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श्री दौल गोविंदा मन्दिर Image Source - google by हिन्दू टेम्पल्स ऑफ़ इंडिया |
श्री दौल गोविंदा मन्दिर गुवाहाटी में चन्द्रभारती पर्वत की तलहटी में ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तरी तट पर स्थित भगवान श्री कृष्ण के असम में स्थित सबसे प्रतिष्ठित देव स्थलों में से एक है। श्री दौल गोविंदा मन्दिर, ऐतिहासिक रूप से दो शताब्दी से भी अधिक पुराना है। मन्दिर में आने वाले वैष्णव सम्प्रदाय, हिन्दू और सभी जाति वर्ग के लोगो द्वारा माना जाता है, यदि आप शुद्ध मन से भगवान की पूजा करते है तो वह आपकी हर मनोकामना को पूरा करते है।
श्री दौल गोविंदा मन्दिर कैसे पहुंचे ?
नौका द्वारा
श्री दौल गोविंदा मन्दिर, आने के लिए तीर्थयात्री मुख्यतः जल मार्ग का चुनाव करते है क्योंकि इंजन फिटेड छोटे जलयानों के द्वारा यात्री एक रोमांचक यात्रा का आनन्द लेना चाहते है। इसके लिए ब्रह्मपुत्र नदी के राजद्वार घाट और मध्यम खंडा घाट के लिए गुवाहाटी और उत्तरी गुवाहाटी से नियमित समय पर प्रतिदिन सोमवार से रविवार तक नावें उपलब्ध है।
रेल द्वारा
मन्दिर के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन गुवाहाटी रेलवे स्टेशन जहां से २६ किमी लगभग और कामाख्या रेलवे स्टेशन है, जहा से मन्दिर की दूरी २० किमी है। स्टेशन से बाहर निकलकर आप किराये पर मिलने वाली टैक्सी या स्थानीय राजकीय बसों के द्वारा मन्दिर पहुंच सकते है।
सड़क द्वारा
मन्दिर तक पहुंचने के लिए मालीगांव चरियाली और जलुकबाड़ी से उपलब्ध ऑटो ले सकते है। मन्दिर तक पहुंचने के लिए शहर के भीतर ऑटो रिक्शा और किराये पर कैब उपलब्ध है।
हवाई मार्ग से
गुवाहाटी का प्रमुख हवाई अड्डा गोपीनाथ बोरदोलोई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, जिससे श्री दौल गोविंदा मन्दिर की दूरी लगभग ३० किमी की दूरी पर स्थित है। गोपीनाथ बोरदोलोई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा देश के सभी प्रमुख हवाई अड्डों से नियमित फ्लाइट के द्वारा जुड़ा हुआ है। मन्दिर तक पहुंचने के लिए हवाई अड्डे के बाहर से ऑटो रिक्शा और किराये पर कैब उपलब्ध है।
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मन्दिर प्रवेश द्वार |
मन्दिर कार्यों का प्रबंध
महासभा द्वारा गठित एक २७ सदस्यीय समिति तीन वर्षों के लिए श्री दौल गोविंदा मन्दिर का प्रबंधन कार्य करती है। जिसमें चार सचिव होते है - जिसमे दो मन्दिर का प्रशासन देखते है और जबकि दो वित्तीय प्रबंधन के कार्यों को देखते है। चारों सचिवों के कर्तव्य क्षेत्र भिन्न भिन्न है, जिसमे मन्दिर के दैनिक कार्यों से सम्बंधित मामलों की देखभाल करनी होती है। इस समिति का धेय्य वाक्य "स्वच्छता ईश्वरीयता के बगल में है" इसलिए मन्दिर की प्रबन्धन समिति मन्दिर परिसर को स्वच्छ रखने में अपनी सम्पूर्ण शक्ति प्रयोग करता है तथा आने वाले तिर्थयात्रियों से मन्दिर को स्वच्छ रखने के लिए भी प्रेरित करती है।
श्री दौल गोविंदा मन्दिर में की जाने वाली दैनिक पूजा
श्री दौल गोविंदा मन्दिर के गर्भगृह के द्वार प्रतिदिन प्रातः ७:३० बजे पुजारियों द्वारा खोले जाते है। जिसके बाद विग्रह को स्न्नान आदि कराने के बाद भगवान का अभिषेक किया जाता है। इसके बाद लगभग ८:३० बजे प्रातः मन्दिर भक्तों के दर्शन हेतु खोल दिया जाता है। आने वाले सभी श्रदालु हाथों में मिट्टी के दिए और धूप लिए बेंटी प्रजालन गृह में प्रवेश करते है। जहां दिया अर्पण करने के बाद भक्त दौल गोविंदा के दर्शन करने के लिए जाते थे। जिसके बाद वे एक खुले स्थल पर एकत्र होते है। अपराह्न में पुजारी भगवान को भोग, जो की दूध में पकाये गए चावल जिसमे मेवे पड़े होते है अर्पण किया जाता है। उस समय एक विशेष प्रकार की शंक्वाकार घंटी ( डाबा ) और शंख का नाद किया जाता था। भोग लगाने के समय गर्भ गृह के द्वार कुछ समय के लिए बंद कर दिए जाते है। अनुष्ठान के पश्च्यात मन्दिर प्रबंधन के कार्यकर्त्ता खुले स्थल पर जहां भक्त दौल गोविंदा के दर्शन के बाद एकत्र होते है, में इस प्रसाद का वितरण करते है। भक्तगण जो मन्दिर में अपनी सेवा प्रदान करते है उन्हें भोग अपने परिवार और मित्रो के लिए घर ले जाने की भी अनुमति प्रबन्धन समिति द्वारा दी गयी है। भोग के वितरण के बाद मन्दिर के पट सूर्यास्त तक खुले रहते है जिससे दूर से आने वाले भक्त दौल गोविंदा के दर्शन से वंचित न रहने पाए।
श्री दौल गोविंदा मन्दिर के वार्षिक समारोह
असमिया माह के पहले दिन (अप्रैल माह ) भक्तों द्वारा प्राचीन परम्परा का पालन करते हुए पवित्र नदी ब्रह्मपुत्र नदी में स्न्नान करते है, जिसे बोहागा कहा जाता है। इस दिन पूरा मन्दिर परिसर नाम कीर्तन से गुंजायमान रहता है। इसी माह (अप्रैल - मई ) में अक्षय तृतीया के दिन २०० वर्ष पूर्व मणिकूट (गर्भगृह ) को खोला गया था। इसलिए इस दिन को "प्रतिष्ठा दिवस" के रूप में मनाया जाता है। इस दिन संध्या काल में गुरुजन भागवत पुराण के माध्यम से अध्यात्म के विभिन्न पहलुओं को समझाते व उसकी विवेचना करते है इसलिए इस दिन को भागवत पथ के नाम से भी जाना जाता है। जो अप्रैल मई माह का मुख्य आकर्षण है।
सितम्बर और अक्टूबर माह में कृष्ण जन्माष्टमी मन्दिर में मनाया जाने वाला सबसे मुख्य उत्सव है। जिसमे दूर दूर से भक्त मन्दिर में दर्शन के लिए आते है। इस दिन यहाँ आने वाले भक्त पूरी रात जाग कर भगवान विष्णु की स्तुति में भक्ति गीत गाते है। इसी माह में कटि बिहू आहिना और कार्तिक की संक्रान्ति के दिन संध्या में पूजा और नाम कीर्तन के साथ भगवान विष्णु को आकाश दीप की सेवा दी जाती है।
माघी पूर्णमासी के दिन रात्रि में मन्दिर का दृश्य अकल्पनीय होता है जिसमें कई हजार भक्त ( स्त्री पुरुष और बच्चे ) मंदिर में एकत्र होते है और प्रार्थना करते है। इस दिन भक्तों में अनुशाषन देखने योग्य होता है। इस दिन कुन्टलो की मात्रा में भोग बनाया और वितरित किया जाता है।
इन सब विशेष दिनों में मनाये जाने वाले समारोह के अतिरिक्त मन्दिर में फाल्गुन माह में मनाया जाने वाला होली का उत्सव सबसे प्रमुख रूप से प्रचलित है। जो ५ दिन तक चलता है। जिसका प्रारम्भ मेष दाह (असुर मेघासुर के दहन ) के साथ प्रारम्भ होता है। पांचवे दिन देवी घुनुशा के घर वापसी के साथ पर्व का समापन होता है।
श्री दौल गोविंदा मन्दिर का पता
श्री दौल गोविंदा मन्दिर के सम्बन्ध में किसी भी जानकारी के लिए निम्न पते पर सम्पर्क किया जा सकता है -
राजाद्वार, उत्तरी गुवाहाटी जिला कामरूप गुवाहाटी असम -७८१०३०
1 टिप्पणियाँ
Very nice👍
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