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भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग शिवलिंग |
भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से छठे स्थान पर पूजित भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग सहयाद्री पर्वत माला में, चन्द्रभागा और भीमा नदी के तट पर स्थित एक छोटे से गांव भोरगिरि के पास स्थित है। भीमाशंकर मन्दिर घने जंगल, नदी और पहाड़ से घिरे होने के कारण हिन्दू तीर्थयात्रियों के साथ ही साथ ट्रैकरों को भी अपनी ओर आकर्षित करता है। यह वह स्थान है जहां से भीमा नदी का उदगम होता है जो आगे जाकर कर्नाटक के रायचूर के पास कृष्णा नदी से मिल जाती है।
शहरी भीड़ भाड़ भरें जीवन से दूर सफेद बादलों के बीच भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग उन तीर्थयात्रियों के लिए एक स्वर्ग है, जो भगवान शिव में एकाकार हो जाने की इक्छा से भीमाशंकर मन्दिर आते है। भीमाशंकर वन और सहयाद्री पर्वत माला की सुन्दरता देख कर ऐसा प्रतीत होता है कि मानों स्वयं भगवान शिव इनकी, मौन रह कर निगरानी कर रहे हो।
क्यों प्रकट हुए महादेव इस स्थल पर
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग से जुडी दो कथाएँ है, जिसमे भगवान सदाशिव इस स्थल पर क्यों प्रकट हुए का वर्णन किया गया है। जिसकी कथायें इस प्रकार है -
सहयाद्री पर्वत माला पर डाकिनी के जंगलों में करकती के साथ असुर राज रावण के भाई कुम्भकरण का बेटा भीम निवास करता था। जब वह युवा हुआ तो उसे माँ करकती से ज्ञात हुआ की किस प्रकार से भगवान विष्णु के नर अवतार राम के द्वारा उसके पिता का वध किया गया था। जिसे जान कर उसमे क्रोध की भावना प्रबल हो गयी। भीम ने देवताओं से बदला लेने की प्रतिज्ञा की तथा इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसने ब्रह्मा जी की तपस्या करना प्रारम्भ कर दिया। उसकी तपस्या से प्रसन्न ब्रह्मा जी ने उसे अपार शक्ति का स्वामी होने का वरदान प्रदान किया। जिसे प्राप्त होने के बाद उसने सृष्टि में सभी विष्णु भक्तों और देवताओं को कष्ट देना प्रारम्भ कर दिया।
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सह्याद्री पर्वत |
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भीमाशंकर प्रवेश द्वार |
शिवपुराण में वर्णित एक कथा का वर्णन है की, तीन राक्षस - विद्युन्माली, तारकक्ष और वीर्यवान थे। जिन्हे एक साथ त्रिपुरासुर के नाम से जाना जाता था। उन्होंने ब्रह्मा की तपस्या की तथा वरदान में देवताओं द्वारा निर्मित तीन सुन्दर किलों के निर्माण का वरदान माँगा जो अजेय हो। भगवान ब्रह्मा जी ने उन्हें किलो का वरदान तो दिया परन्तु किलों की अजेयता के वरदान में संसोधन करते हुए कहा की इन किलों को एक ही तीर से एक बार में समाप्त किया जा सकेगा। तब उन्होंने तीन किले जो सोने, चांदी और लोहे से बने थे, में असुर सेना को निवास स्थल के रूप में रहने को दिए। यही तीन किले संयुक्त रूप से त्रिपुरा कहे जाते है। वरदान के मद में चूर त्रिपुरासुर अपनी आसुरी शक्ति से तीनों लोको में हाहाकार मचा दिया। सृष्टि की रक्षा के लिए भगवान शिव और माता पार्वती ने अर्ध-नारायण-नटेश्वर ( अर्धनारी रुप ) को धारण किया तथा पृथ्वी पर अवतरित हुए और त्रिपुरासुर संग त्रिपुरा नगरी का भी अंत कर दिया। सृष्टि के सुरक्षित होने पर देवताओं और ऋषि-मुनियों ने भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की तथा उन्हें उसी स्थान पर निवास करने की प्रार्थना की। जिस स्थान पर भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया था वह स्थान भीमाशंकर वन था। देवताओं और ऋषि-मुनियों के विनय पर भगवान शिव और माता पार्वती ने भीमाशंकर वन में लिंग रूप में निवास करने लगे। उनका यही लिंग रूप वर्तमान में भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है तथा युद्ध में हुई थकावट के परिणाम स्वरुप उनके शरीर से निकले वाले पसीने से एक नदी का निर्माण हुआ, जिसे भीमा नदी कहा जाता है।
इतिहास के पन्नों से भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग
भीमाशंकर मन्दिर भगवान विश्वकर्मा के वंशजों के अद्भुत वास्तुज्ञान का एक जीवंत उदाहरण है। मूल गर्भगृह १३वीं शताब्दी में बनाया गया था। एक स्थानीय कथा की अनुसार भीमाशंकर वन क्षेत्र में रहने वाले भतीराव लखधारा नाम के एक लकड़हारे की कुल्हाड़ी से एक पेड़ को चोट पड़ने पर जमींन से रक्त की धारा बहने लगी। जिसे देख आसपास के ग्रामीण वहां एकत्र हो गये तथा उन्होंने पेड़ पर दूघ चढ़ाना प्रारम्भ कर दिया। जिससे रक्त प्रवाह रूक गया। गांव के लोगो ने मिलकर उस स्थान पर मंदिर का निर्माण करवाया तथा मन्दिर का नाम भीमाशंकर मन्दिर रखा।
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स्वराज संस्थापक छत्रपति शिवाजी राजे तथा उनके बाद पेशवा बालाजी विश्वनाथ भट्ट और पेशवा रघुनाथ जी जैसी कई शिवभक्त हस्तियों ने इस स्थल के समय समय पर दौरे किये तथा मन्दिर के उत्थान में सहयोग प्रदान किया। पेशवाओं के दीवान नाना फडणवीस ने भीमाशंकर मन्दिर के भव्य शिखर का निर्माण करवाया।
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की विशेषता
शिवलिंग का ऊपरी हिस्सा एक संकीर्ण रेखा के द्वारा विभाजित है। इसके पीछे माना जाता है की भगवान शिव और माता पार्वती के द्वारा अर्धनारीश्वर रुप में अवतार लेने के कारण प्रत्येक आधा भाग भगवान शिव और माता पार्वती को चिन्हित करता है।
प्राचीनकाल से ही शिव लिंग से पानी की धारा प्रवाहित होती रहती है।
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग मन्दिर का आर्किटेक्चर
भीमाशंकर मन्दिर समुद्र तल से ३५०० फीट की ऊंचाई पर स्थित एक शांत सुरम्य शिव तीर्थ है। जिसके परिसर में पहुंचने के लिए २३० सीढिया चढ़ने की तपस्या करनी पड़ती है। जिसके निर्माण में नागर और हेमाडपंथी वास्तुशैली में किया गया है। भीमाशंकर मन्दिर का मुख्य द्वार ठोस लकड़ी का बना हुआ है। जिसमें की गयी सुन्दर नक्काशी में विभिन्न देवी देवताओं की आकृतिया बनी हुई है। मन्दिर के प्रवेश द्वार पर एक विशाल घंटा है, जिसे बाजीराव पेशवा प्रथम के छोटे भाई चिमाजी अप्पा ने १६ मई १७३९ में वसई किले से पुर्तगालियों के विरुद्ध युद्ध में विजय प्राप्त करने के बाद किले से प्राप्त की थी। मन्दिर प्रांगण में भगवान शिव के प्रमुख गण दो नन्दी की बड़ी प्रतिमायें देखने को मिलती है। मुख्य गर्भगृह के अतिरिक्त मन्दिर में एक सभामण्डप और कूर्ममंडप मौजूद है। भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग मुख्य गर्भगृह में जमीन की तुलना निचले स्तर पर होता है।
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इसके अतिरिक्त मन्दिर परिसर में भगवान शनि, नन्दी, श्री राम और दत्त के मन्दिर मौजूद है। भीमाशंकर मन्दिर के पीछे दो कुंड - मोक्षकुण्ड और ज्ञानकुण्ड स्थित है।
भीमाशंकर मन्दिर में दर्शन का समय व किये जाने वाले दैनिक अनुष्ठान व उनका समय
मन्दिर के पट प्रातः काल ४:३० बजे से रात्रि ९:३० बजे तक भक्तों के भगवान भीमाशंकर के ज्योतिर्लिंग दर्शन के लिए खुले रहते है। जिसमें अनेक प्रकार के दैनिक अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता है। दर्शन का समय इस प्रकार है -
नीजरूप दर्शन ५:०० बजे प्रातः से ५:३० बजे प्रातः तक
प्रातः दर्शन ४:३० बजे प्रातः से ३:१५ बजे दोपहर तक
सायं दर्शन ४:०० बजे सायं से ९:३० बजे रात्रि तक
श्रृंगार दर्शन ४:०० बजे सायं से ४:३० बजे सायं तक
रात्रि आरती ७:३० बजे सायं से ८:०० बजे रात्रि तक
इन दैनिक अनुष्ठानों के अतिरिक्त मन्दिर में निम्न अनुष्ठान किये जाते है -
रुद्राभिषेक - भक्त इस पूजा में भगवान शिव के रुद्र रूप को मान कर उनकी पूजा करते है। ऐसा माना जाता है कि इस पूजा के प्रभाव से आस पास के वातावरण में सात्विक ऊर्जा के संचार होने से ग्रहों के पड़ने वाले दुष्प्रभाव से मुक्ति मिलती है।
लघुरुद्र पूजा - इस पूजा के प्रभाव से स्वास्थ्य और धन सम्बन्धी समस्याओ से भगवान शिव मुक्ति प्रदान करते है।
भीमाशंकर मन्दिर में मनाये जाने वाले प्रमुख त्यौहार
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भीमाशंकर मन्दिर में निम्न पर्व बड़े ही हर्षोउल्लास के साथ मनाये जाये है, जिनमे आसपास के स्थानीय व देश के कोने कोने से आने वाले शिव भक्तों का ताँता इस ज्योतिर्लिंग में लगा रहता है।
- महाशिवरात्रि
- श्रावण मास
- कार्तिक पूर्णिमा - मान्यता है इस दिन भगवान शिव ने असुर त्रिपरासुर के आतंक से जगत को मुक्ति दिलाई थी।
- दिवाली
- प्रत्येक माह का सोमवार तथा प्रदोष
- प्रत्येक माह की शिवरात्रि
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग दर्शन के लिए कैसे पहुँचे ?
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग में दर्शन के लिए भक्त यूँ तो पुरे ही वर्ष आते रहते है परन्तु सर्दियों का समय यात्रा के लिए सबसे अनुकूल समय है। अगर आप पहली बार ट्रैकिंग करने जा रहे है तो इस समय बरसात से होने वाली फिसलन सबसे कम होती है। लेकिन अनुभवी ट्रैकरों को तो मानसून की चुनौतिया ही आनंद देती है। अतः यहाँ कैसे पंहुचा जाये आइये जानते है।
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