भारतीय प्रायद्वीप का सबसे दक्षिणी छोर, कन्याकुमारी तमिलनाडु राज्य के सबसे अच्छे पर्यटन स्थलों में से एक है, जिसे "द लैंड्स एन्ड" कहा जाता है। कन्याकुमारी को कुछ जादुई रूप उसका गहरा नीला पानी, लाल चट्टानों के ऊंचे पैच और तीन प्रमुख जल निकायों - बंगाल की खाड़ी, हिन्द महासागर और अरब सागर का मिलन प्रदान करता हैं। सुन्दर समुद्र तटों से लेकर चर्चों, मंदिरों, झरनों और स्मारकों तक - कन्याकुमारी बेहतरीन दर्शनी स्थलों से परिपूर्ण हैं। जहाँ आप संपूर्ण सूर्यास्त, मनभावन पूर्णिमा की रात,नीले नीले पानी में धीरे धीरे टहलना, तटीय भोजन और प्राकृतिक सुन्दरता आपको एक अद्भुत भौगोलिक गंतव्य में होने का रोमांच अनुभव कराता हैं। अपने रणनीतिक स्थान के कारण,कन्याकुमारी एक आदर्श पर्यटन स्थल और त्रिची, तिरुवनंतपुरम,पांडिचेरी, कोयंबटूर और चेन्नई जैसे शहरों में रहने वालों के लिए एक सप्ताहांत पर्यटन स्थल है।
इस जगह का नाम देवी कन्या कुमारी के नाम पर पड़ा है,जिन्हें भगवान श्री कृष्ण की बहन माना जाता है। मान्यतानुसार यह देवी मन से कठोरता को दूर करती हैं। १६५६ में डच ईस्ट इंडिया कम्पनी ने पुर्तगाली ईस्ट इंडीज से पुर्तगाली सीलोन पर विजय प्राप्त की, और नाम अंततः "कोमोरिन" पड़ा जिसे भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान केप कोमोरिन (द वर्जिन प्रिंसेस) कहा जाने लगा। बाद में भारत सरकार और मद्रास सरकार द्वारा इस शहर का नाम बदलकर कन्याकुमारी कर दिया गया।
कन्याकुमारी की कुल जनसंख्या २०२१ की गणना अनुसार २१६९८२१ है, जिसमें पुरुषों की संख्या १०७४६५३ व महिलाओं की संख्या १०९५१६८ है। जिससे शहर का लिंगानुपात (प्रति हजार पुरुषों पर महिलाओं की संख्या) १०१९ हैं। शहर की औसत साक्षरता ९१.७५ % है, जो की औसत से ६०% ज्यादा है। यहाँ मुख्यता हिन्दू धर्म (४८. ६५ %) के लोग ज्यादा है।
भौगोलिक स्थिति
कन्याकुमारी ८. ०८८३०६° N ७७. ५३८४५२ ° E पर स्थित एक प्रायद्वीपीय सिरा है जिसकी समुद्र तल से ऊंचाई ३० मीटर है। जो पश्चिमी और पूर्वी तटीय मैदानों के संगम पर स्थित है। कन्याकुमारी दक्षिणी सिरे पर है और भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे अंतिम बिंदु है। इस प्रकार यह खुद को भारत की लम्बाई "कश्मीर से कन्याकुमारी" का वर्णन करने के लिए प्रयोग किये जाने वाले सामान्य हिंदुस्तानी वाक्यांश का एक हिस्सा है, विभाजन के पूर्व इस वाक्य "खैबर से कन्याकुमारी" का प्रयोग लोगो द्वारा किया जाता था।कन्याकुमारी का शहर नागरकोइल प्रशासनिक मुख्यालय है। जहाँ से सभी सरकारी कार्यो का संचालन किया जाता है। कन्याकुमारी का पिनकोड ६२९७०२ तथा दूरभाष कोड +९१-४६५१ और +९१-४६५२ है।
कन्याकुमारी का इतिहास
कन्याकुमारी पर दक्षिण भारत के महान चोल, चेर और पांड्य राजवंशो का शासन रहा है। जिसकी छाप यहाँ की स्मारकों पर देखी जा सकती है। यहाँ के इतिहास, साहित्य और वास्तुकला पर हिन्दू, जैन और ईसाई धर्म का योगदान देखने को मिलता है। जिसका आजकल के विदेशी यात्रियों को आकर्षित करने में एक महत्पूर्ण योगदान है। प्राचीन काल में इस अद्भुत स्थान को पूर्व के अलक्जेंड्रिया के रूप में जाना जाता था और इसे प्रमुख सांस्कृतिक केंद्र माना जाता था। कई वर्षो तक कन्याकुमारी सभ्यता, तीर्थयात्रा, व्यापार और वाणिज्य का केंद्र रहा है।
ब्रिटिश शासन के दौरान कन्याकुमारी को केप कोमोरिन की उपाधि दी गयी थी। यह शायद अंग्रेजों द्वारा बोलने के तरीकों के कमी के कारण है।
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रंगीन रेंत और रंगीन पत्थर |
कन्याकुमारी की एक पोैराणिक धार्मिक कहानी भी है जिससे यह स्थान जुड़ा है। इस कहानी के अनुसार भगवान शिव ने असुर बाणासुर को वरदान दिया था की किसी कुंवारी कन्या के अतिरिक्त उसका वध किसी के भी हाथों से नहीं होगा। प्राचीन काल में भारत पर शासन भरत नाम के राजा का था जिनके ८ पुत्री व एक पुत्र था। पुत्री कुमारी ने दक्षिण के इस भाग पर कुशलता पूर्वक शासन किया। उनकी इच्छा थी की वो भगवान शिव से विवाह करें जिसके लिए भगवान शिव भी तैयार थे परन्तु देव ऋषि नारद चाहते थे की देवी कुमारी द्वारा बाणासुर का वध हो जाये। देवी कुमारी की सुंदरता और वीरता की कहानी जब बाणासुर के पास पहुँची तो उसने विवाह का प्रस्ताव भेजा परन्तु देवी कुमारी ने कहा यदि वो उन्हें युद्ध मे हरा देगा तो वो उससे विवाह कर लेंगी। इसके दोनों में एक भयंकर युद्ध हुआ जिसमें बाणासुर को मृत्यु प्राप्त हुई। देवी कुमारी की याद में ही भारत का यह स्थान कन्याकुमारी कहलाता है। स्थानीय लोगों द्वारा माना जाता है शिव और कुमारी का विवाह न हो पाने से तैयारी का सामान ( चावल और अन्य अनाज ) पत्थर और रेंत में बदल गए। पर्यटक कन्याकुमारी में इस प्रकार के अद्भुत पत्थर और रंगीन रेंत को खरीदना पसंद करते हैं।
कन्याकुमारी घूमने का सबसे अनुकूल समय
इसकी भौगोलिक स्थिति के कारण, एक उष्णकटिबंधीय जलवायु कन्याकुमारी की विशेषता है। ग्रीष्मकाल असाधारण रूप से गर्म और धूप वाला, जबकि मानसून अत्याधिक आर्द्र होता है। यही कारण है कि कन्याकुमारी या यों कहें कि समुद्र तटीय क्षेत्रों में घूमने का सबसे बढ़िया समय शीतकाल का है। जब मौसम हल्का ठंडा और सुहावना होता है। इस मौसम में यहाँ सबसे ज्यादा पर्यटक आते हैं।
ग्रीष्म ऋतु
कन्याकुमारी में गर्मियाँ गर्म और आर्द्र होती हैं। अप्रैल से मई के समय औसत तापमान ३० डिग्री के आस पास रहता है, जिससे दिन का समय काफी चिपचपा और गरम होने से यात्रा का आनंद खराब हो जाता है किन्तु शाम की ठंडी समुद्री हवा आपकी दिन की तकलीफ को एक सुखद आनन्द में बदल देती है परन्तु इस समय पर्यटक तुलनात्मक रूप में सबसे कम आते हैं।
वर्षा ऋतु
कन्याकुमारी में वर्षाकाल जून से सितम्बर तक रहता है जब वर्षा कुछ कम होती है परन्तु मौसम काफी आर्द्र होता है। फिर भी यदि आप तीनों महासागरों के संगम और उफनती हुई लहरों का आनन्द लेना चाहते हैं, तो रेन कोट और छाते के साथ यही वो समय है जब आपको यहाँ होना चाहिए।
शरद ऋतु
कन्याकुमारी घूमने का सबसे सुहावना मौसम नवंबर से मार्च प्रारम्भ का होता है। जब तापमान २० डिग्री के आसपास होता है। हवा की नमी तो न के बराबर होती है पर ठंडी हवा जो समुद्र की तरफ से आने वाली हवा को मनभावन बना कर आपकी यात्रा का आनन्द हजार गुना तक बड़ा देता है।
कन्याकुमारी कैसे पहुँचे?
सड़क मार्ग से
रेल मार्ग से
हवाई मार्ग से
कन्याकुमारी व उसके आसपास के दर्शनीय स्थल
आज कन्याकुमारी एक आकर्षक पर्यटन केंद्र के रूप मे विकसित हो गया है लेकिन यहाँ के निवासियों ने आज भी अपनी प्राचीन समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को जीवंत रखा हैं। यदि आप एक मिनी वैकेशन की कल्पना कर रहे है जहां आप कच्ची और देहाती सुंदरता के साथ साथ तटीय ख़ूबसूरती का आनंद लेना चाहते है, तो मैं आप को कन्याकुमारी की यात्रा करने का सुझाव दूंगा इस के लिए वहा की दर्शनीय स्थलों की सूचीं लाया हूँ तो बस आप अपने लैपटॉप/मोबाइल पर आ जाये और चाय के चुस्की के साथ स्क्रॉल करना प्रारम्भ करे ….
भगवती अम्मन मन्दिर
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देवी कन्याकुमारी |
देवी आदि शक्ति के ५१ शक्तिपीठों में से एक कन्याकुमारी, देवी के प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक है। ऐसा माना जाता है की देवी सती के शव का दाहिना कन्धा और पीठ का हिस्सा यहीं पर गिरा था, जिससे इस क्षेत्र में कुण्डलिनी शक्ति की उपस्थिति हुई।
तीनो समुद्रों के संगम क्षेत्र पर भूमि के सिरे के पास भगवान श्री गणेश का मंदिर है, जिसमें मंदिर में प्रवेश के पूर्व दर्शन परम्परा है।
स्वामी विवेकानंद ने दिसम्बर १८९२ में गुरु रामकृष्ण परमहंस के निर्देश पर देवी का आशीर्वाद प्राप्त करने यहाँ पर आये थे। यही से उन्होंने हिन्दू मिशनरी की स्थापना करने का फैसला किया।
पीठासीन देवी की मूर्ति हाथों में अक्षमाला लिए खड़ी हुई है। जिनके आसन में एक सिंह की छवि है जो दर्शाती है की वह आदि पराशक्ति है। मन्दिर की अद्भुत विशेषता है की मंदिर के चार स्तम्भ है, जिनमे चोट करने पर वीणा (एक तार वाला वाद्य यन्त्र), मृदंग ( एक ताल वाला वाद्य यन्त्र), बांसुरी और जलतरंग (चीनी मिट्टी वाला वाद्य यन्त्र) की आवाज उत्पन्न होती है।
मूर्ति में एक नाक की नथुनी है जो देवी को "मुकुथी अम्मन" (नाक वाली देवी) नाम देती है। मूर्ति की नाक की नथ में एक हिरा जड़ा है जो की इतना चमकीला है की इसने ब्रिटिश साम्राज्य के गुजरने वाले जहाज के कप्तान को लाइट हाउस होने का भ्रम दे दिया। अंग्रेजो ने मंदिर पर पूर्वी द्वार से आक्रमण कर मूर्ती की नथ का हीरा चुरा लिया।जब वह हीरा लेके ब्रिटेन के लिए रवाना हुए तो रस्ते मे हीरे ने अपना आकार बढ़ाना आरम्भ कर दिया और अंत मे जहाज को डूबा दिया। जिससे जहाज पर सवार सभी लोगों की मौत हो गयीं। कुछ समय बाद स्थानीय लोगों को वो हीरा मिला जिसे उन्होंने पुनः मूर्ति में लगाया यही कारन है की मंदिर का पूर्वी द्वार विशेष दिनों में ही खोला जाता है। देवी कुमारी कौमार्य और तपस्या की देवी हैं। प्राचीन समय में लोग यहाँ सन्यास की दीक्षा प्राप्त करने आते थे।
मंदिर के अंदर अन्य आकर्षण पथला गंगा तीर्थम व कल भैरव तीर्थ हैं। कालभैरव भगवान शिव का वह क्रूर रूप है जो काल (समय) को ही नष्ट कर देता है। देवी के सभी शक्ति पीठों में आपको भैरव मन्दिर अवश्य ही मिलेगा जो मंदिर की रक्षा के लिए बनाया जाता है। कन्याकुमारी मंदिर में कालभैरव का नाम "निमिश" और शक्ति "सरवानी" है और शुचिंद्रम के शक्ति पीठ में कालभैरव "सम्हारा" और शक्ति "नारायणी" है। इस मंदिर को ५१ शक्ति पीठों में से दो शक्ति पीठों का गौरव प्राप्त है। भक्तों द्वारा देवी को लाल साड़ी व घी का दीप चढ़ाया जाता है। मन्दिर का प्रशासन और रखरखाव तमिलनाडु सरकार के हिन्दू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग द्वारा किया जाता है।
देवी कन्याकुमारी एक किशोरी बालिका के रूप मे देवी पार्वती की अभिव्यक्ति है। देवी को "श्री बाला भद्रा" या "श्री बाला", "कन्या देवी" और "देवी कुमारी" इत्यादि नामों से जाना जाता है। भगवती अम्मन मंदिर तमिलनाडु राज्य में कन्याकुमारी में, मुख्य भूमि भारत के दक्षिणी सिरें पर, बंगाल की खाड़ी, अरब सागर और हिन्द महासागर के संगम पर स्थित है। उन्हें उनके भक्तों द्वारा देवी भद्रकाली के अवतार के रूप में भी पूजा जाता है। प्राचीन लोककथा के अनुसार ऋषि परशुराम ने मन्दिर का अभिषेक किया था। मान्यतानुसार देवी मन की कठोरता को दूर करती है।
प्रवेश शुल्क: निः शुल्क प्रवेश
विवेकानंद रॉक मेमोरियल
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विवेकानन्द रॉक मेमोरियल |
घूमने का समय : प्रातः ८ बजे से शाम ४ बजे तक
प्रवेश शुल्क: नियमित टिकट के लिए ५० रू
थानुमलयन मन्दिर स्थानुमलयन कोविला
थानुमलयन मन्दिर |
प्रवेश शुल्क: निः शुल्क प्रवेश
भगवान सुब्रमण्यम मन्दिर
आमतौर पर अरुप्पई वीडू के नाम से जाना जाने वाला, भगवान सुब्रमण्य मन्दिर कन्याकुमारी से लगभग ३४ किमी दूर तिरुचेंदूर में स्थित एक प्रतिष्ठित स्थल है। मन्दिर भगवान सुब्रमण्य या मुरुगन को समर्पित है, जिन्हें विजय के देवता के रूप मैं जाना जाता है।
मन्दिर से जुडी किंवदंतियों के अनुसार, इसे राक्षस सुरपद्मा पर भगवान मुरुगन की जीत के सम्मान में बनाया गया था। मूल रूप से, मन्दिर का निर्माण १७वीं शताब्दी में किया गया था, जिसका जीर्णोद्धार १९८३ में किया गया। मन्दिर एक उत्कृष्ट वास्तुकला का केंद्र है, जिसमे नौ मंजिला गोपुरम मुख्य आकर्षण का जिवंत उदारण है।
प्रवेश शुल्क: निः शुल्क प्रवेश
अय्या वैकुंदर निज़ल थंगल
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अय्या वैकुंदर निज़ल थंगल |
इस जगह का मुख्य इसकी अनूठी स्थापत्य सहस्रार (सफेद कमल)शैली है।इतिहासकारों की माने तो इस शैली का दावा काने वाला यह पहला मंदिर है। मूल रूप से इस संरचना का निर्माण १९८८ में किया गया, परन्तु नए थंगल की आधारशिला २००५ में अय्यावजी के वर्तमान धार्मिक नेता बाला प्रजापति आदिकलर द्वारा रखी गयी थी।
यहाँ मनाये जाने वाले कुछ लोकप्रिय त्योहारों में थिरु एडु वसिप्पु, अय्या वैकुण्ड़ा अवतारम, थिरुक्कर्थिगई और दिवाली प्रमुख हैं। हर साल, अकिला आरा पतसलाई के धार्मिक सम्मेलन और समारोह का आयोजन बड़ी धूम धाम से किया जाता है।
दर्शन का समय: प्रातः ४:३० बजे से दोपहर १२ बजे तक और शाम ५ बजे से रात ८ बजे तक
प्रवेश शुल्क: निः शुल्क प्रवेश
थिरुनंथिकराय गुफा मन्दिर
थिरुनंथिकराय गुफा मन्दिर |
दर्शन का समय: प्रातः ९ बजे से शाम ५ बजे तक
प्रवेश शुल्क: निः शुल्क प्रवेश
तिरुवल्लुवर की प्रतिमा
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तिरुवल्लुवर की प्रतिमा |
पद्यनाभपुरम पैलस
कन्याकुमारी जिले में मूल रूप से कालकुलम के नाम से जाना जाने वाला छोटा सा गांव पद्यनाभपुरम कभी शक्तिशाली वेनाड साम्राज्य की सम्पन्न राजधानी थी। जो बाद में त्रावणकोर की पूर्ववर्ती रियासत के रूप में लोकप्रिय हो गया। पद्यनाभपुरम दक्षिण में वेनाड शासकों का पहला गढ़ नहीं था। पास के वल्लियुर, वीरकेरलपुरम, थिरुवितमकोड़, चारोड, पुलियुरकुरीचि और एरानिएल में अभी भी बस्तियों, महलों, पुराने किलेबंदी और प्रमुख पद्यनाभपुरमनींव से पहले के हैं। कालकुलम को सम्भवतः एक महल के निर्माण के लिए उपयुक्त स्थान के रूप में चुना गया था क्योंकि इसकी रणनीतिक स्थिति और पश्चिमी घाट की उबड़ खाबड़ पर्वत शृंखलाओं के निकट होने के कारण महल और बस्तियों को प्राकृतिक सुरक्षा प्रदान करती थी। उपजाऊ खेत की प्रचुरता की भरपूर आपूर्ति प्रमुख आकर्षण थे, जिन्होंने इस क्षेत्र में राजघरानों और अन्य बसने वालों को आमंत्रित किया।
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पद्यनाभपुरम पैलेस |
१९३४ में सी. पी. रामास्वामी अय्यर, त्रावणकोर सरकार के कला सलाहकार जे. एच. कजिन्स और पुरातत्व विभाग प्रमुख आर. वासुदेव पोडुवाल द्वारा इसके प्राचीन परिसर को फिर से खोजा गया था। १९३५ में राजघराने के पूर्ण सहयोग के साथ पद्यनाभपुरम के प्राचीन महल को एक संग्राहलय परिसर में बदल गया था। भाषा विज्ञान के आधार पर राज्यों में पुर्नगठन ने केरल से ऐतिहासिक कन्याकुमारी जिले को अलग कर दिया। हालाँकि, समय पर हस्तक्षेप के साथ, पद्यनाभपुरम पैलेस और इसके विशाल मैदान केरल राज्य के सीधे नियन्त्रण में आ गया। आज महल की सुन्दरता को देखने के लिए हजारों की संख्या में पर्यटक आते है। इमारत का एक विशाल ढेर जहाँ एक लम्बे समय से भूले हुए युग की याद आज भी जीवंत रखे हुए है।
घूमने का समय : प्रातः ९ बजे से दोपहर १ बजे तक और दोपहर २ बजे से शाम ४:३० बजे तक। पैलेस रविवार और घोषित राष्ट्रीय अवकाश के दिन पर्यटकों के लिए बन्द रहता है।
प्रवेश शुल्क : नियमित टिकट भारतीयों के लिए प्रति व्यक्ति २५ रु और विदेशी नागरिकों के लिए प्रति व्यक्ति २०० रु निर्धारित की गयी है। इसके अतिरिक्त यदि आप कैमरा अथवा वीडियो कैमरा भी अपने साथ ले जाना कहते है तो उसका शुल्क अलग से देना पड़ता है।
आवर लेडी ऑफ रैनसम चर्च
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आवर लेडी ऑफ रैनसम चर्च |
प्रवेश शुल्क : निःशुल्क प्रवेश
सेंट जेवियर्स केथेड्रल चर्च
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सेंट जेवियर्स केथेड्रल चर्च |
सेंट जेवियर्स केथेड्रल चर्च १६वीं शताब्दी में बनाया गया कोट्टार में एक प्रतिष्ठित स्थान है। यह रोमन कैथोलिक चर्च पेरिस के एक प्रोफेसर सेंट फ्रांसिस जेवियर्स को समर्पित है, जिन्हे लोग प्यार से वालिया पंडारम के नाम से सम्बोधित किया करते थे। ऐसा माना जाता है कि कोट्टार में रहने के दौरान, उन्होंने अपने क्रॉस के साथ वेनाड साम्राज्य पर पड़ागो के आक्रमण को रोक दिया था। जिससे प्रसन्न होकर तत्कालीन राजा उन्नी केरल वर्मा ने उन्हें एक चर्च बनाने के लिए विशाल क्षेत्र प्रदान किया। १९३० में चर्च को एक गिरजाघर घोषित कर दिया गया और इसका नाम सेंट जेवियर्स केथेड्रल चर्च रखा गया। यदि आप नवंबर और दिसम्बर के दौरान यदि आप यहाँ जाते है तो आप १० दिनों के प्रसिद्ध वार्षिक उत्सव को देख सकते है।
प्रवेश शुल्क : निःशुल्क प्रवेश
गाँधी स्मारक
राष्ट्रपिता की स्मृति में बनाया गया गाँधी स्मारक कन्याकुमारी का अन्य प्रमुख आकर्षण है। उनकी मृत्यु के बाद उनकी अस्थियों को कन्याकुमारी में त्रिवेणी संगम में विसर्जित क्र दिया गया था। स्मारक की वास्तुकला मध्य भारत के हिन्दू तीर्थों से अत्याधिक मिलती जुलती है यही कारण है की इसे गाँधी मंडपम के नाम से सम्बोधित किया जाता है। कन्याकुमारी में रहते हुए, श्रद्धेय स्थान की यात्रा अवश्य करनी चाहिए।
कन्याकुमारी मोम संग्राहलय
तुलनात्मक रूप में हाल ही में जोड़ा गया कन्याकुमारी मोम संग्रहालय शहर का एक पर्यटक आकर्षण है। यह २००५ में भारत देश में खोला जाने वाला पहला मोम संग्रहालय था। जैसा की नाम से पता चलता है, यहाँ जीवन के विभिन्न क्षेत्रों से प्रतिष्ठित व्यक्तियों की मोम की मूर्तियों को प्रदर्शित करता है। यहाँ आपको राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी या कलाम जी के साथ क्लिक करने का मौका मिलेगा।
माथुर हैंगिंग ब्रिज
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माथुर हैंगिंग ब्रिज |
अपनी तरह का एक माथुर एक्काडक्ट कन्याकुमारी के दौरे पर जाने के लिए एक दिलचस्प जगह है। एक किमी लम्बा और ११५ फीट ऊँचा यह हैंगिंग ब्रिज एशिया के सबसे ऊँचे और सबसे ट्रफ ब्रिज में से एक है। भव्य संरचना का निर्माण १९६६ में पहराली नदी के ऊपर किया गया था, जो आज भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है।
सुनामी स्मारक
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सुनामी स्मारक |
सुनामी स्मारक एक ऐसा पर्यटक आकर्षण है, जो शहर के दक्षिण किनारे के पास स्थित उन लोगो की याद में बनाया गया स्मारक है, जिन्होंने २००४ के हिन्द महासागर में आये भूकम्प के बाद सुनामी में अपनी जान खोई हुई हजारों जानो के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए दूर दर्ज से लोग यहाँ आते है।
प्रवेश शुल्क : निःशुल्क प्रवेश
सूर्यास्त दृश्य बिन्दु
संगुथुराई समुद्र तट
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संगुथुराई समुद्र तट |
सोथविलाई समुद्र तट
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छोटाविलाई समुद्र तट |
थेंगापट्टिनम समुद्र तट
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थेंगापट्टिनम समुद्र तट |
कन्याकुमारी समुद्र तट
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कन्याकुमारी समुद्र तट |
घूमने का समय : दिवस में कभी भी
प्रवेश शुल्क : निःशुल्क प्रवेश
ओलाकारुवी जल प्रपात
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ओलाकारुवी जलप्रपात |
कन्याकुमारी के कई झरनों में से एक, ओलाकारुवी जल प्रपात अपने आसपास की सुंदरता को दर्शाता है। यह तलहटी से झरने तक एक घंटे का लम्बा ट्रैक है लेकिन प्रकृति के शानदार दृश्यों के लिए इतना प्रयास तो करना ही पड़ता है। किंवदंती है की यहाँ के पानी में कायाकल्प करने की शक्तियाँ हैं।
पश्चिम घाट में बसा ओलाकारुवी जल प्रपात जिसे उल्लाकारवी जल प्रपात भी कहा जाता है , में दो छोटे छोटे झरने शामिल है -निचला एक लोकप्रिय पिकनिक स्थल है और दूसरा लगभग २०० मीटर ऊँचाई पर है।पर्यटक या तो निचले झरनों में नहाने का आनंद ले सकते हैं या फिर ऊँचे झरने तक ट्रैकिंग का। नागरकोइल से लगभग २५ किमी दूर स्थित ओलाकारुवी जल प्रपात पहुंचने का सबसे बढ़िया तरीका चट्टानी और प्रकृति के बीच ट्रैकिंग करना है।
थिरपराप्पु जल प्रपात
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थिरपराप्पु जल प्रपात |
यह झरना ३०० फीट की लम्बाई तक फैला है और इसके आधार में एक पूल बनाता है जो वयस्कों और बच्चों के लिए एक आदर्श जहां वे तैराकी का आनंद ले सकते हैं।
घूमने का समय : प्रातः ७ बजे से सायं ६ बजे तक
कुट्रालम जलप्रपात
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कुट्रालम जलप्रपात तिरुनेलवली |
- पेरारुवी ( मुख्य जलप्रपात )
- एनथारुवी ( पांच जलप्रपात )
- पझाया कुट्रालम
- चित्ररुवी
- शेनबागदेवी जलप्रपात
- थेनारुवी
- पझथोट्टा अरुवी
- पुलि अरुवी
- पलारुवी जलप्रपात
1 टिप्पणियाँ
Wow lovely. Thanks
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