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एरावतेश्वर मन्दिर : जिसकी सीढ़ियों पर चलने उत्पन्न होता है मधुर संगीत

सनातन भारत की अमूल्य धरोहर उसके धार्मिक तीर्थ स्थल व उसके मन्दिर है, जिसने प्राचीन भारत और उसकी सनातन संस्कृति को आज भी जनमानस के मन मस्तिष्क में जीवित रखा है। ऐसे मन्दिरों को देखने के बाद मन में सिर्फ धर्म की राह पर चलने की सोंच जाग्रत हो जाना स्वाभाविक ही है। आइये चलते है ऐसे ही एक मन्दिर रावतेश्वर मन्दिर कुम्भकोणम की यात्रा पर....... 


रावतेश्वर मन्दिर कुम्भकोणम के पास दारासुरम शहर में स्थित एक प्रतिष्ठित हिन्दू मन्दिर और यूनेस्को द्वारा संरक्षित वैश्विक धरोहर स्थल है। रावतेश्वर मन्दिर का निर्माण चोल राजा राजराजा चोल द्वितीय द्वारा १२वीं शताब्दी सीई में कराया गया था। रथ संरचना में निर्मित मन्दिर परिसर में इन्द्र, अग्नि, वरुण, वायु, ब्रह्मा, सूर्य, विष्णु, सप्तमत्रिक, दुर्गा, सरस्वती, श्रीदेवी, गंगा आदि कई वैदिक व पौराणिक देवी-देवताओं को समर्पित छोटे छोटे मंदिर हैं। भगवान शिव की पत्नी जिन्हें पेरिया नायकी अम्मन के नाम से सम्बोधित किया जाता है, का मन्दिर परिसर की उत्तर दिशा में है। मुख्य मन्दिर और उसके गर्भगृह के अतिरिक्त मन्दिर का काफी हिस्सा संरक्षण के अभाव में खंडित हो चुका है।


एरावतेश्वर मन्दिर : जिसकी सीढ़ियों पर चलने उत्पन्न होता है मधुर संगीत
रावतेश्वर मन्दिर

हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार, ऋषि दुर्वासा ने ऐरावत को उनका अपमान करने पर श्राप दिया था। जिससे उसका चमकदार श्वेत त्वचा का रंग कान्तिहीन हो गया। जिसे उसने शिव जी की पूजा करने के उपरान्त मन्दिर के कुण्ड में स्न्नान करके पुनः प्राप्त किया। इस कारण से इस मंदिर को रावतेश्वर मन्दिर के नाम से सम्बोधित किया जाने लगा। यह कुण्ड मन्दिर परिसर में आज भी उपस्थित है, दर्शन हेतु आये तीर्थयात्रियों द्वारा इसमें पवित्र डुबकी लगाने और स्वयं को पापों से मुक्त करने की प्रथा आज भी जीवित है। मंदिर के भीतरी कक्षों में यह कथा आज भी दीवारों पर चित्रकला के रूप में सजीव है। एक अन्य कथा के अनुसार मृत्यु के अधिष्ठाता देव यमराज, जो किसी ऋषि के श्राप से पीड़ित थे। इस स्थान पर रावतेश्वर भगवान (भगवान शिव, जिन्हे रावतेश्वर के रूप में पूजा की जाती है) की पूजा करने और पवित्र जलकुंड में स्न्नान करने से श्राप मुक्त हो गए थे। इसलिए इस स्थान को "यमतीर्थम" के नाम से भी जाना जाता है। 


मन्दिर को चोलों द्वारा पूरी तरह से पत्थर के विमानों पर निर्मित चार मन्दिरों में से एक है। नन्दी मण्डप और स्तम्भ, मन्दिर के बाहर स्थित है और पूर्व-पश्चिम अक्ष के साथ संरेखित है। मन्दिर के मजबूत स्तम्भों, दीवारों व छतों पर की गयी विस्तृत नक्काशी विशेषरूप से आकर्षण का केन्द्र है। पूर्व की ओर एक रथ आकार की संरचना है, जिसे राजा के नाम पर राजगंभीर-तिरु-मंडपम कहा जाता है। मण्डप के दक्षिणी भाग को पत्थर के एक विशाल रथ का आकार प्रदान किया गया है, जिसे देखने से ऐसा प्रतीत होता है की घोड़ों द्वारा पत्थरनुमा रथ को खींचा जा रहा हो।

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इस रथ हाल में जाने के लिए जटिल नक्काशीदार सीढियाँ है। जिन पर चलने से एक सुखद संगीत ध्वनि की उत्पत्ति होती है जिसके कारण इन्हें "सिंगिंग स्टेप्स" के नाम से जाना जाता है। 


एरावतेश्वर मन्दिर : जिसकी सीढ़ियों पर चलने उत्पन्न होता है मधुर संगीत
सिंगिंग स्टेप्स

मन्दिर शहर से ५ किमी की दूरी पर स्थित है। और किरायें की टैक्सी, ऑटो या राज्य द्वारा संचालित बसों के द्वारा आसानी से पहुँचा जा सकता है। किरायें की टैक्सी, ऑटो या राज्य द्वारा संचालित बसों के आसानी से पहुँचने का एक सुन्दर विकल्प है। 

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