भैरवी मन्दिर, भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम के तेजपुर के बाहरी क्षेत्र में स्थित सोनितपुर नामक स्थान पर स्थित आदिशक्ति माँ दुर्गा की महाविद्याओं में से एक भगवती भैरवी का मंदिर है। जिसे स्थानीय जनजातियों के द्वारा भैरवी देवालय या मैथन के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है। मन्दिर की पृष्ठभूमि से ब्रह्मपुत्र नदी पर बनाया गया कोलिया भोमोरा सेतु का सुन्दर दृश्य परिलक्षित होता है।
भैरवी मन्दिर से जुडी हुई किंवदंती
धार्मिक ग्रन्थों में वर्णन किया गया है, की राजा बाणासुर की पुत्री उषा माँ दुर्गा की भक्त थी। जिस स्थल पर आज मन्दिर बना हुआ है, वहां वह देवी की पूजा किया करती थी। बेटी उषा के द्वारा की जाने वाली पूजा उसके पिता को पसंद नहीं थी। अतः वह उसे पूजा करने से मना किया करता था। जिस पर वह अपने पिता का विरोध करते हुए कहने लगी की उन्हें भी यदि मोक्ष चाहिए तो उन्हें सभी बुराइयों का त्याग करके देवी की उपासना करनी चाहिए अन्यथा वह अपने पिता को दण्ड देगी। बाणानुसार ने उषा की चेतावनी का कोई ध्यान नहीं दिया और अपने दुष्ट कर्मो को जारी रखा। एक दिन बाणासुर के कृत्यों से क्रोधित उषा ने अपनी तलवार से बाणासुर का हाथ काट दिया लेकिन खून की एक भी बूंद जमीं पर नहीं गिरी। सभी लोग बहुत चकित हुए। इस पर उषा ने बताया की देवी की ओर से उन्हें दिया गया संकेत है। इस घटना के बाद बाणासुर देवी दुर्गा का बहुत बड़ा भक्त बन गया तथा उसी ने देवी के मन्दिर का निर्माण कराया।
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देवी भैरवी |
भैरवी मन्दिर का इतिहास
मन्दिर की स्थापना के विषय में अभी तक कोई प्रमाणिक अभिलेख अभी तक उपलब्ध नहीं है। ज्ञातव्य से ज्ञात होता है की ५००० ईसा पूर्व द्वापर युग के समय इस मन्दिर की पहली उपासिका उषा ही थी। लोकप्रिय बामुनी हिल्स मन्दिर के निकट कुछ किलोमीटर पर ही स्थित है। यहाँ पर स्थित बाणासुर के महल के प्राचीन खंडहर देखे जा सकते है।
भैरवी मन्दिर की वास्तुकला
भैरवी मंदिर का निर्माण असमिया शैली में किया गया है। जिसमें निर्मित भवन के आंतरिक हिस्से को गढ़ी हुई मूर्तियों से सजाया जाता है। मन्दिर में की गयी नक्काशी अत्यधिक सुन्दर हैं। जिसको पुरात्तवविद्यो के अन्वेषण से ज्ञात होता है की नक्काशी ९वीं शताब्दी की है। मन्दिर परिसर में अनेक शिलालेख जिन पर संस्कृत भाषा में लिखा हुआ है भी देखने को मिलते है।
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कुछ काल पूर्व आये हुए भूकम्प के प्रभाव स्वरुप मन्दिर को भी अत्यधिक नुकसान हुआ था। जिसका प्रमाण मंदिर का एक दिशा में झुका हुआ होना है। उस समय पास की एक इमारत की दूसरी और तीसरी मंजिल के पश्चिम और दक्षिण की ओर नुकसान हुआ जिससे मन्दिर के खम्भों और छत को काफी नुकसान हुआ।
भैरवी मन्दिर का प्रबंधन
मन्दिर बोरठाकुर परिवार से सम्बंधित है किन्तु आधुनिक समय में जिला उपयुक्त के कार्यालय के माध्यम से की जाती है। पूजा के दौरान चढ़ाये जाने वाले दीपक, मिठाई और फल फूल आदि खरीदने के लिए कई सुविधाये है। इन प्रसादों के अतिरिक्त मन्दिर में बकरियों, बत्तखों और कबूतरों की बलि देने का भी प्रावधान है। मन्दिर प्रातः ६:०० बजे से अपराह्न ११:०० बजे तक तथा सायं ४:०० बजे से ८:३० बजे तक दर्शनाथियों के लिए खुला रहता है।
भैरवी मन्दिर में मनाया जाने वाले घार्मिक उत्सव व मन्दिर का महत्व
यूँ तो पुरे असम में ही वैष्णव हिन्दुओं का दबदबा है। किन्तु इस क्षेत्र में निवास करने वाले बंगाली हिन्दू समाज के लिए हमेशा की तरह दुर्गा पूजा का अपना ही महत्व है। मन्दिर के मुख्य वार्षिक पर्वो में दुर्गा पूजा जिसे बड़े ही धूम धाम से शाक्त सम्प्रदाय के असमिया हिन्दुओं की बड़ी संख्या में उपस्थिति में मनाया जाता है। शाक्त सम्प्रदाय का मन्ना है की यहाँ जो भी भक्त देवी के दर्शन करने के लिए आते है उन्हें पूजा के फलस्वरुप देवी से निम्न चीजों के आशीर्वाद प्राप्त होते है -
- बुराई से सुरक्षा की भावना को बल मिलता है।
- मोक्ष के द्वार खुलते है।
- अहंकार का नाश होता है तथा निर्मल ज्ञान की प्राप्ति होती है।
- किसी भी बंधन से मुक्ति मिल जाती है।
भैरवी मन्दिर में दर्शन के लिए कैसे पहुंचे ?
हवाई मार्ग से मन्दिर
सबसे निकटतम हवाई अड्डा तेजपुर हवाई अड्डा है। जहा से मन्दिर की दूरी १४ किमी है। हवाई अड्डे से बाहर निकल कर आप मिलने वाली टैक्सी या बस ले सकते है।
रेल मार्ग से मन्दिर
सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन देकारगांव रेलवे स्टेशन है। जहा से मन्दिर की दूरी ११ किमी है। रेलवे स्टेशन से बाहर निकल कर आप मिलने वाली टैक्सी या बस ले सकते है।
सड़कमार्ग से मन्दिर
सबसे निकटतम बस स्टॉप तेजपुर बस स्टॉप है। जहा से मन्दिर की दूरी ३ किमी है। बाहर निकल कर आप मिलने वाली टैक्सी ले सकते है। देवी मंदिर
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