श्री मदियां कूलम मन्दिर, दक्षिण भारत के केरल राज्य के उत्तरी भाग में स्थित कान्हांगद नाम के स्थल पर निर्मित प्राचीन हिन्दू देवस्थलों में से एक है। श्री मदियां कूलम मन्दिर कासरगोड जिले का एक प्रमुख हिन्दू मन्दिर है, जिसकी आयु लगभग ५०० वर्ष की है। पवित्र मन्दिर के अधिपति "क्षेत्रपालक ईश्वरन" जिन्हें कालरात्रि अम्मा ( भद्रकाली ) के नाम से भी जाना जाता है। भक्तगण इन्हें देवी माँ के नाम से भी सम्बोधित करते है।
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श्री मदियां कूलम मन्दिर |
मन्दिर की मुख्य विशेषता, मंदिर का किसी जाति-धर्म का न होना है। जो की विभिन्न धर्मों और जातियों की एकता को दर्शाता है क्योंकि मुख्य देवता ईश्वरन एकता के देवता के रूप में माने जाते है। इसे दर्शाने के लिए रामायण और महाभारत की कथाओं को मंदिर की सदियों पुरानी नक्काशी का प्रयोग किया गया है, जो की लकड़ी पर बनाई गयी है। दूसरी विशेषता है की मन्दिर में की जाने वाली अपराह्न पूजा एक ब्राह्मण पुजारी द्वारा की जाती है, जबकि प्रातः और सायं को की जाने वाली पूजा मनियानी नामक सम्प्रदाय द्वारा की जाती है।
मन्दिर से जुडी किंवदंती
चित्तरी से ओलावरा तक फैले अल्लादेशम के प्रमुख उदीनूर कोविलकम थे। किंवदंतियों के अनुसार उसने वैराजनाथ के साथ उदीनूर से अपनी यात्रा का प्रारम्भ किया और मदियान पहुंचे, तो एक स्थान अप्पम, जो अभी भी "कुलोथ अप्पम" के नाम से प्रसिद्ध मन्दिर में एक प्रसाद है, की गंध से आकर्षित होने के बाद पर बैठने का निर्णय किया। जो उस समय भगवती नदयिल के लिए तैयार किया जा रहा था, जो उस समय कुलोम के मुख्य देवता थे। इस ''सस्था" और उनके साथ आने वाले अन्य शिष्यों को देखकर थंपुरन को "मड़िया" कहा जाता है। जिसका मलयालम में अर्थ होता है - "आलसी", जिन्हे बाद में "मड़ियां" क्षेत्र पालकन के नाम से जाना जाने लगा।
क्षेत्र पालकन बाद में कलारथियम्मा की गोद में बैठ गए, देवी जो उस समय अपने "उग्र रूप" में थी और एक ममतामयी माँ में बदल गयी और अंततः मन्दिर के पश्चिम की ओर मुख करके रखती थी। एक और मान्यता है की मदियां शब्द की उत्पत्ति तब से हुई थी जब वह कलारथियम्मा की गोद ( मलयालम में माड़ी ) बैठे थे। यह उस प्रथा का भी अंत था जो शक्ति पूजा के रूप में पहले वहा की गयी थी। शक्ति पूजा की याद में कल्लू ( ताड़ ताड़ी ) और मछली आज भी कलश के दिन मन्दिर के अन्दर लाये जाते हैं।
मन्दिर का वास्तुशास्त्र
मन्दिर परिसर का विस्तार ६ एकड़ के विशाल भूभाग पर है। जिसके आधे क्षेत्र में निर्मित भवन का निर्माण पारम्परिक केरल शिल्प शैली में किया गया है। मन्दिर को प्रसिद्धि उसकी मूर्तियों के साथ ही साथ लकड़ी पर की गयी नक्काशी जिसमें रामायण के साथ ही साथ अन्य महाकाव्यों में वर्णित कथाओं को दर्शाया गया है के कारण है। जिसमें से अधिकांश मंदिर के जलकुण्ड, मण्डप और पश्चिमी गोपुरम के आसपास देखने को मिलती है। मन्दिर की रसोई के आसपास ( थेक्किनी मण्डप ) में स्थित विभिन्न नक्काशी जिसमें दक्ष यज्ञ, सीता स्वयंवर और वनगमन की कथा है, रसोई के धुएं के कारण लगभग नष्ट हो गयी हैं। यही हाल जलकुंड के आस पास की नक्काशी का है वह भी पूर्णतः नष्ट होने की कगार पर है। पश्चिमी गोपुरम में अमृत मंथन, कालिया मर्दन और भगवान विष्णु की शेष शय्या पर योगनिंद्रा में लीन कथायें नक्काशी में वर्णित की गयी है। प्रवेश द्वार के पास एक झुकने वाले हाथी की मूर्ति है जिसके विषय में कथा है कि हाथियों को मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं है को चिन्हित करता है। इसीप्रकार मंदिर के कुण्ड के पास एक सर्प की मूर्ति है, माना जाता है, सर्प ने जलकुंड के जल को जहरीला करने का प्रयास किया था इसलिए शापित होकर वह मूर्ति में बदल गया।
मन्दिर में मनाये जाने वाले उत्सव
श्री मदियां कूलम मन्दिर अपने वार्षिक उत्सव पट्टू के लिए भी प्रसिद्ध है। जिसे मलयालम महीने धनु ( जनवरी ) में मनाया जाता है। जो आमतौर पर २६ जनवरी से प्रारम्भ होता है। पट्टू के दौरान, कलाम पट्टू नामक एक विशेष अनुष्ठान का आयोजन किया जाता है। पहले दिन कलाम पाचा वर्णम के साथ मुख्य देवता के लिए होता है। दूसरा दिन उपदेवता का होता है जिसमें कलाम मंजा वर्णम का होता है। अंतिम दिन, कलम मांजा वर्णम में दरिका वधाम का चित्रण करते है जो कालरात्रि अम्मा का होता है।
मन्दिर में मनाया जाने वाला एक और वार्षिक उत्सव कलशम है जो मई जून के माह में पड़ता है। मन्दिर का उत्सव का मुख्य आकर्षण थेय्यम है। यह पूजा तभी पूर्ण मानी जाती है जब इस क्षेत्र ( प्राचीन भाषा में देश ) का प्रत्येक वासी इसमें उपस्थित हो। इस मान्यता का पालन आज भी हो रहा है।
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Image Source - Google Image
मन्दिर में दर्शन का क्रम
मन्दिर में दर्शन के दौरान निम्न क्रम में मुख्य देवता और उपदेवता की पूजा की जाती है।
- नागम
- पेरत्तूर बघवती
- मांजलि अम्मा
- क्षेत्रपालकन ईश्वरन
- कालरात्रि अम्मा
श्री मदियां कूलम मन्दिर तक कैसे पहुंचे ?
श्री मदियां कूलम मन्दिर जाने का सबसे अच्छा समय सितम्बर से मार्च माह का समय है, जब दक्षिण भारत का मौसम अन्य माह की अपेक्षा कुछ ठंडा व सुहावना होता है। यूँ तो पूरा केरल ही सड़क मार्ग और रेल मार्ग के सुनियोजित तंत्र से जुड़ा हुआ है इसलिए कासरगोड पहुंचना भी बहुत ही सुगम है।
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श्री मदियां कूलम मन्दिर |
सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन कासरगोड रेलवे स्टेशन जहा से शांत और सुरम्य मन्दिर द्वार की दूरी क्रमश: २५ किमी और १२ किमी है। जिसके लिए ऑटो रिक्शा बड़ी ही सुगमता से उपलब्ध है।
सबसे निकटतम हवाई अड्डा मैंगलोर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है जहा से मंदिर परिसर की दूरी ८२ किमी है। आने वाले दर्शनार्थी यहाँ से निजी अथवा राजकीय वाहन के द्वारा मन्दिर परिसर तक पहुंच सकते है।
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