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महालिंगेश्वर मंदिर तिरुविदैमरुथुर

दक्षिण भारत के तमिलनाडु के तिरुविदैमरुथुर गांव में शैववाद को समर्पित हिन्दू महालिंगेश्वर मन्दिर, सात प्रमुख शिव मन्दिरों में से एक है। शिव जी का प्रतिनिधित्व यहाँ पर उपस्थित शिवलिंग द्वारा किया जाता है। जिसे जोथिमयलिंगम और शिव जी को महालिंगेश्वर स्वामी के रूप में पूजा जाता है। स्थानीय दांत कथाओं के अनुसार महालिंगेश्वर मन्दिर का शिवलिंग, सदाशिव के सात प्रमुख मन्दिरों में उपस्थित पत्नियों का केंद्र बिंदु है। मन्दिर में भगवती पार्वती जिन्हे पीरगुचुंटरकुजम्बिगई के रूप में पूजा जाता है, का सुन्दर मन्दिर है।
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महालिंगेश्वर मन्दिर कैसे पहुंचे ? 

तिरुविदैमरुथुर गांव पहुंचने के लिए आपकों सबसे निकटम रेलवे स्टेशन कुम्भकोणम है, जहां से महालिंगेश्वर मन्दिर ९ किमी की दूरी पर कुंभकोणम मयिलादुथुराई राजमार्ग पर स्थित है। आप कुम्भकोणम रेलवे स्टेशन से किराये पर कैब, ऑटो, सरकारी या निजी बस जो की सुगमता से उपलब्ध है, की सहायता से महालिंगेश्वर मन्दिर पहुँच सकते है। सबसे निकट हवाई अड्डा तिरुचिरापल्ली (९१किमी) की दूरी पर है। जहां से कुम्भकोणम तक आप रेलवे अथवा सड़क मार्ग से पहुंच सकते है। 


महालिंगेश्वर मन्दिर की दंतकथा  

एक बार पाण्ड्य राजा वरगुण पांडिया अपने घोड़े से कही जा रहे थे रास्ते में गलती से उन्होंने एक ब्राह्मण को रौंद दिया जिससे उसकी मृत्यु हो गयी। जिसके परिणाम स्वरुप उन्हें ब्रह्म हत्या का पाप लग गया और वे जहां भी जाते उन्हें इसका परिणाम भुगतना पड़ता। उन्होंने पाप की मुक्ति के लिए मदुरै में सोमसुंदरार से प्रार्थना की। भगवान सोमसुंदरार ने  स्वप्न में आकर उन्हें तिरुविदैमरुथुर के शिव मंदिर में जाने और पापमोचन के लिए प्रार्थना करने का निर्देश दिया। उस समय तिरुविदैमरुथुर पर चोल राजवंश का शासन था। दोनों राजवंशो में युद्ध हुआ जिसमे राजा वरगुन पांडिया की विजय हुई तथा उन्होंने दिव्य निर्देशानुसार मन्दिर में प्रवेश किया। मन्दिर के दिव्य प्रभाव के कारण ब्रह्म हत्या और ब्राह्मण की प्रेतात्मा मंदिर में प्रवेश नहीं कर पाए और उनके लौटने का मन्दिर के बाहर ही इंतजार करने लगे। महालिंगेश्वर स्वामी की सलाह के अनुसार राजा पश्चिमी गोपुरम (मन्दिर द्वार) से मन्दिर से बाहर चले गए।और उन्हें इस श्राप से मुक्ति मिल गयी। आज भी मन्दिर में मान्यता है की जिस द्वार से आप दर्शन व पूजा के लिए मन्दिर में प्रवेश करते है। उस द्वार से न निकल कर मन्दिर के अन्य द्वार से आप बाहर निकलिये। 

महालिंगेश्वर मन्दिर की वास्तुशैली 

मन्दिर का निर्माण पारम्परिक द्रविण वास्तुशैली में एक आयताकार क्षेत्र योजना के अंतर्गत किया गया है। मन्दिर के तीन परिसर, पांच स्तरों वाले वास्तुकला में अद्वितीय चार राजगोपुरम(प्रवेश द्वार) और दीवारों से चारों ओर से संरक्षित है। मन्दिर परिसर में ५ पवित्र जलकुण्ड - करुनामिर्धा तीर्थम, सोमा तीर्थम, कनागा तीर्थम,  कल्याण तीर्थम और इरावता तीर्थम है। महालिंगेश्वर मन्दिर परिसर में मुकाम्बिगा (स्थानीय मान्यतानुसार, देवी पार्वती ने यहाँ अपनी तपस्या की थी) का मन्दिर उत्तर भारतीय वास्तुशैली में निर्मित है, पट्टीनाथर, भद्रगिरियार, अम्बाल, मुरुगा, नटराज, पदिथुराई विनयगर और अगोरा वीरब्रदार आदि प्रमुख मन्दिर है। 

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मंदिर परिसर में कई मण्डप (बड़े हालनुमा कक्ष) और तीन परिसर - अश्वमेता प्रदक्षिणा, कोडुमुडी और प्रणव है।  जिनमें प्रणव परिसर के १४९ शिलालेखों से ज्ञात होता है कि पांड्यो, चोलों, तंजावुर शासकों और तंजावुर मराठा शासकों ने समय समय पर किस प्रकार से अपनी स्थापत्य विशेषताओं और निर्माण कौशल में अपना योगदान दिया है। प्रणव परिसर में ही मुख्य आकर्षण का केन्द्र रथ की मूर्ति है, जिसमें १२ स्तम्भ है। प्रत्येक स्तम्भ १२ लग्नों का सांकेतिक स्वरुप है। 

महालिंगेश्वर मन्दिर के पूजा अनुष्ठान व धार्मिक महत्त्व 

मन्दिर के पुजारियों द्वारा पर्वों और दैनिक आधार पर ६ अनुष्ठान किये जाते है। प्रातः ६:०० बजे - उषाथकलम, प्रातः ८:०० बजे - कलासंथी१२:०० बजे अपराह्न - उचीकलम, सायं ६:००  बजे - सयाराक्षई, रात्रि ८:०० बजे - इरादमकलाम और रात्रि ९:०० बजे - अर्धजमाम प्रत्येक अनुष्ठान के ४ चरण होते है - अभिषेक (स्नान), अलंगरम (श्रृंगार), निवेथानम (नैवेद्य अर्पण) और दीपा अरदानई (आरती)। मन्दिर में अन्य शिव मन्दिरों की तरह ही सोमवार और शुक्रवार को साप्ताहिक अनुष्ठान, प्रदोष जैसे पाक्षिक व मासिक पर्व जैसे अमावसई, किरुथिगई, पूर्णनामि और सथुरथी आदि उत्सव मनायें जाते है। मन्दिर का सबसे प्रमुख पर्वोत्सव दस दिवसीय थाईपूसम हैं। जिसे तमिल कैलेंडर के थाई माह के दौरान मनाया जाता है। इस दौरान मुख्य देवता और उनकी पत्नी को विभिन्न वाहनों में मन्दिर क्षेत्र और गांव की सड़कों पर परिक्रमा कराई जाती है। वैकासी माह के दौरान तिरुकल्याणम(पवित्र विवाह), अम्बाल तपसु और अम्बाल थन्नई थाने आदि पर्व मनायें जाते है। 


पूर्व दिशा में श्रीकाशीविश्वनाथेश्वर, पश्चिम दिशा में ऋषिपुरीश्वर, उत्तर दिशा में चोककानाथ, दक्षिण में आत्मानाथ और इन सबके मध्य महालिंगेश्वर स्वामी होने के कारण इस पवित्र स्थल को पञ्च लिंग स्थल के रूप में भी जाना  जाता है। 


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