रामेश्वरम में रामनाथस्वामी मन्दिर की महत्ता इतनी है कि इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से ही किये गए समस्त पापों का नाश हो जाता है तथा आवागमन के चक्र से मुक्ति मिल जाता है। रामनाथस्वामी मन्दिर बंगाल की खाड़ी और हिन्द महासागर से चारों ओर से घिरा हुआ, एक सुन्दर शंख आकार का द्वीप है। जिस पर पहुंचने के लिए बड़ी ही सुखद और सबसे प्राचीन समुद्र पर बने रेलवे ब्रिज की यात्रा रोमांच को और बढा देता है।
श्रीराम ने किया था यहाँ पर शिवलिंग को स्थापित
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भगवान राम द्वारा शिवलिंग बना कर की गयी भगवान शिव की पूजा |
एक दूसरी दंतकथा के अनुसार, लंका विजय उपरांत जब भगवान श्रीराम अपनी भार्या माता जानकी और सेना के साथ अयोध्या जा रहे थे। समुद्र के तट पर पहुंचने के बाद उन्होंने माता जानकी को वो स्थान भी दिखाया जहाँ उन्होंने सेतु निर्माण के पूर्व उन्होंने भगवान शिव की उपासना की थी। समुद्र तट पर प्रभु के दर्शन के लिए ऋषिमुनि पहुंचने लगे। चूंकि असुर राज रावण एक ब्राह्मण था तथा उसके वध के कारण श्री राम ब्रह्महत्या का पाप लगा था। जिससे मुक्ति का क्या उपाय है, पर राम उन ज्ञानी विद्वानों से चर्चा करने लगे। तब आये हुए ऋषि मुनियों ने विचार कर प्रभु से इस पाप से मुक्ति पाने हेतु शिवलिंग की स्थापना व पूजा करने की सलाह दी। तब श्री राम ने अपने विशेष सलाहकार भक्त शिरोमणि हनुमान जी को हिमालय जाकर वहा से भगवान शिव का ज्योर्तिस्वरूप शिवलिंग लाने का आदेश दिया परन्तु हनुमान जी द्वारा शिवलिंग लाने में विलम्ब जानकर तथा शुभ मुहूर्त को जाता देख कर माता सीता ने समुद्र के किनारे उपलब्ध बालू से बालू का एक शिवलिंग निर्मित किया, जिसे रामनाथस्वामी मन्दिर के गर्भगृह का शिवलिंग कहा जाता है। बाद में हनुमान जी के द्वारा लाये गए शिवलिंग को भी स्थपित कर उसकी पूजा की गयी।
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क्या है जो बनाता है रामनाथस्वामी मन्दिर को भव्य
प्राचीन साक्ष्य बताते है कि मन्दिर १२वीं शताब्दी तक एक फूस की झोपडी में बना हुआ था। पहली बार जिसकी चिनाई का कार्य श्रीलंका के पराक्रम बाहु के द्वारा करवाया गया था। जिसके बचें हुए हिस्सों को रामनाथपुरम के सेतुपति शासकों के द्वारा करवाया गया। जिसके बाद मन्दिर को त्रावणकोर, रामनाथपुरम, मैसूर और पुदुक्कोट्टई जैसे अनेक शाही परिवारों से संरक्षण प्राप्त हुआ।
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१५ एकड़ के विशाल क्षेत्र में विस्तारित रामनाथस्वामी मन्दिर द्रविण शैली के वास्तुज्ञान का अद्भुत नमूना है जिसके कई गुना विशाल गोपुरम, ४००० ग्रेनाइट स्तम्भों से युक्त गलियारा ग्रेनाइट जिसे उस काल में जब मंदिर का निर्माण किया गया, उस द्वीप पर कहि भी नहीं पाया जाता था, को अन्य स्थानों से लाया गया। मन्दिर के ऊँचे पत्थर के स्तम्भों पर की गयी बारीक नक्काशी इस रेत के द्वीप पर बने उत्कृष्ट कला के संग्रह को भव्यता प्रदान करती है।
रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग से कुछ रोचक तथ्य
- गर्भगृह में दो शिवलिंग हैं - प्रथम श्री सीता-राम द्वारा निर्मित रेत से, मुख्य देवता के रूप में निवास करते हुए, रामलिंगम और द्वितीय कैलाश से राम भक्त हनुमान द्वारा लाया गया, जिसे विश्वलिंगम कहा जाता है। राम ने निर्देश दिया था कि हनुमान द्वारा लाये गए विश्वलिंगम की पूजा पहले की जानी चाहिए यह परम्परा आज भी जारी हैं।
- प्रतिरात्रि भगवान विश्वलिंगम तथा देवी पर्वतवर्धिनी के पूजा स्वरुप को पालकी में बैठा कर भगवान रामलिंगम के दर्शन के लिए ले जाया जाता है। उनके दर्शन के बाद ही गर्भगृह के द्वार रात्रि विश्राम के लिए बन्द किये जाते है।
- पूरे भारत देश में स्थित सभी शिवलिंगो में यह सबसे दक्षिणी शिवलिंग है।
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- पूरे रामेश्वरम और उसके आसपास ६४ तीर्थम (पवित्र जल कुंड) है। स्कन्द पुराण के अनुसार इनमें से २४ तीर्थम प्रमुख हैं। २४ में से २२ तीर्थ मन्दिर के परिसर में ही स्थित है। जिनके जल में विशेष औषधीय महत्व है। आने वाले भक्त इन तीर्थो में अवश्य स्नान करते है।
- शंख आकार का द्वीप, जिसे पंबन द्वीप कहा जाता है। भारत के सबसे प्राचीन समुद्र पर बने रेलवे पुल से होकर जाना पड़ता है।
- रामनाथ स्वामी वैष्णव वाद और शैव वाद का संगम के रूप में जाना जाता है, क्योंकि मन्दिर जितना शिव भक्तो के मध्य प्रसिद्ध है उतना ही भगवान विष्णु के चार धामों में से एक होने के कारण विष्णु भक्तों के लिए पूजनीय है।
- राहु और केतु के प्रभाव से ग्रसित लोग मुक्ति के लिए यहाँ विशेष पूजा करते है।
- मन्दिर के भीतरी भाग में एक विशेष प्रकार का कला चिकना पत्थर लगा हुआ है। माना जाता है इसे लंका से लाया गया था।
- रेतीला इलाका होने के बावजूद यह बहुत हरा भरा है जिसमें तरह तरह की वनस्पतिया पाई जाती है। इसलिए इसे रामेश्वर का नन्दनवन कहा जाता है।
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रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की पूजा का समय
मन्दिर भक्तों के लिए प्रातः ५:०० बजे से अपराह्न १:०० बजे तक तथा शाम को ३:०० बजे अपराह्न से रात्रि ९:०० बजे तक खुला रहता है जिसमे निम्न प्रकार के अनुष्ठान किये जाते है -
- पल्लियाराय दीप आराधना - प्रातः ५:०० बजे
- स्पादिगालिंग दीप आराधना - प्रातः ५:१० बजे
- तिरुवनंतल दीप आराधना - प्रातः ५:४५ बजे
- विला पूजा - प्रातः ७:०० बजे
- कलासंथी पूजा - प्रातः १०:०० बजे
- उचिकाला पूजा - दोपहर १२:०० बजे
- सायरातचा पूजा - शाम ६:०० बजे
- अर्थजमा पूजा - रात्रि ८:४५ बजे
- पल्लियाराय पूजा - रात्रि ८:४५ बजे
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रामनाथस्वामी मन्दिर में मनाये जाने वाले मुख्य त्यौहार
प्रत्येक माह में पड़ने वाली शिवरात्रि तथा प्रदोष के अतरिक्त दीपावली, नवरात्रि, मकर संक्रांति और तमिल नव वर्ष मन्दिर में धूम धाम से मन्ये जाने वाले वार्षिक त्यौहार है। परन्तु मन्दिर में फरवरी-मार्च माह में पड़ने वाली महशिवरात्रि मन्दिर में मनाया जाने वाला सबसे प्रमुख समारोह है। जिसमे दूर दूर से शिव भक्त मन्दिर के भव्यतापूर्ण समारोह में समिलित होने के लिए पहुंचते है।
रामनाथस्वामी मन्दिर के निकटवर्ती आकर्षण
- देवी मन्दिर
- अग्नि तीर्थम
- रामसेतु या आदि सेतु ( एडम्स ब्रिज )
- धनुषकोडी
- गंधमादन पर्वत
- विल्लीरणि तीर्थ
- एकांत राम
- कोदण्डस्वामी मन्दिर
- सीता-कुंड
- अन्नाई इंदिरा गाँधी रोड ब्रिज
रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग कैसे पहुंचे ?
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