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श्री धुंडीराज विनायक

ज्ञान और बुद्धि, कार्यों के सफल होने के लिए तथा किसी भी शुभ कार्य के प्रारम्भ करने के पूर्व भगवान श्री गणेश की पूजा करने का प्रचलन प्राचीनकाल से ही हिन्दू धर्म में रहा है। उनके विभिन्न स्वरुप तथा नाम भक्तों के कष्टों का हरण करने में सक्षम होने के कारण आदिकाल से पूरे विश्व में पूजित है। मान्यता है भगवान श्री गणेश के द्वारा भक्तों की बाधाओं को दूर करने के लिए धुंडीराज स्वरुप में स्वयं को गुणितकर विभिन्न रूप धारण किये है। काशी जिसे भगवान शिव की प्रिय नगरी कहा जाता है बहुत कम ही लोग जानते है, कि भगवान विनायक के विभिन्न स्वरुप उस नगरी के  रक्षक है तथा उनका धुंडीराज विनायक स्वरुप इस सुन्दर नगरी के प्रमुख रक्षक है जिनका इक्छा के बिना इस नगरी में प्रवेश करना असम्भव है। धुंडीराज शब्द की उत्पति धुंध नाम के शब्द से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ है "ढूंढना या खोजना" भक्त द्वारा किये गए पुरुषार्थ के द्वारा उसके अंतिम लक्ष्य अर्थार्थ मुक्ति की कामना को प्राप्त कराना है। 


श्री धुंडीराज विनायक
श्री धुंडीराज विनायक

श्री धुंडीराज विनायक की कथा ( Story of Dhundi Ganapathi / Dhundiraj Vinayak )

स्कन्द पुराण के काशीखंड के अनुसार, माना जाता है एक बार मंदराचल पर्वत ने भगवान महादेव की कठोर तपस्या की, भगवान तो ठहरे भक्त के बस में, फिर क्या महादेव प्रसन्न हो गए और मंदराचल को दर्शन प्रदान कर उससे मनोवांछित वरदान मांगने को कह बैठे। मंदराचल ने भगवान से उसकी बर्फीले हिमशिखरों में निवास करने का वरदान माँगा। भोलेनाथ तो ठहरे भोलेनाथ मंदराचल को कैसे मना करते। भगवान शिव माता पार्वती के साथ काशी को छोड़ कर मंदराचल पर निवास करने चले गए। उनके पीछे पीछे तैंतीस कोटि देवता भी काशी का परित्याग करके चले गए। 

काशी में भगवान शिव के जाने के बाद वहां पर उथल पुथल मच गयी। तब सृष्टि रचयिता भगवान ब्रह्मा जी ने राजा दिवोदास से अनुनय की वह काशी को अपनी राजधानी बनाये जिससे काशी की धरती पर पुनः शान्ति की स्थापना हो सके। कुछ दिन तक तो भगवान शिव और माता पार्वती ने मंदराचल पर निवास किया परन्तु जल्द ही वह दोनों वहां के जीवन से उदासीन हो गए तथा उन्हें काशी की याद सताने लगी। किन्तु काशी पर तो दिवोदास का शासन तथा उन्होंने वहां धर्मपूर्ण शासन की स्थापना कर रखी थी।  

भगवान शिव ने उन्हें कशी से विस्थापित करने के लिए कूटनीति का प्रयोग किया तथा ६४ योगनियों को काशी के राजा दिवोदास को धर्म से भ्रष्ट करने के उद्देश्य से काशी भेजा। परन्तु काशी की सुंदरता ने उन्हें स्वर्ग में होने की अनुभूति मिलने के कारण वे अपने कार्य को भूल गयी, कार्य को पूर्ण न कर पाने के कारण, वे भगवान शिव का सामना कर पाने की हिम्मत न जुटा पाई तथा कशी में ही निवास करने लगी। इसके बाद प्रयास स्वरुप भगवान शिव ने सूर्य, ब्रह्मा तथा अपने गण कशी भेजें परन्तु वह सभी राजा दिवोदास को धर्म पतित नहीं कर पाए। 

श्री धुंडीराज विनायक
श्री धुंडीराज विनायक
अनेक प्रयासों के बाद भी जब कार्य सिद्ध नहीं हो पाया तो भगवान शिव ने बुद्धि के देवता और विग्नहर्ता भगवान विनायक से इस कार्य को पूर्ण करने की प्रार्थना की। भगवान गणेश एक बुद्धिमान वृद्ध ब्राह्मण का रूप लेकर जो भविष्यवाणी करते थे काशी पहुंचे। वहां उन्होंने देवी लीलावती ( राजा दिवोदास की वामभागी ) को अपनी बातों से प्रभावित कर लिया तथा राजा दिवोदास को स्वयं से मिलने के लिए विवश कर दिया। राजा दिवोदास भगवान गणेश रुपी उन वृद्ध ब्राह्मण  में आ गए तथा उन्होंने स्वीकार कर लिया की उनका इस जीवन से मोह समाप्त हो गया है। इस पर भगवान गणेश ने उन्हें बताया कि आज से १८वें दिन उत्तर से एक ज्ञानी व्यक्ति उनके राज्य में आएगा तथा उन्हें उनके द्वारा दिए गए परामर्श को मानना होगा जिससे उनका कल्याण होगा। 

१८वें दिन भगवान गणेश के कथनानुसार, एक वृद्ध ऋषि ने राजा दिवोदास के राज्य में प्रवेश किया तथा उन्होंने उन्हें बताया कि आपने भगवान शिव को काशी से परित्याग करने को मजबूर किया है इसलिए आपको उसका पाप लगा है जिसका विमोचन सिर्फ और सिर्फ भगवान शिव के शिवलिंग की स्थापना से ही हो सकता है तथा आज से सातवें दिन एक दिव्य रथ आएगा जो उन्हें स्वर्ग ले जायेगा। वृद्ध ऋषि और कोई नहीं भगवान विष्णु थे। जिनके मार्गदर्शन में राजा दिवोदास ने शिवलिंग की स्थापना की जिसे दिवोदेश्वर लिंग के नाम से जाना जाता है जिसके बाद राजा दिवोदास स्वर्ग को प्रस्थान कर गए। 

जिसके बाद भगवान शिव ने अपने समस्त गणो व देवताओं के साथ देव शिल्पी विश्वकर्मा द्वारा पुनः निर्मित काशी नगरी में प्रवेश किया। प्रवेश के बाद भगवान शिव ने धुंडीराज स्तोत्र के द्वारा प्रथम पूज्य भगवान गणेश की स्तुति की तथा भगवान गणेश को धुंडीराज रूप में काशी में निवास करने की प्रार्थना की तथा उन्हें वरदान दिया की काशी विश्वनाथ के दर्शन करने आने वाले उन सभी भक्तों को उनकी कृपा प्राप्त होगी जो उनके दर्शन के पूर्व धुंडीराज विनायक के दर्शन करेंगे तथा उनकी स्तुति करेंगे। जिसके बाद भगवान गणेश ५६ भिन्न रूपों में कशी में निवास करने लगे। 

धुंडीराज मन्दिर में दर्शन का समय ( Time of Vission of Dhundi Ganapathi )

भगवान धुंडीराज मन्दिर भक्तों के लिए पूरे दिन खुला रहता है। जिसमे भक्त भगवान गणेश को फूल और दूर्वा की माला के साथ भोग अर्पित कर सकते है। 

धुंडीराज मन्दिर का महत्व ( Importance of Dhundi Ganapathi )

🔱 मान्यता है जो भी व्यक्ति प्रतिदिन प्रातः भगवान धुंडिराज विनायक के दर्शन व पूजा करता है भगवान विनायक उसके जीवन से सभी विघ्न को दूर कर देते है तथा नियत समय पर तारक मन्त्र को कान में फूंक कर मोक्ष को प्रदान करते है। 

🔱 मान्यतानुसार यदि आप प्रतिदिन पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ धुंडी विनायक का नाम जपते है तो भगवान विनायक उसको समस्त सांसारिक सुख प्रदान करते है। 

🔱 मान्यतानुसार श्री धुंडी विनायक की दर्शन व पूजा के बिना काशी तीर्थ की यात्रा अधूरी रहती है। ऐसी हैं हमारे भगवान श्री धुंडीराज विनायक की महिमा। 

भगवान धुंडी विनायक के विभिन्न रूप करते है काशी की रक्षा ( Kashi is protected in different forms of Lord Dhundi Vinayak )

काशी भगवान शिव के त्रिशूल पर एक चक्र के रूप में स्थित है जिसकी सात परिधि है और वो भगवान गणेश के ५६ विभिन्न रूपों द्वारा रक्षित है। 

परिधि के पहले चक्र पर स्थित अर्का, दुर्गा, भीमाकंद, देहली, उद्दंडा, पासपानी, खारवा और सिद्धिविनायक उपस्थित है। 

दूसरे चक्र पर लम्बोदर, कुटदन्तः, सल्कटंकटा, कुष्मांडा, मुण्डविनायक, विकटद्विज, राजपुत्र और प्रणव स्थित है।

तीसरे चक्र पर वक्रतुण्ड, एकदन्त, त्रिमुख, पञ्चस्य, हेरम्बा, विघ्नराज, वरद और मोदकप्रिय उपस्थित है। 

चौथे चक्र पर स्थित अभयदा, सिंहतुंड, कुनीताक्ष, क्ष्रिपप्रसादन, चिंतामणि, दन्तहस्ता, पिन्कदिला और उद्दण्डमुण्डा रूप रक्षा करते है। 

पांचवे चक्र पर शूलदंत, कालिप्रिय, चतुरदन्त, दवितुण्डा, ज्येष्ठ, गजविनायक, कलाविनायक और नागेश काशी को सुरक्षित करते है। 

छठे चक्र पर स्थित मणिकर्ण, असविनायक, सृष्टि गणेश, यक्षविघ्नेष, गजकर्ण, चित्रघंटा, शूलजंघा और मित्रविनायक रूप रक्षा करते है।

सांतवे और अंतरिम चक्र पर मोड़ विनायक ( पांच गणेश का समूह - मोदा, प्रमोद, सुमुख, दुर्मुख और गणनाथ विनायक ) तथा ज्ञानविनायक, द्वारविघ्नसाऔर अविमुक्त विनायक इस सम्पूर्ण परिधि के रक्षक देव है। 

धुंडीराज विनायक मन्दिर का पता ( Address of Dhundi Vinayak Temple )

मन्दिर कशी विश्वनाथ मन्दिर के मुख्य द्वार क्रम संख्या १ पर स्थित है। जिसका पता इस प्रकार है -

8266+828, विश्वनाथ गली लाहोरी टोला वाराणसी उत्तर प्रदेश - २२१००१ 

धुंडीराज विनायक मन्दिर दर्शन के लिए कैसे पहुंचे ? ( How to Reach Dhundi Vinayak Temple )

हवाई मार्ग से ( By Air )

सबसे निकटतम हवाई अड्डा बाबतपुर में स्थित लाल बहादुर शास्त्री अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है जहां से श्री धुंडी विनायक मन्दिर की दूरी २५ किमी के लगभग है। निजी और सार्वजनिक किराये पर उपलब्ध टैक्सियां और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा संचालित बसें सीधे मन्दिर तक की सेवा प्रदान करती है जो मन्दिर तक पहुंचने का सबसे अच्छा साधन है।

रेल मार्ग से ( By Train )

श्री धुंडी विनायक मन्दिर, वाराणसी रेलवे स्टेशन द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है और मन्दिर कई रेलवे स्टेशनों के करीब है। वाराणसी सिटी स्टेशन सिर्फ ३.६ किमी दूर है और वाराणसी जंक्शन मुख्य मन्दिर से लगभग 6 किमी दूर है। यह सभी स्टेशन भारत के प्रमुख महानगरों से अच्छी तरह से जुड़े हुए हैं। इसलिए आप बिना किसी परेशानी के आसानी से अपने गंतव्य तक पहुंच सकते हैं। 

सड़क मार्ग से ( By Road )

उत्तर प्रदेश के सभी प्रमुख शहरों और कस्बों के लिए लगातार निजी और सार्वजनिक बसों और अन्य सड़क परिवहन सेवाओं के साथ, वाराणसी में एक विस्तृत सड़क नेटवर्क है। आप विश्वनाथ गली के साथ ही साथ ऑटो रिक्शा या टैक्सी द्वारा प्रसिद्ध श्री धुंडी विनायक मन्दिर तक पहुँच सकते हैं। भारत के प्रसिद्ध गणेश मंदिर 

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