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कलुगुमलाई, दक्षिण भारत का एलोरा

थूथुकुड़ी (पूर्व में तूतीकोरिन) को भारत के "पर्ल सिटी" के नाम से जाना जाता है, जो की तमिलनाडु का एक समुद्री शहर है। जिसका मुख्य व्यवसाय मोती मछली पकड़ने और जहाज निर्माण है। जिसका एक छोटा शांत शहर कलुगुमलाई या कजुगुमलाई अपने प्राचीन रॉक-कट मंदिरों और जैन निवास के लिए प्रसिद्ध है। कलुगुमलाई कोविलपट्टी और शंकरनकोइल के बीच स्थित है जिसका अपना ही एक महान ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और धार्मिक महत्व है। जिसकी औसत ऊंचाई समुद्र तल से लगभग ३४४ फीट ( १०५ मीटर) है। इस क्षेत्र का मुख्य व्यवसाय कृषि, माचिस उद्योग के साथ साथ पर्यटन है। क्योंकि तीर्थयात्रा के लिए प्रतिवर्ष यहाँ लाखों की संख्या में लोग आते है। तमिलनाडु-टूर-ट्रेवल


इतिहास

इस शहर का इतिहास भी इसके नाम की तरह ही अनोखा है। सबसे प्राचीन पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस स्थान का नाम कजुगुमलाई, शाब्दिक अर्थ "गिद्ध की पहाड़ी" है। सम्पाती जो की गिद्धराज जटायुं के भ्राता थे, ने इसी स्थान पर भगवान श्री राम से आशीर्वाद प्राप्त किया था और उनकी पूजा की थी, इसलिए स्थान का नाम कजुगुमलाई पड़ा। 


कुछ अन्य किवदंतियो के अनुसार, कजुगुमलाई गांव में, आठवीं शताब्दी में पल्लनकोट्टई के राजा ने एक गुफा से आने वाली घंटी की आवाज सुन कर उस स्थान का निरीक्षण किया और गुफा में एक मूर्ति को देख कर यहाँ एक मंदिर का निर्माण कराया। सुन्दर घुमावदार और नक्काशी युक्त मन्दिर उस काल की अद्धभुत वास्तुकला को दर्शाता है जिसकी ऊंचाई २० फीट और लम्बाई - चौड़ाई ४० फीट है। नक्काशी में मुख्यता दक्षिणामूर्ति, भगवान मुरुगन, ब्रह्माजी और देवी उमामाहेश्वरी की मूर्तियां और उन्हें आनंदित करते हुए संगीतकार जो अपने अपने वाद्य यन्त्र बजा रहे हैं की कलाकृतियां है। कुछ स्थानों पर तीर्थाकरों की उत्कृष्ट नक्काशी भी देखने को मिलती है जिसकी वजह से यह स्थान जैनियों का भी मुख्य आकर्षण का केंद्र है। 


१५५७ में, काजुगुमलाई राजा थिरुमलाई नायकर के शासन में था जिन्होंने मदुरै साम्राज्य पर शासन किया था। उस समय एट्टायपुरम के राजा ने केरल के राजा के खिलाफ युद्ध में राजा थिरुमलाई नायकर की सहायता की थी। जिसमें एट्टायपुरम के राजा की विजय हुई। जब वह राज्य में लौटा, तो उसे उसके शत्रुओं ने चालाकी से हत्या कर दी। एट्टायपुरम के राजा के प्रति अपनी कृतज्ञता दिखाते हुए राजा थिरुमलाई नायकर ने एट्टायपुरम के राजा के परिवार को काजुगुमलाई और उसके आसपास के गावों की पेशकश की गयी तथा एट्टायपुरम के राजाओं से इस स्थान के विकास में अपना एक महत्वपूर्ण योगदान दिया।

 

कलुगुमलाई ने १८९५ के दंगों की पृष्ठभूमि के रूप में भी प्रसिद्ध है, जिसमें १० लोग सांप्रदयिक झड़पों में मारें गए थे। 


कलुगुमलाई के मुख्य दर्शनीय स्थल 

कलुगुमलाई का मुख्य आकर्षण उसके तीन मुख्य मंदिर हैं। 


जैन निवास 

कलुगुमलाई, दक्षिण भारत का एलोरा
कलुगुमलाई जैन मन्दिर 
कलुगुमलाई क्षेत्र में ८वीं -  ९वीं शताब्दी ईस्वी की कई रॉक राहत मूर्तियां है, जिसमें दो यक्षों से घिरी भगवान पार्श्वनाथ की रॉक कट छवि तथा जिनके आस पास अन्य तीर्थांकरों की रॉक कट मूर्तियां हैं, जिनपर वट्टेझुथु लिपि में कुछ लिखा है। यह स्थान मुख्यता जैन वास्तुकला और उसके गुफा मंदिर के लिए जाना जाता है, जिसे दिवंगत आत्माओं की स्मृति में बनायें गए थे ।

 पहाड़ी के मुख्य देवता को अरिमलाई अलवर कहा जाता है। जैन पुरुष और महिला भिक्षुओं द्वारा यहाँ तपस्या की गयी। यहाँ पर जैन शिक्षा और महिला सशक्तिकरण के लिए कितने उत्साही व समर्थक थे का उल्लेख उपस्थित शिलालेखों द्वारा होता है संरक्षण और भक्ति आंदोलन के नुकसान के कारण, मठ १३वीं शताब्दी के बाद विलुप्त हो गया। इस स्थान के आस पास कई जैन गॉव स्थापित किये गए थे। 



वेट्टुवन कोइलो 

कलुगुमलाई, दक्षिण भारत का एलोरा
वेट्टुवन कोइलो
वेट्टुवन कोइलो एक मूर्तिकार का स्वर्ग ८वीं ९वीं शताब्दी का एक हिन्दू मन्दिर है। जो की एक अधूरा बना हुआ अमूल्य पांडियन मोनोलिथ गुफा मंदिर है। यह इतिहास में वर्णित वह स्थान है, जिसने तमिल संस्कृति परम्पराओं और धार्मिक कला से परिपूर्ण स्थापत्य कला की वृद्धि में योगदान दिया है।

 मन्दिर का निर्माण एलोरा के कैलाश मंदिर की निर्माण शैली में किया गया है। जिसमें लगभग ७.५ मीटर पर्वत की खुदाई एक आयताकार ढंग से की गयी है और बीच में मन्दिर को चट्टान के एक टुकड़े से तराशा गया है। नक्काशी पाण्ड्य युग की दक्षिणी मंदिर शैली को दर्शाती है। मन्दिर का ऊपरी भाग ही पूरा हुआ है। मंदिर के मुख्य देवता के लिए एक प्रवेश द्वार और केंद्र कक्ष है। बाद में यहाँ भगवान श्री गणेश की मूर्ति रखी गयी। वर्तमान में जिसकी पूजा की जाती है। मंदिर के शीर्ष पर उमा महेश्वर,दक्षिणामूर्ति, विष्णु और ब्रम्हा की मूर्तियां है। रॉक कट मंदिर में लगभग १२२ मूर्तियां हैं। बारीक नक्काशी वाली मूर्तियाँ ग्रेनाइट से बनी हैं। 

इस मंदिर के अधूरे रह जाने की एक कथा इस प्रकार है - कलुगुमलाई की तलहटी क्षेत्र में एक मंदिर के निर्माण के लिए एक मूर्तिकार की नियुक्ति की गयी। मूर्तिकार और उसके पुत्र में वास्तुकला की शैली को लेकर कुछ बहस हो गयी। पुत्र ने पिताकी जानकारी के बिना ही निर्माण कार्य आरम्भ कर दिया। पुत्र द्वारा अपनी आज्ञा की अवज्ञा का ज्ञान होने पर क्रोधित मूर्तिकार ने उस पर अपनी छेनी फेंक दी, जो उसके गले में लग गयी। जिससे उसकी मृत्यु हो गयी। जिससे उसका निर्माण कार्य आज भी अधूरा है।


कलुगसालमूर्ति मन्दिर 

कलुगुमलाई, दक्षिण भारत का एलोरा
कलुगसालमूर्ति मन्दिर 
इस मंदिर के मुख्य देवता मुरुगन हैं। मुख्य देवता हॉल और प्रवेश हॉल पहाड़ी के दक्षिण पश्चिमी कोने में कलुगुमलाई की तलहटी पहाड़ियों के अंदर और बाहरी संरचनात्मक परिवर्धन के साथ खुदाई की गयी है। मंदिर में कई दर्शनीय मूर्तियां है।  मंदिर १८वीं शताब्दी का है।  मुख्य देव मुरुगन यहाँ अपनी पत्नी दीवानाई के साथ है।  मन्दिर परिसर में शिव, अकिलन्देश्वरि व् अन्य कई छोटे छोटे देवताओं के मंदिर है। इन मंदिरो के अलावा कलुगुमलाई  पहाड़ी की चोटी पर विनयगा मन्दिर और जैन निवास के रास्ते पर अय्यनार मन्दिर है।  



कलुगुमलाई कैसे पहुँचे ?

कलुगुमलाई में स्थित एक बस स्टॉप है, जो इस राज्य और देश के सभी प्रमुख शहरों से जोड़ता है। निकटतम रेलवे स्टेशन कोविलपट्टी जो की यहाँ से १८ किमी की दूरी पर स्थित है।  निकटतम हवाई अड्डा थोट्टुकुडी (६२ किमी) व मदुरै (९५ किमी) है जहां से आप सड़क मार्ग से यहाँ आसानी से पहुंच सकते हैं। 



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