दक्षिण भारत के तमिलनाडु के अम्बासमुद्रम से १५ किमी और तिरुनेलवेली से ६० किमी की दूरी पर स्थित पापनासम गांव में भगवान शिव को समर्पित, पापनासनाथर मन्दिर स्थित है। मन्दिर को द्रविण वास्तुशैली के अनुरूप निर्मित किया गया था। यहाँ भगवान शिव को पापनासनथर के रूप में व देवी पार्वती को उलगम्मई के रूप में पूजा जाता है। मन्दिर से बहने वाली थमीरापरणीं नदी मछलियों से भरी हुई है। इस पवित्र नदी में हजारों की संख्या में प्रतिवर्ष तीर्थयात्री स्नान करते है। उनका मानना है यह मछलियां वो पवित्र आत्माये है जिनके पाप इस नदी में स्नान के प्रणाम स्वरुप नष्ट हुए है अतः इन्हे नुकसान पहुंचाने से जीवन में कष्टों का सामना करना पड़ेगा।
दंतकथा
यूँ तो किसी भी देव स्थान के साथ अनको पौराणिक और स्थानीय किंवदंतिया जुड़ी होती है ऐसा ही इस स्थान के भी साथ है। जिसमे से कुछ प्रमुख इस प्रकार है -
एक बार देवताओं के परम शत्रु असुर गुरु शुक्राचार्य के पुत्र द्वास्थ जो की जातिगत तो ब्राह्मण था परन्तु कर्मवश राक्षस था। देव विनाश के लिए तपस्यारत था, का देवताओं के राजा इन्द्र के द्वारा वघ हो जाता है, जिससे देवराज पर ब्रह्म हत्या का पाप लगता है। देवराज इन्द्र इस पाप से मुक्ति हेतु भटक रहे थे, तभी देव गुरु बृहस्पति के मार्गदर्शन से इस स्थान पर आये और भगवान शिव की तपस्या की। जिससे उनके पाप का नाश इस स्थान पर हुआ इस स्थान को पापनासम तथा भगवान शिव को पापनासनथर कहा जाता है। इसी स्थान पर निर्मित देव मन्दिर को पापनासनाथर मन्दिर के नाम से ख्याति प्राप्त हुई।
दूसरी किंवदंती के अनुसार, शिव - पार्वती के दिव्य विवाह के दरम्यान कैलाश पर देवगणों, भूतों पिशाचों, सुर - असुर, ऋृषि और मुनियों का आगमन हुआ। ऋृषि अगस्त भी इस विवाह में समलित हुए किन्तु वे इस घटना का दर्शन नहीं कर पाए जिसका उनके मन में बहुत क्षोभ था। उन्होंने इस स्थान पर पापनासनाथर मन्दिर के समीप अपनी पत्नी लोपामुद्रा के साथ भगवान शिव की तपस्या की। उनकी इस तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें कल्याण मुद्रा में दर्शन दिए। इसलिए मंदिर के आस पास के झरनों को अगस्तियार जलप्रपात के नाम से भी जाना जाता है।
एक अन्य किंवदंती के अनुसार, ऋषि उरोसामर ने थमीरापरणीं नदी में फूलों को प्रवाहित किया। प्रथम पुष्प तट पर जिस स्थान पर रूका, उस स्थान पर उन्होंने अपने आराध्य भगवान पापनासनथर की पूजा की तथा मंदिर का निर्माण कराया। जिसे पापनासनाथर मन्दिर के नाम से जाना जाता है।
वास्तुशैली
मन्दिर के चारो ओर मजबूत ग्रेनाइट की दीवार है, जो इसके सभी मन्दिरों को घेरे हुए है। इस मन्दिर का निर्माण पाण्ड्य शासक विक्रमासिंघन के द्वारा करवाया गया था। इस लिए प्राचीन लेखों में इस स्थान का नाम विक्रमासिंहपुरम का उल्लेख भी किया गया है। १६वीं शताब्दी के दौरान विजय नगर और नायक राजाओं द्वारा मन्दिर का जीर्णोद्धार कराया गया। जिसका स्पष्ट संकेत वहां की कलात्मक मूर्तियां देती है जो नायक कलाशैली में बनी है। पापनासनाथर मन्दिर का साथ स्तरीय गेटवे टॉवर है। मुख्य गर्भगृह में लिंगम रूप में पापनासनथर विराजमान है तथा देवी उलगम्मई एक अलग ही मन्दिर में जो पश्चिमोंमुख है, में स्थापित है। मंदिरों की दीवारे विनायक, सुब्रमण्यम, दक्षिणामूर्ति, दुर्गा और नवग्रहों की सुन्दर छवियों से सुशोभित है।
पश्चिम मुखी मंदिर में यली स्तम्भों की उकेरी हुई आकृतियों वाले मण्डप में भगवान शिव के नटराज रूप को रखा गया है। जिन्हे पुनुगु सबपति भी कहा जाता है। मन्दिर में तीन जलकुंड - पापनासा तीर्थम, अगस्त्य तीर्थम और कल्याणी तीर्थम है। देवी उलगम्मई अम्मन के मन्दिर के सामने एक पत्थर है जिसपर महिलाओं द्वारा हल्दी पीसी जाती है। जिसका प्रयोग पवित्र स्नान और पूजा में किया जाता है।
पूजा व मुख्य पर्वोत्सव
पापनासनाथर मन्दिर अमावस्या के दिन को छोड़ कर दर्शन करने वाले भक्तो के लिए प्रातः ६:०० बजे से अपराह्न १:०० बजे तक और सायं ४:०० बजे से रात्रि ८:०० बजे तक खुला रहता है। इस अंतराल में मन्दिर के पुजारी पर्वोत्सव की अवधि और दैनिक आधार पर अनुष्ठान करते है। जो शैव प्रथा का पालन करते हुए भगवान शिव को समर्पित पुजारी ब्राह्मण शैव सम्प्रदाय से सम्बन्धित होते है। प्रत्येक अनुष्ठान के ३ चरण होते है - अभिषेक (स्नान) और अलंगरम (श्रृंगार), निवेथानम (नैवेद्य अर्पण) और दीपा अरदानई (आरती)। मन्दिर के पारम्परिक अनुष्ठान दिन में ६ बार किये जाते है, जो इस प्रकार है -
- प्रातः ६:३० बजे - तिरुवनंतल
- प्रातः ७:०० बजे - सिरुआलसंथि
- प्रातः ८:३० बजे - कलासंथी
- अपराह्न ११:३० बजे - उचिकलम
- सायं ६:०० बजे - सयारक्षाई
- रात्रि ८:०० बजे - अर्ध जमाम
पापनासनाथर मन्दिर में अन्य शिव मन्दिरों की तरह ही सोमवार और शुक्रवार को साप्ताहिक अनुष्ठान, प्रदोष जैसे पाक्षिक व मासिक पर्व जैसे अमावसई, किरुथिगई, पूर्णनामि और सथुरथी आदि उत्सव मनायें जाते है। पापनासनथर व देवी उलगम्मई को पूजा के दौरान चढ़ाया जाने वाला नैवेद्य थमीरापरणीं नदी की मछलियों को भी अर्पित किया जाता है। मन्दिर का मुख्य उत्सव तमिल पंचांग का चित्तिराई माह ( मध्य अप्रैल से मध्य मई ) में मनाया जाने वाला ब्रह्मोत्सव और थाई माह ( मध्य जनवरी से मध्य फरवरी ) में मनाया जाने वाला थाईपूसम है। इसके अतिरिक्त शिवरात्रि और अगस्तियार थिरुकल्याणम (पवित्र विवाह) आदि पर्व भी धूमधाम से मनाये जाते है।
पापनासनाथर मन्दिर कैसे पहुंचे ?
सड़क मार्ग से
दक्षिण भारत के सभी मुख्य शहरों जैसे बंगलौर, मैंगलोर, हैदराबाद, तिरुपति, चेन्नई, मैसूर, तिरुनेलवेली से पापनासनाथर मन्दिर के लिए नियमित बस सेवाए उपलब्ध है।
रेल मार्ग से
निकटतम रेलवे स्टेशन तिरुनेलवेली रेलवे स्टेशन है। जहां से पापनासनाथर मन्दिर ५० किमी की दूरी पर स्थित है जिसके लिए आप स्टेशन के बाहर से निजी या रेंटल वाहन ले सकते है।
हवाई मार्ग से
सबसे निकटतम हवाई अड्डा मदुरै हवाई अड्डा है जहाँ से मामल्लापुरम की दूरी २११ किमी है। आप हवाई अड्डे के बाहर से निजी या सरकारी बस या किराये पर टैक्सी लेकर पापनासनाथर मन्दिर पहुँच सकते है।
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