत्वपूर्ण बात है कि, यह मन्दिर नहीं अपितु एक मन्दिर नगर है, जो अपने सप्त प्रकरम के गठन में अद्वितीय है, एक केन्द्रित बस्ती पैटर्न जो टेम्पल-टाउन टोपोलॉजी को ध्यान में रखकर बनाया गया है, जिसमे सात संकेन्द्रित आयताकार प्राकरम का गठन होता है। गर्भगृह के चारों ओर चलने वाली मोटी और विशाल प्राचीर देवता विराजमान है। परिसर के भीतरी पांच घेरे मन्दिर का निर्माण करते है, बाहरी दो प्राकरम बस्ती के रूप में कार्य करता है। मन्दिर की कुल दीवार ३२५९२ फीट ( लगभग ९,९३४ मीटर या छः मील से अधिक ) लम्बी है। टेम्पल-टाउन टोपोलॉजी की इस संरचना में १७ प्रमुख गोपुरम और ३९ मण्डप, ५० मन्दिर, ९ पवित्र जलकुंड, अयिरम काल मंडपम ( १००० स्तम्भ वाला एक बड़ा कक्ष ) और छोटे छोटे जल निकाय सम्मिलित है। बाहरी दो प्राकरम आवासीय और बाजार है, जिनमें दुकानें और फूलों की दुकानें है। पांच आंतरिक प्रांगणों में विष्णु और उनके विविध अवतार जैसे - राम, कृष्ण और देवी लक्ष्मी और वैष्णववाद के कई संतो को समर्पित है।
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२१ गोपुरम, जिनमें से १३ स्तरीय विशाल राजगोपुरम ( मुख्य प्रवेश द्वार का तीर्थ ) एशिया का सबसे ऊँचा मंदिर टावर है। १९८७ में इस राजगोपुरम का निर्माण अहोभिला मठ जो की एक ऐतिहासिक वैष्णव मठ है, के द्वारा कराया गया था। यह गोपुरम टावर मीलो से ही अपने आसपास के परिदृश्य पर हावी होता है। शेष २० गोपुरम जिनक निर्माण १२वी से १७ शताब्दी के प्रारम्भ के मध्य निर्मित किये गए। चौथे प्राकरम के पूर्व की ओर वेल्लई गोपुर ( श्वेत मीनार ) में कड़ी पिरामिडनुमा संरचना है जो लगभग १४४ फीट ऊँची है। विशाल राजगोपुरम का निर्माण पूरा होने में ८ वर्ष की लम्बी अवधि लगी। टावर गोपुरम के ऊपरी स्तर पर १३ चमकदार ताम्बे के कलासम जिसमे प्रत्येक का वजन १३५ किलो तथा ऊंचाई १० फीट और १.५ मीटर मीटर व्यास है।
हजार स्तम्भ वाला अयिरम काल मंडपम जिसका निर्माण विजयनगर शासन काल के दौरान हुआ था। इसमें एक चौड़ा केन्द्रीय गलियारा है। जिसमे सात गलियारे है और चौकोर पैटर्न के स्तम्भ है।
शेषराय मण्डपम नायक शासनकाल के दौरान निर्मित एक जटिल नक्काशीदार संरचनाओं वाला मण्डप ( हॉल ) है। जिसके उत्तरी भाग में ४० छलांग लगते अश्व है जिनकी पीठ पर सवार है।
इसके अतिरिक्त भगवान विष्णु के वाहन के नाम पर रखा गया गरुण मण्डप जो की तीसरे प्राकरम प्रांगण के दक्षिण दिशा में है। बीच में एक गरुण की आकृति है।
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किलि मण्डपम अंतरतम प्रकारम प्रांगण के अन्दर पाया जाता है। यह रंगनाथ गर्भगृह के बगल में है। जिस पर चलते हुए हाथी के बालुस्ट्रेेडस सीढ़ियाँ चढ़ते है। यह १७वी शताब्दी के हिन्दू शासको के द्वारा निर्मित कराया गया था। मण्डप और संरचनात्मक तत्वों को जानवरों के साथ उकेरा गया है और इसके केन्द्र में चार नक्काशीदार स्तम्भों के साथ एक उठा हुआ चौकोर मंच है। जिसके शाफ्ट लहरदार डंठल से अलंकृत है।
रंग विलास मण्डपम तीर्थयात्री समूहों और परिवारों के लिए एक साथ बैठने और विश्राम करने के लिए स्तम्भो के मध्य एक बड़े कक्ष का एक मण्डप है। जिसकी दीवारों पर पौराणिक कथायें व रामायण को चित्रित किया गया है।
रंगनाथ का मुख्य मन्दिर अंतरतम प्रांगण मे है। मन्दिर का सुनहरा गुम्बद (विमानम) तमिल ओमकार के आकार का है। इसके त्रिकोणीय भाग पर मानवरूपी परवासुदेव को दर्शाता है जिसपर रामानुज की नक्काशी भी है। अंदर रंगनाथर की प्रतिमा जिसमे पांच सरवाले नाग पर जो कुण्डली मारे हुए है, पर श्री रंगनाथ अपनी दाहिनी हथेली पर अपना शीश रखे हुए योगनिंद्रा में लीन है। सबसे अनोखी बात उनके चरणों के पास श्रीदेवी (माता लक्ष्मी) और नाभि से उत्पन भगवान ब्रह्मा की मूर्ति का न होना है। गर्भगृह के दक्षिणी द्वार से प्रवेश करने पर आप को सीधे लेते हुए विग्रह के दर्शन प्राप्त होंगे। रंगनाथस्वामी मन्दिर के विमान के अंडाकार आकृति को देख कर इसके गोल गर्भगृह का अनुमान करना असंभव है जो इसकी अपने में एक अनोखी विशेषता है। जब आप मन्दिर की परिक्रमा करते है, तो आप को रंगनाथस्वामी के अतिरिक्त शिव परिवार के दर्शन प्राप्त होते है। इसके अतिरिक्त दीवारों पर देवी शक्ति, नरसिंह हुए विष्णु की योग अनंत मुद्रा के दर्शन होते है जो क्रमशा चारों दीवारों पर उकेरित है।
रंगनाथ स्वामी की पत्नी देवी रंगनायकी ( देवी लक्ष्मी ) की का मंदिर जिसमें एक मूल मूर्ति और एक उत्सव मूर्ति है, दूसरे परिसर में है। मुख्य विशेषता इस मंदिर की है - उत्सवों के दौरान, कभी भी रंगनायकी, रंगनाथस्वामी से मिलने नहीं जाती है अपितु रंगनाथस्वामी ही उनसे मिलने जाते है। 'पंगुनी उथिरम' उत्सव के दौरान रंगनायकी से मिलने और उनके साथ रहने को सारथी कहा जाता है।
रंगनाथस्वामी मन्दिर के पर्वोत्सव
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राजगोपुरम |
यूँ तो हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक पखवाड़े के ११वें दिन को एकादशी कहा जाता है इस दिन सभी वैष्णव भक्त व्रत उपासना कर भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करते है किन्तु दिसम्बर से जनवरी के माह में मनाई जाने वाले रा पाथु ( रात्रि समय पर्व ) जिसे १० दिन तक मनाया जाता है के प्रथम दिवस को वैकुण्ठ एकादशी के नाम से जाना जाता है। वैष्णव परम्परा के अनुसार सभी एकादशियों में वैकुण्ठ एकादशी सबसे पवित्र मानी जाती है। उत्सव के दौरान, गीतों, नृत्य और अनुष्ठानों के माध्यम से इस स्थल को भूलोक वैकुंठम ( पृथ्वी पर विष्णु के निवास स्थल ) सदृश्य सजाया जाता है। ऐसा माना जाता है की इस आयोजन को देखने के लिए स्वर्ग को छोड़ का सभी देव धरती पर मानव रूप में आते है। जुलुस देवता की मूर्ति को वैकुण्ठ एकादशी की प्रातः परमपद वासल ( स्वर्ग के द्वार ) के माध्यम से १००० स्तम्भों वाले मण्डप में लाया जाता है। द्वार खुलते ही हजारों की संख्या में तीर्थयात्री इसमें प्रवेश के दौड़ते है, देवता उनके मध्य से गुजरते है क्योंकि मान्यता है कि यदि आप यहाँ प्रवेश करते है तो मृत्यु के बाद सीधे वैकुण्ठ को प्राप्त होंगे। रा पाथु के दस दिनों तक यह द्वार खुला रहता है। अंतिम दिन का प्रदर्शन पुजारियों किया जाता है। जिसमें नम्माझवार की स्वर्ग यात्रा और मृत्युलोक के आवागमन से मुक्ति पाने को दर्शाया जाता है। उसी समय भीड़ में उपस्थित एक भक्त जो इसको देख रहा होता है अचानक से मंच पर आता है और भगवान विष्णु से अनुरोध करता है कि वह नम्माझवार को मानवता के लिए वापस मन्दिर में उनके शब्द उन्हें प्रेरित करते रहे।
दूसरा मुख्य उत्सव ज्येष्ठाभिषेक, जिसे तमिल माह आनी ( जून-जुलाई )के दौरान मनाया जाता है। इसमें स्वर्ण और चांदी के बड़े बड़े पात्रों में लाये गए जल से देवता को स्न्नान कराया जाता है। इसके अतिरिक्त ब्रह्मोत्सव, पंगुनि ( मार्च-अप्रैल ) तथा रथ उत्सव जिसे थाई माह (तमिल पंचांग के अनुसार ) के दौरान आयोजित किया जाता है। जिसमें देवता की जुलुस अभिव्यक्ति को मन्दिर के वाहन में बैठा कर सम्पूर्ण मन्दिर की परिक्रमा कराई जाती है।
रंगनाथ के दर्शन के लिए रंगनाथस्वामी मन्दिर कैसे जायें ?
सड़क मार्ग से
दक्षिण भारत के सभी मुख्य शहरों से तिरुचिरापल्ली सड़क तंत्र से जुड़ा हुआ है। तिरुचिरापल्ली से आप निजी या सरकारी बस, टैक्सी आदि के द्वारा रंगनाथस्वामी मंदिर पहुंच सकते है।
रेल मार्ग से
निकटतम रेलवे स्टेशन श्रीरंगम रेलवे स्टेशन है। जहां से रंगनाथस्वामी मन्दिर आधे किमी की दूरी पर स्थित है। जहां से आप पैदल टहलते हुए मन्दिर क्षेत्र तक जा सकते है। तिरुचिरापल्ली रेलवे स्टेशन जहां से रंगनाथस्वामी मन्दिर की दूरी ९ किमी है। जिसके लिए आप स्टेशन के बाहर से निजी या रेंटल वाहन ले सकते है।
हवाई मार्ग से
सबसे निकटतम हवाई अड्डा तिरुचिरापल्ली हवाई अड्डा है जहाँ से रंगनाथस्वामी मन्दिर की दूरी १५ किमी है।आप हवाई अड्डे के बाहर से निजी या सरकारी बस या किराये पर टैक्सी लेकर रंगनाथस्वामी मन्दिर पहुँच सकते है।
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