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मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग

 सर्वं भ्रामराम्बिका समीथा मल्लिकार्जुन चरणरविन्दरपनामस्तु।।

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग, आंध्र प्रदेश के कुरनूल जिले में कृष्णा नदी के तट पर श्रीशैलम क्षेत्र के प्राकृतिक वातावरण में स्थित भगवान सदा शिव का तीनो लोकों में प्रसिद्ध दूसरा ज्योतिर्लिंग है। श्रीशैलम में स्थित यह क्षेत्र उन पूज्य तीन पवित्र स्थलों में से एक है जहां एक ज्योतिर्लिंग व शक्तिपीठ एक ही साथ स्थित हो।भ्रामराम्बा मल्लिकार्जुन स्वामी मन्दिर श्रीशैलम क्षेत्र में स्थित ऐसा ही हिन्दू तीर्थ है। जिसकी मुख्य शोभा माता पार्वती ( मल्लिका ) और भगवान शिव ( अर्जुन ) है। 

श्रीशैलेश्वरलिंगातुल्यमालम लिंगम न भुमदले। भृहमंडप्रलयेपि तस्यविल्या नास्थिति वेदोक्तयाः।। 
तस्माथ तदभजनेन मुक्तिरखिलतेहि प्राप्या न स दुर्लभा। तत्त्वुज निरात्यस्य दुर्लभटटम किंवा जगसमांडले।।

विश्व के माता और पिता, भगवान शिव और देवी पार्वती में निहित सभी शक्तियो के साथ, पृथ्वी के कैलाश, दुनिया के केन्द्र, वेदों के घर, उपासना केंद्र, उनके नये घर, श्री शैल क्षेत्र की ओर यात्रा का आरम्भ करते है क्योंकि ऋषि मुनियों और वेदों ने भी इसकी पुष्टि की है की श्रीशैल के जैसा लिंग पूरे भूमण्डल में नहीं है। भगवान शिव का धाम जो सृष्टि के प्रारम्भ में भी था और सृष्टि के अंत में भी रहेगा, वह सिर्फ श्रीशैलम क्षेत्र है। 

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग से जुडी दंतकथा

बात उस समय की है, जब कार्तिकेय और गणेश के मध्य विवाह को लेकर झगड़ा होने लगा की पहले विवाह कौन करेगा ? जब बहुत देर तक दोनों किसी परिणाम तक नहीं पहुंच पायें तो जैसा सभी बच्चे करते है जब उन्हें किसी समस्या का समाधान प्राप्त नहीं होता है तो वे समाधान की चाह में अपने माता-पिता और गुरु का सहारा लेते है। ऐसी ही इच्छा से दोनों भगवान शिव और माता पार्वती के पास कैलाश पहुंचे। उनसे भगवान शिव और माता पार्वती ने कहा तुम दोनों में जो कोई भी पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके वापस इसी स्थल पर आएगा। उसका विवाह पहले होगा। शर्त को सुनते ही षड्मुख कार्तिकेय जी अपने वाहन मोर के साथ पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए दौड़ पड़े। वही स्थूलकाय भगवान श्री गणेश और उनका छोटा सा वाहन मूषक, धरती की परिक्रमा कैसे कर सकता था। भगवान श्री गणेश भले ही शरीर से स्थूल हो पर है तो बुद्धि के सागर ही। उन्होंने स्वयं कुछ सोच विचार किया और माता पार्वती व पिता देवादिदेव महादेव से एक आसन पर विराजित होने की प्रार्थना की। उन दोनों के आसन पर विराजित होने के बाद श्री गणेश ने उनकी सात परिक्रमा की तथा विधिवत पूजन किया। जिससे उन्हें परिक्रमा के फल की प्राप्ति हुई। 

उनके चातुर्य से प्रसन्न महादेव और देवी पार्वती ने गणेश जी का विवाह विश्वरुप प्रजापति की पुत्रियों रिद्धि और सिद्धि के साथ करा दिया। जब कार्तिकेय परिक्रमा करके वापस आये तो उन्हें घटित सभी घटना का ज्ञान देवर्षि नारद के मुख से हुआ। जिसे जानकर वे अत्यंत क्रोधित हुए परन्तु शिष्टाचार का पालन करते हुए, उन्होंने अपने माता पिता के चरण स्पर्श किये और वहा से क्रौंच पर्वत पर चले गए। उन्हें वापस लाने के लिए महादेव और देवी पार्वती ने देवर्षि नारद को क्रौंच पर्वत पर भेजा। नाना प्रकार के प्रयासों के बाद भी कुमार कार्तिकेय वापस आने को तैयार नहीं हुए। तो माता पार्वती भगवान शिव को लेकर क्रौंच पर्वत पर अपने पुत्र से मिलने आयी। किन्तु उनके आने का समाचार जान क्रोधित कार्तिकेय अपने निवास स्थल से ३ योजन ( ३६ किमी )दूर चले गए। 

पुत्र से मिलने की लालसा से उन दोनों ने ज्योति स्वरुप धारण कर उसी स्थल पर विराजित हो गए। क्यूंकि देवी पार्वती को मल्लिका और भगवान शिव को अर्जुन भी कहा जाता है। इसलिए इस ज्योतिस्वरूप शिवलिंग का नाम मल्लिकार्जुन पड़ा। सबसे दिलचस्प बात है की स्थानीय मान्यता है की अपने पुत्र से मिलने के लिए आज भी प्रत्येक अमावस्या को भगवान शिव और पूर्णिमा पर माता पार्वती यहाँ आते है। 

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शन का महत्व 

एक बार देवी पार्वती ने भगवान शिव से प्रश्न किया - हे नाथ! आपने इस सृष्टि का सृजन किया और स्वयं के निवास के लिए कैलाश का चयन किया। परन्तु कैलाश के अतिरिक्त सबसे वांछित स्थल कौन सा है? जहां वह निवास करना पसन्द करेंगे। तो भगवान शिव ने माता पार्वती को सुरम्य प्रकृति के बीच, श्री चक्र के अवतार पवित्र श्री शैलम के विषय में बताया। इसलिए इस स्थल को दक्षिण का कैलाश कहा जाता है। जिसकी महिमा का वर्णन अनेक धर्मग्रंथो में बताया गया है। जो इस प्रकार है -

  • श्रीशैलम के दर्शन करने से अर्जित पुण्य ब्रह्माण्ड की सभी दिव्य शक्तियों की पूजा करने के समतुल्य है।
  • श्रीमद्भागवतगीता में वर्णन किया गया है कि शैल पर्वत पर भगवान शिव का पूजन करने से अश्वमेध यज्ञ करने का फल प्राप्त होता है। 
  • श्रीशैल के शिखर के दर्शन मात्र करने से भक्तों के सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिल जाती है और अनन्त सुखों की प्राप्ति होती है। 
  • श्रीशैल पर्वत पर भगवान शिव का पूजन करने से आवागमन के बंधन से मुक्ति मिल जाती है। 

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का आर्किटेक्चर

मन्दिर गोपुरम
मन्दिर गोपुरम 

मल्लिकार्जुन मन्दिर का विस्तार २ हेक्टयेर भूमि में है। मन्दिर द्रविड़ शैली की स्थापत्य शैली और मूर्तिकला के लिए प्रसिद्ध है। मन्दिर में प्रवेश के लिए एक विशाल राजगोपुरम ( प्रवेश द्वार ) का निर्माण किया गया है। मन्दिर के मुख्य देवता भगवान शिव और पार्वती का समलित स्वरुप ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजित है। इसके अतिरिक्त परिसर में सहस्त्र लिंग (१००० शिवलिंग ) भी है। परिसर में अन्य कई मन्दिर व मण्डप ( हॉल ) है। मुख्य मण्डप का निर्माण विजयनगर शासन काल के समय का है। परिसर में उपस्थित मिरर मण्डप ( मिरर हाल ) में भगवान शिव के नटराज स्वरुप की अनेक छवि दर्शित होती है। मन्दिर का राजसी स्तम्भ जिसमे सुन्दर नक्काशी की गयी है अत्यंत विशाल व दर्शनीय है। मन्दिर का मुख्य गर्भगृह छोटा है। मन्दिर की दीवारों पर विभिन्न प्रकार की नक्काशी और आसपास किये गए निर्माणों में विभिन्न शाही परिवारों के योगदान को देख सकते है। 

मल्लिकार्जुन मन्दिर में दर्शन का समय 

मन्दिर भक्तों के लिए प्रतिदिन प्रातः ४:३० बजे से दोपहर ३:३० बजे तक और सायं ४:३० बजे से रात्रि १०:०० बजे तक खुला रहता है। जिसमे दैनिक पूजा व अनुष्ठान किये जाते है। सोमवार के दिन मन्दिर भक्तों के दर्शन के लिए शिवलिंग के अभिषेक के बाद  ५:३० बजे खोला जाता है। 

मल्लिकार्जुन मन्दिर में दर्शन के लिए आने का सबसे अच्छा समय 

यूँ तो मन्दिर आने वाले सभी भक्तों का पूरे वर्ष ही मेजबानी करता है परन्तु सर्दियों का समय यानी अक्टूबर से फरवरी का समय मन्दिर में आने का सबसे बढ़िया समय है। इसके अतिरिक्त सावन का माह, महाशिवरात्रि और प्रदोष के दिनों में मन्दिर भक्तों से भर जाता है क्यूंकि इन दिनों में ज्योतिर्लिंग पूजा का विशेष महत्व है। 

मल्लिकार्जुन देवस्थान में क्या करें और क्या न करें 

क्या करें

  1. गर्भगृह में दर्शन के समय शांति बनाये रखें। 
  2. पंचक्षारी मंत्र का जप कतार में ही करे। 
  3. वाहनों को निर्धारित पार्किंग स्थल पर ही पार्क करे। 
  4. अपना प्रसाद केवल हुंडई में ही रखें। 
  5. मन्दिर कार्यकर्ताओं द्वारा दिए गए निर्देश का पालन करे तथा दर्शन के लिए अपनी बारी का इंतजार करे। 

क्या न करें  

  1. मन्दिर परिसर में किसी भी प्रकार के जूते, टोपी या पगड़ी न पहने। 
  2. मन्दिर में फोटो लेना या वीडियो बनाना पूर्णतया वर्जित है अतः उसका प्रयास न करें। 
  3. देवस्थानम द्वारा दिए गए प्रसाद को व्यर्थ न करें। 
  4. दर्शन, प्रसादम और आवास के लिए दलालों से सम्पर्क न करे। 
  5. मन्दिर में किसी भी प्रकार का कूड़ा न फैलाये तथा इधर उधर न थूकें। 
  6. आस पास मौजूद बंदरो को किसी भी प्रकार की वस्तु न दे। 

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग दर्शन के लिए कैसे पहुंचे ?

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग

श्रीशैलम के लिए प्रमुख हवाईअड्डों से सीधे उड़ान की सुविधा उपलब्ध है। परन्तु यह उड़ाने नियमित नहीं है। सबसे निकटतम हवाई अड्डा बेगमपेट हवाई अड्डा है। जहा से आप राजकीय वाहन या टैक्सी आदि के द्वारा मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए पहुँच सकते है। 

 
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग

श्रीशैलम में खुद का कोई भी रेलवे स्टेशन न होने के कारण सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन मरकापुर रेलवे स्टेशन है। जहा से मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की दूरी ८५ किमी के आसपास है। स्थानीय वाहनों की सुलभता आपको आसानी से ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने के उद्देश्य में सहायक बनती है। 
 
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग

नेल्लोर और विशाखापत्तनम से दिन और रात को नियमित बस सेवा का संचालन श्री शैलम क्षेत्र के लिए  किया जाता है।  नियमित बस सेवा और कैब और टैक्सी की उपलब्धता इस यात्रा को अत्यंत रोचक बना देती है। श्री शैलम बस स्टेशन सबसे निकटतम बस स्टेशन है जहा से ज्योतिर्लिंग की दूरी १ किमी से भी कम है जिसे पैदल ही तय किया जा सकता है। 

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