Header Ads Widget

Responsive Advertisement

अन्नामलाईयार मन्दिर तिरुवन्नामलाई

दक्षिण भारत के तमिलनाडु में स्थित अरुणाचल पर्वत जो तिरुवन्नामलाई शहर में स्थित है की तलहटी में पञ्च भूत स्थलों में से एक भगवान शिव को समर्पित मन्दिर, अन्नामलाईयार मन्दिर या स्थानीय लोगो द्वारा सम्बोधित अरुणाचलेश्वर मन्दिर है। भारत के मन्दिर जो अग्नि तत्व से जुड़े हुए है, उनमें अन्नामलाईयार मन्दिर को जो शैव सम्प्रदाय का महत्वपूर्ण मन्दिर है, में से एक है। अन्नामलाईयार मन्दिर जिसके मुख्य देवता अन्नामलाईयार या अरुणाचलेश्वर, जिनका प्रतिनिधित्व शिवलिंगम द्वारा किया जाता है। इस शिवलिंग को अग्नि लिंगम के नाम से भी जाना जाता है। भगवान अन्नामलाईयार की शक्ति भगवती पार्वती, जिन्हे उन्नामलाई अम्मन के रूप में पूजा जाता है। ७वीं शताब्दी के तमिल कवियोँ द्वारा तेवरम (शिव वंदना) में पीठासीन देवता भगवान थेनुपुरीश्वर को वर्णित किया गया है। इसके अतिरिक्त अन्नामलाईयार मन्दिर को पाडल पेट्रा स्थलम (महाद्वीप के सर्वक्षेष्ठ शिव मन्दिर) की श्रेणी में रखा गया है।  


अन्नामलाईयार मन्दिर तिरुवन्नामलाई
अरुणाचलेश्वर महादेव

इतिहास 

लेखक सेक्किझार ने अपने पेरियापुराणम के अन्दर शैव संतों अप्पर और संबंदर के द्वारा अरुणाचलेश्वर मन्दिर में  पूजा करने का वर्णन किया गया है। मन्दिर का निर्माण चोल राजाओं के शासनकाल के दौरान ९वीं शताब्दी की अवधि में किया गया था। पल्लव राजवंश के बाद, चोल राजवंश ने इस क्षेत्र पर चार शताब्दियों तक अपना राज्य किया और मन्दिर के सक्रिय संरक्षक रहे। जिसका उल्लेख मौजूदा शिलालेखों से मिलता है। चोल राजवंश के बाद विजयनगर साम्राज्य जिनके शासनकाल में तिरुवन्नामलाई शहर तीर्थयात्रा के पवित्र केंद्रों से जुड़ा हुआ था। पूर्व औपनिवेशिक काल में यह एक शहरी सभ्यता के रूप में मन्दिर परिसर के चारों तरफ विकसित हो रहा था। कर्नाटक के नवाब, मुग़ल साम्राज्य, फ्रांसीसियों, टीपू सुल्तान और अंत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी ने इस क्षेत्र पर अपना अधिपत्य स्थापित किया। जिनकी मिलीजुली संस्कृति  प्रभाव यहाँ पर परिलक्षित होता है। 


दंतकथा

एक बार कैलाश पर विनोद करते समय देवी पार्वती ने भगवान शिव के नेत्रों को ढ़ँक दिया जिससे संसार अंधेरे से आच्छादित हो गया। शिव जी के नेत्र बंद होने से सूर्य और चन्द्रमा भी बिना प्रकाश की किरण के काळे हो गये।  यह सब देखकर भगवती पार्वती अपराध बोध से ग्रषित हो उठी। देवी पार्वती ने शिव भक्तो के साथ तपस्या की जिससे प्रसन्न होने पर भगवान शिव अन्नामलाई पहाड़ियों के शिखर पर अग्नि के एक विशाल स्तम्भ के रूप में प्रकट हुए। उनके प्रकट होने से धरती पर पुनः जीवन का संचार होने लगा। उसी समय देवी ने स्वयं को भगवान शिव में विलय कर लिए जिससे भगवान शिव का आधा शरीर पुरुष और आधा महिला का हो गया। इसप्रकार उन्होंने अर्धनारीश्वर का रूप धारण किया। अरुणाचल या लाल पहाड़ अन्नामलाईयार मन्दिर के स्थित है। स्थानीय लोगो मान्यता है, चूँकि यह पहाड़ी शिव जी का ही अनिष्ट प्रारूप होने कारण अपने आप में पवित्र है।


अन्नामलाईयार मन्दिर तिरुवन्नामलाई
अन्नामलाईयार और उन्नामलाई अम्मन
एक अन्य किंवदंती के अनुसार, भगवान विष्णु और ब्रह्मा में श्रेष्ठता को लेकर विवाद उत्पन हो गया। जिसके निस्तारण के लिए भगवान आदिदेव महादेव एक ज्वाला  प्रकट हुए तथा अपनी श्रेष्ठता को सिद्ध करने के लिए ज्योति के स्रोत्र का पता लगाने की शर्त रखी। ब्रम्हा जी ने हंस का रूप धारण कर आकाश की दिशा में उड़ चले वही विष्णु वराह रूप धारण कर आधार की दिशा में स्रोत्र की खोज में चल दिए। परन्तु दोनों को ही स्रोत्र का पता नहीं चला।  विष्णु जी ने अपनी हार मान ली परन्तु ब्रम्हाजी ने झूठ बोला कि उन्हें स्रोत्र का ज्ञान हो गया है। शिव जी जानते थे की ब्रह्मा झूठ भूल रहे है। अतः उन्होंने उन्हें दण्डित किया और यही स्रोत अग्नि लिंग रूप में प्रकट हुआ था। 


वास्तुकला 

अन्नामलाईयार मन्दिर तिरुवन्नामलाई
राजगोपुरम 
अन्नामलाई पहाड़ियों की तलहटी में स्थित अन्नामलाईयार मन्दिर २५ एकड़ के परिसर में फैला हुआ है जिसका मुख पूर्व की ओर है। परिसर में प्रवेश के लिए चारों दिशाओं में चार प्रवेश द्वार है। जिन्हें स्थानीय बोलचाल में गोपुरम के नाम से जाना जाता है। पूर्वी राजगोपुरम भारत के ऊँचे टॉवर गोपुरम में से एक है जिसकी ऊंचाई ६६ मीटर है, इसका निर्माण विशाल ग्रेनाइट पत्थर से किया गया है। परिसर १५०० फीट लम्बा और ७०० फीट के आसपास चौड़ा है। 

अन्नामलाईयार मन्दिर के पांचो परिसरों में प्रत्येक के सामने भगवान शिव के मुख्य गण व उनकी सवारी नंदी जी की विशाल मूर्ति है। भगवान अन्नामलाईयार का मन्दिर जो इस परिसर का मुख्य और सबसे प्राचीन मन्दिर है, पूर्वाभिमुख है। इस संरचना में सूर्य और नन्दी की छवियां है। गर्भगृह की दीवारें भगवान विष्णु के अवतार वेणुगोपालस्वामी, 

अन्नामलाईयार मन्दिर तिरुवन्नामलाई
नन्दी 

गजलक्ष्मी, दुर्गा, अरुमुगास्वामी, नटराज, दक्षिणामूर्ति, सोमस्कन्दर, लिंगोदभावर शिव और उन्नामलाई के तपस्यास्थल की छवियो से सुसज्जित है। उन्नामलाई अम्मन का मन्दिर दूसरे परिसर में है। जहां वे खड़ी मुद्रा में सुन्दर वस्त्राभूषणों से सुसज्जित है। मुख्य गर्भगृह के उत्तर दिशा में हाथी भगवान और बाली पीता ( बलि स्थल ) और शिवगंगई विनयगर शिवगंगा जलकुण्ड और दक्षिण दिशा में सुब्रमण्य भगवान का मन्दिर और हजार स्तम्भों वाला मण्डप स्थित है। मुख्य लिंगम के अतिरिक्त एक भूमिगत लिंगम जिसे पथला लिंगम के नाम से भी जाना जाता है उस स्थल पर जिस जगह महर्षि रमण ने तपस्या की थी उनकी स्मृति में स्थित है। तीसरे परिसर में, दीप दर्शन मण्डपम, जो प्रकाश के सोलह स्तम्भों वाला हाल है, स्थित है। विवाह मण्डप, जिसे कल्याण मण्डपम के नाम से जाना जाता है, दक्षिण-पश्चिम के तीसरी सीमा पर स्थित है, जिसे विजयनगर वास्तुशैली में निर्मित किया गया है। तीसरे परिसर में वसन्त मण्डपम, कालाहतेश्वर मन्दिर और मन्दिर प्रबंधन कार्यालय स्थित है। चौथे परिसर में मंदिर का मुख्य जलकुण्ड ब्रह्म तीर्थम, यानाई थिरई कोंडा विनयगा का एक मन्दिर और पवित्र नन्दी की मूर्ति के साथ एक हॉल है, जो छह फीट लम्बा है। पांचवे परिसर में हजार स्तम्भों वाला हाल जिसके खम्भों में एक पौराणिक जीव यली की आकृति उकेरित है और एक पवित्र जलकुंड है। 


मन्दिर उत्सव 

मन्दिर में प्रातः ५:३० बजे से रात्रि १०:३० बजे तक दर्शन किये जा सकते है। इस अंतराल में मन्दिर के पुजारी पर्वोत्सव की अवधि और दैनिक आधार पर अनुष्ठान करते है। जो शैव प्रथा का पालन करते हुए भगवान शिव को समर्पित पुजारी ब्राह्मण शैव सम्प्रदाय से सम्बन्धित होते है। प्रत्येक अनुष्ठान के ४ चरण होते है - अभिषेक (स्नान), अलंगरम (श्रृंगार), निवेथानम (नैवेद्य अर्पण) और दीपा अरदानई (आरती)। चूँकि मन्दिर का शिवलिंग रेंत का बना हुआ है अतः सभी स्नान केवल आसन पर ही किये जाते है।   मन्दिर के पारम्परिक अनुष्ठान दिन में ६ बार किये जाते है, जो इस प्रकार है -

  • प्रातः ५:३० बजे - उषाथकलम  
  • प्रातः ८:०० बजे - कला शान्ति 
  • प्रातः १०:०० बजे - उचिकलम 
  • सायं  ६:०० बजे - सयारक्षाई  
  • सायं  ८:०० बजे - इरान्दमकलम 
  • रात्रि  १०:०० बजे - अर्ध जमाम 
मन्दिर में अन्य शिव मन्दिरों की तरह ही सोमवार और शुक्रवार को साप्ताहिक अनुष्ठान, प्रदोष जैसे पाक्षिक व मासिक पर्व जैसे अमावसई, किरुथिगई, पूर्णनामि और सथुरथी आदि उत्सव मनायें जाते है। मन्दिर में ब्रह्मोत्सव और तिरुवूडल मुख्य उत्सव है जिन्हे मनाने के लिए पूरे देश से लाखों की संख्या में तीर्थयात्री इस क्षेत्र में पहुंचते है। 

तिरुवूडल

तमिल माह थाई के पहले सप्ताह के दौरान प्रति वर्ष जनवरी के मध्य में तिरुवूडल का उत्सव मनाया जाता है। पोंगल के दिन नन्दी का शृंगार फलों, सब्जियों और मिठाइयों से बनी मालाओं से किया जाता है। सायं के समय भगवान अन्नामलाईयार और उन्नामलाई अम्मन की उत्सव मूर्तियों को ऊदल ( प्रेम झगड़ा ) करने के लिए मन्दिर से तिरुदल गली में ले जाया जाता है। 

अन्नामलाईयार मन्दिर तिरुवन्नामलाई
आकाशीय दृश्य 

ब्रह्मोत्सव मन्दिर  

ब्रह्मोत्सव मन्दिर में मनाया जाने वाला उत्सव तमिल माह के कार्तिकाई ( नवम्बर और दिसम्बर ) के बीच १० दिन तक मनाया जाता है और कार्तिकाई दीपम के उत्सव के साथ समाप्त होता है। इस उत्सव के दौरान अरुणाचल के शिखर पर रखी हुई तीन टन का गहरा विशाल दीपक जलाया जाता है। शिलालेखों से ज्ञात होता है इस उत्सव  प्रारम्भ चोल शासनकाल में किया गया था जिसे २०वीं शताब्दी में बढ़ा कर १० दिनों तक मनाया जाने लगा। 

प्रत्येक पूरनमाशी पर लाखों की संख्या में तीर्थयात्री नंगे पाव अरुणाचल पर्वत की १४ मील की परिक्रमा करके भगवान अरुणाचलेश्वर की पूजा करते है। हिन्दू मान्यताओं अनुसार चलना पापों से मुक्ति प्रदान करता है और इच्छाओ को पूरा कर जन्म मृत्यु के आवागमन से मुक्त हो जाता है। 

मन्दिर में दर्शन के पूर्व कुछ टिप्स 

  • यदि आप मन्दिर में दर्शन के लिए रूढ़िवादी पोशाक का ही चुनाव करे। 
  • छोटे और रिलीविंग कपडे मन्दिर मे पहन कर दर्शन की अनुमति मन्दिर प्रशासन द्वारा नहीं दी जाती है। 
  • धार्मिक उद्देश्यों के लिए महत्वपूर्ण त्योहारों और दिनों के दौरान मन्दिर में अत्याधिक भीड़ का सामना करना पड़ता है।
  • यात्रा के दौरान अपने सामान का ध्यान रखे। 
  • अपने साथ पानी की अतिरिक्त व्यवस्था अवश्य रखे। 

मन्दिर तक कैसे पहुँचे ?

मन्दिर में मुख्य पर्वोत्सव नवम्बर में मनाया जाता है अतः इस समय यहाँ पर जाना एक प्रकार का सुखद अनुभव होगा। चेन्नई से आप स्थानीय परिवहन बस, निजी वाहन या रेंटल कैब सेवा का प्रयोग करके तिरुवन्नामलाईतक पहुंच सकते है। आप चाहे तो लोकल रेल सेवा का भी प्रयोग सकते है। तिरुवन्नामलाई बस स्टेशन और रेलवे स्टेशन से परिसर तक आप पैदल ही टहलते हुए भी जा सकते है। 



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ