दक्षिण भारत के चेन्नई कोलकाता राजमार्ग पर चेन्नई से लगभग ४० किलोमीटर दूर सिरुवापुरी नामक स्थल है। राजमार्ग से लगभग ३ किमी दूर भगवान मुरुगन का मन्दिर है। यहां भगवान मुरुगा को श्री बालसुब्रमण्यर के नाम से सम्बोधित किया जाता है। जो अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं को पूरा करने वाले एक शक्तिशाली देवता है। खूबसूरत मुरुगन मन्दिर में उनके पिता देवादिदेव को अन्नमलाईयार और माता भगवती शक्ति को श्री उन्नामुलाई अम्मान भी विराजित है। भगवान मुरुगन, वल्ली मनालर ( श्री वल्ली के साथ विवाह मुद्रा में ) के रूप में अपनी उत्सव मूर्ति में देखे जाते है। इस मुरुगन मन्दिर की मुख्य विशेषता यहाँ आने वाले भक्तों पर भगवान मुरुगन अपनी विशेष कृपा करते है जो स्वयं का घर खरीदने की इच्छा मन में रख कर पूर्ण भक्तिभाव से उनके दर्शन करते है।
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श्री बालसुब्रमण्यर |
दंतकथा
प्राचीन कथाओं के अनुसार श्री राम पुत्र लव व कुश इस स्थान पर निवास करते थे। एक बार राम इस स्थान से होते हुए कही जा रहे थे, लव-कुश जो इस बात से अनजान थे, की वह कौन है। उन्होंने श्री राम से युद्ध किया। तमिल में सिरुवर का अर्थ है - बच्चे और पोर पुरी का अर्थ है - युद्ध करना। अतः इस स्थान को छोटे बच्चों के युद्ध के मैदान के नाम से भी जाना जाता है। इस स्थान को अब छिन्नमबेडु के नाम से भी जाना जाता है। इस स्थान का नाम सिरुवापुरी इसी कथा के कारण पड़ा माना जाता है।
दूसरी दंतकथा के अनुसार, मुरुगममई नाम की महिला सिरुवापुरी नाम के स्थल पर रहती थी। जो भगवान मुरुगन की भक्त थी। हर समय वह उन्ही की पूजा करती रहती थी। जिससे उसका पति उसकी इस पूजा से हर समय नाराज रहता था और उसे पूजा करने से मना करता रहता था। एक दिन गुस्से में आकर उसने मुरुगममई का हाथ काट दिया। मुरुगममई ने भगवान मुरुगन से प्रार्थना की तथा मदद के लिए गुहार लगायी। भगवान मुरुगन ने उसकी प्रार्थना का मान रखते हुए उसका हाथ जोड़ दिया।
धार्मिक महत्त्व
मुरुगन के विभिन्न नामों में वल्ली कणवन का नाम सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं। ऐसी मान्यता है की भगवान के सामने सभी समान है और वल्ली नायकम रूप की अभिव्यक्ति करता है। २९ वल्ली यहाँ इच्छा शक्ति के रूप में यहाँ चमकते है। वल्ली के साथ मुरुगन के विवाह को तमिल विद्वानों के द्वारा गुप्त विवाह का सबसे उपयुक्त उदाहरण माना जाता है। मुरुगन ने वल्ली से शादी की और एक मुस्कान के साथ उनके साथ अपने वैवाहिक जीवन का आनंद लिया। यह इस बात का संकेत है कि इस संसार में गृहस्थ जीवन कैसे व्यतीत करना चाहिए। मुरुगन मन्दिर में वल्ली के साथ विवाह की उनकी छवि को वल्ली कल्याण सुंदरार के नाम से जाना जाता है। कुमार तंत्र में वल्ली कल्याण सुंदरार के इस रूप को एक मुख और चार हाथों के साथ दर्शाया गया है। आगे का एक हाथ अभय मुद्रा में तथा दूसरा हाथ कूल्हे पर रखा हुआ है जिसे कद्यवलमपीठम मुद्रा कहा जाता है। अन्य दो हाथों में से एक हाथ में रुद्राक्ष और एक हाथ में कमंडल है। इस रूप में दाई ओर हम वल्ली को उनकी पूर्ण सुंदरता में पाते है। विवाह की तैयारी में वल्ली का हाथ थामे हुए भगवान मुरुगन या श्री बालसुब्रमण्यर स्वामी अपनी तरह का एक मुरुगन मन्दिर है। मान्यतानुसार परिवार जो विवाह परिस्थितियों से बाधित ( जोड़ों में आपसी कलह और विलग होने तक की संभावना ) होती है। यहां मुरुगन मन्दिर में वल्ली कल्याण सुंदरार का दर्शन व पूजा उनके सुखी वैवाहिक जीवन के मार्ग को प्रशस्त करता है।
मुरुगन मन्दिर की अनूठी विशेषता भगवान मुरुगन के वाहन मरागाथा मायिल (मयूर) की प्रतिमा है, जो हरे रंग है।
मन्दिर के गर्भगृह के पास अरुणगिरिनाथर की मूर्ति को भी देखा जा सकता है, जिन्होंने थिरुप्पुगज की रचना की। इसके पाठ करने से मनोकामनाएं पूरी हो जाती है।
पर्वोत्सव
मुरुगन मन्दिर के पुजारी पर्वोत्सव की अवधि और दैनिक आधार पर अनुष्ठान करते है। शैव प्रथा का पालन करते हुए भगवान शिव को समर्पित पुजारी ब्राह्मण शैव सम्प्रदाय से सम्बन्धित होते है। मुरुगन मन्दिर प्रातः ७:०० बजे से अपराह्न २:०० बजे तक और सायं ४:०० बजे से रात्रि ८ :०० बजे तक खुला रहता है। मन्दिर के पारम्परिक अनुष्ठान दिन में ६ बार किये जाते है। प्रत्येक अनुष्ठान के ४ चरण होते है - अभिषेक (स्नान), अलंगरम (श्रृंगार), निवेथानम (नैवेद्य अर्पण) और दीपा अरदानई (आरती)। कार्तिकाई, सस्ती, प्रथोसामी, विसाकामी, अमावस्या, चिथिरई वरुदा पिराप्पु, वैकासी विसाकामी, आदि गुरु पूजा, सौरा सम्हारम (दीपावली), आयुध पूजा (सरस्वती पूजा), कार्तिकाई दीपम, मार्गाजी पूजा, थाई पोंगल तिरुविझा, थाईपूसामी, महाशिवरात्रि और पंगुनि उथिराम मुरुगन मन्दिर में मनाये जाने वाले मुख्य उत्सव है।
मुरुगन मन्दिर कैसे पहुँचे ?
सिरुवापुरी देश के सभी मुख्य शहरों से सीधे जुड़ा हुआ नहीं है। अतः आप का मन यदि वल्ली कल्याण सुंदरार के दर्शन करना चाहते है। तो आप को निकटम शहर चेन्नई तक जो देश के विभिन्न छोटे बड़े शहरों से हवाई, रेल व सड़क के एक सुनियोजित तंत्र से जुड़ा हुआ है तक पहुंचना होगा। चेन्नई के कोयम्बेडु बस अड्डे से बस संख्या ५३३ जो सीधे मुरुगन मन्दिर तक जाती है के द्वारा आप मुरुगन मन्दिर भगवान श्री बालसुब्रमण्यर के दर्शनार्थ पहुँच सकते है। बस प्रातः ६:१५ बजे से नियमित समयांतराल पर सायं ७:०० बजे तक चलती है।
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