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नीलेश्वर मुथप्पन मदप्पुरा कासरगोड

नीलेश्वर मुथप्पन मदप्पुरा कासरगोड जिले के नीलेश्वर नाम के शहर में स्थित भगवान श्री मुथप्पन को समर्पित एक हिन्दू देव स्थल है। श्री मुथप्पन उत्तरी केरल के कासरगोड के सबसे प्रसिद्ध और लोकप्रिय स्थानीय देवता है।


नीलेश्वर मुथप्पन मदप्पुरा कासरगोड
थेय्यम

स्थानीय मान्यता के अनुसार श्री मुथप्पन को दो दिव्य रूपों - तिरुवप्पन और वेल्लटम का धरती पर अवतार माना  जाता है। मूल रूप से यह दिव्य आकृतियाँ उत्तरी मालाबार क्षेत्र के तेय्यामकलियाठ्ठम से अलग नहीं है। यद्यपि श्री मुथप्पन एक ऐसे देवता का है, जिसमे श्री विष्णु ( मछली की आकृति के मुकुट के साथ ) और शिव ( अर्धचन्द्राकार मुकुट ) का प्रतिनिधित्व करता है। 

श्री मुथप्पन एक विचारधारा 

प्रचीन काल में धर्म के कर्मकाण्ड के रूप में उसका मूल ध्यान और यज्ञ थे। किन्तु कलियुग के आगमन के साथ मन्दिर निर्माण और चित्र निर्माण पूजा के मूल तत्व बन गए। थेय्यम एक ऐसा विचार था जिसकी जड़ें कही न कही द्रविण संस्कृति से जुडी हुई है। थेय्यम पूजा में एक सर्वोत्कृष्टता है क्योंकि मूर्तिपूजा की तुलना में उपासना का एक सूक्ष्म तरीका है। जिसमें अपने मन में भगवान की कल्पना करते है। थेय्यम अब किसी धर्म, जाति या किसी विशेष ऋतू से हट कर सभी की आस्था का एक मुख्य अंग बन गया है। जो उस समय का एक महत्वपूर्ण परिवर्तन है। जब हर समुदाय अपने-अपने देवी देवताओं को स्थापित करने विवश कर रहा था। इसी श्रेणी में मुथप्पन प्रमुख है। जो कलियुग में भगवान शिव और विष्णु के अवतार है। मुथप्पन  को विभिन्न नामों से जाना जाता है, जैसे  - थिरुवप्पन, वेल्लटम, चेरिया मुथप्पन, वालिया मुथप्पन, अम्बाला मुथप्पन, पुरलीमाला मुथप्पन आदि। श्री मुथप्पन का इतिहास, उस कालअवधि के सामाजिक और सांस्कृतिक लोकाचारों से परे एक ऐसी आध्यात्मिक स्वरुप को वर्णित करती है जिसको किसी भी किंवदंती और महाकाव्यों में स्थान नहीं प्राप्त हुआ 


परशुराम ने केरल में द्रविड़ों पर आर्यो के प्रभुत्व के साथ ही साथ मन्दिरों की सम्पति और पूजा का अधिकार ब्राह्मणों को दे दिया। जिसने निचली जाती के साथ ही साथ पिछड़े लोगो को भी मन्दिर के कर्तव्यों के हटा दिया गया। इस घटना ने समाज में सामंती प्रथा, गुलामी और छुआछूत के पालन से एक पृथक मजदूर वर्ग का निर्माण किया तथा साथ ही साथ उपदलो और गरीब जरूरतमंद लोगो का जीवन तनावपूर्ण कर दिया। स्थानीय किंवदंती की माने तो श्री मुथप्पन का जन्म ऐसे ही समय में हुआ जो श्रीमद्भागवत में वर्णित श्लोक की सत्यता को सिद्ध करती है। श्री मुथप्पन ऐसे ही लोगो के लिए मुक्ति का मार्ग बने। मुथप्पन के पूजा स्थल को मदप्पुरा कहा जाता है। उत्तरी मालाबार में कई मदप्पुर है। जिनमें से परसानी मदप्पुरा सबसे प्रमुख है। 


                                यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत: अभ्युथानाम अधर्मस्य तदात्मानम सृजाम्यहम। 


जो व्यक्ति मदप्पुरा में पूजा अथवा अनुष्ठान करता है उसे मदयन के नाम से सम्बोधित किया जाता है। जो भी व्यक्ति मद्यन के पद का सम्मान करता है, उसे थिया समुदाय के पैतृक घर में सबसे बड़ा सदस्य होता है। आने वाले सभी भक्तो को प्रसाद स्वरुप चाय, उबली हुई नाशपाती और नारियल का टुकड़ा दिया जाता है। मुख्य विशेषता आने वाले भक्तों को राहत और सांत्वना दी जाती है। भक्तों को चेरिया मुथप्पन और वालिया मुथप्पन दोनों को पवित्र दर्शन का आशीर्वाद प्रदान किया जाता है। 


नीलेश्वर मुथप्पन मदप्पुरा कासरगोड
थेय्यम

नीलेश्वर मुथप्पन मदप्पुरा की कथा 

नीलेश्वर मुथप्पन मदप्पुरा की एक स्थानीय रोचक कथा है। कोरोथ परिवार का एक बड़ा सदस्य प्रतिदिन एक स्थल पर जाता था और एक मादक पेय मधु ( ताड़ी) पिया करता था। और निकट मे स्थित कटहल के वृक्ष पर भी कुछ बूंदे डाली। चूँकि वो प्रसिद्ध विद्वान और शिक्षक थे और समाज में अपने किये गए योगदान के कारण उन्हें एजुथाचन की भी उपाधि से भी समान्नित किया गया था। उस प्रसिद्ध शिक्षक की मृत्यु के उपरांत कई वर्षों के उपरांत उस परिवार और गांव के लोगो को गम्भीर समस्याओ का सामना करना पड़ा। जिससे परेशान होकर उन्होंने एक ज्योतिष की सलाह ली। उसने बताया की भगवान मुथप्पन को प्रतिदिन मधु अर्पित करने से भगवान उस स्थल पर निवास करने लग गए है और उन्हें मधु की प्राप्ति न होने के कारण वह अत्यधिक क्रोधित है जिससे क्षेत्र में अशांति उत्तपन हो रही है। तब स्थानीय निवासियों द्वारा उस स्थल पर मंदिर का निर्माण कराया गया। मन्दिर के संरक्षण का अधिकार कोरोथ परिवार को प्राप्त हुआ। मन्दिर समिति के गठन के पश्च्यात समिति के सदस्यों द्वारा किये गए प्रोत्साहिक कार्यो के फलस्वरूप मन्दिर प्रसिद्ध हो गया और सैकड़ो की संख्या में मन्दिर में मुथप्पन के भक्त आने लगे। 



नीलेश्वर मुथप्पन मदप्पुरा मन्दिर का वार्षिक समारोह - मुथप्पन अंतथिरा

सभी मुथप्पन में केवल एक ही बार मुथप्पन अंतथिरा करने की प्रथा है, क्योकि इसमें अत्यधिक धन की आवश्यकता होती है। ६ जनवरी २००८ को नीलेश्वर मुथप्पन मदप्पुरा में मुथप्पन अंतथिरा का प्रदर्शन किया गया था। थेय्यम को देखने पर वह पीछे की ओर से मुथप्पन और आगे से देखने पर वैराजथान जैसा दिखता है। नीलेश्वर मुथप्पन मदप्पुरा के मुथप्पन अंतथिरा में लगभग एक लाख भक्तों ने प्रसाद रूप में भोजन प्राप्त किया था। 


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